Independence day Special : ईरान से आया वह क्रांतिकारी जिसने देश की आजादी के लिए फांसी पर चढ़ना कुबूल किया
गोरखपुरPublished: Aug 15, 2018 02:15:12 pm
15 August Independence Day Celebration : जब क्रांति की बिगुल बजी तो उन्होंने सबसे पहले मोती जेल में कैद सभी क्रांतिवीरों और कैदियों को आजाद कर दिया। इसके बाद आंदोलन चलाने के लिए स्वयं भूमिगत हो गए।
Independence day Special ईरान से आया वह क्रांतिकारी जिसने देश की आजादी के लिए फांसी पर चढ़ना कुबूल किया
आजाद भारत में सांस ले रही नई पीढ़ियों को शायद ही यह अहसास हो कि उनके आज के लिए कितनों ने बेइंतहा जुल्म को किस स्तर तक सहा। गोरखपुर का बसंत सराय और मोती जेल की बची-खुची दर-ओ-दीवार अंग्रेजी बर्बरता की कहानी बयां करते हैं। देश के लिए दीवानगी ऐसी कि जेलर तक देशप्रेम में फांसी पर चढ़ने को तैयार हो गया। ईरान से पूर्वज इनके आकर भारत में बसे थे लेकिन जेहन में भारत देश और इसकी आजादी का सपना समाता गया। देश के क्रांतिवीरों से ऐसे प्रेरित हुए कि आजादी की लड़ाई में खुद को झोंक दिया।
गोरखपुर शहर के सौदागार मोहल्ले के पीछे लालडिग्गी सब स्टेशन के सामने एक बड़ी-सी टूटी-फूटी चहारदीवारी है। यह चहारदीवारी किसी जमाने में राजा बसंत सिंह का किले का हिस्सा हुआ करती थी। ईस्ब् इंडिया कंपनी की आड़ में अंग्रेजी सल्तनत ने जब पांव पसारे तो इस किले को जेलखाने में बदल दिया गया। खंडहर में तब्दील हो चुके इस जेल को मोती जेल के नाम से सब जानते हैं। जेल का अस्तित्व करीब-करीब समाप्त हो चुका है। अब यहां आसपास लोगों का बसेरा है। प्राचीन डोमखाना या प्रथम जेल का निर्माण कब हुआ यह ठीक-ठीक कोई नहीं बता पाता। हालांकि, इतिहासकार बताते हैं कि सन् 1857 के बाद इस इमारत का उपयोग सरकारी जेलखाने के रूप में किया जाता था। जेल की दीवारें क्रांतिवीरों के वीरता और अंग्रेजों की क्रूरता की दास्तां कह रही हैं। न जाने कितने देशभक्त यहां कैद में यातनाएं सहे और देश के नाम अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। देश के लिए प्राण न्यौछावर करने वाले क्रांतिकारी बाबू बंधु सिंह इसी जेल में बंदी रखे गए थे। 1857 की क्रांति के समय के समय इस जेल में मिर्जा आगा इब्राहीम बेग जेलर के पद पर थे। 1857 की क्रांति में उन्होंने भी देश के लिए लड़ने का फैसला किया। जब क्रांति की बिगुल बजी तो उन्होंने सबसे पहले मोती जेल में कैद सभी क्रांतिवीरों और कैदियों को आजाद कर दिया। इसके बाद आंदोलन चलाने के लिए स्वयं भूमिगत हो गए। इन्हीं की पुत्री थी रानी अशरफुन्निसा खानम, जिनके नाम पर मुहल्ला शेखपुर में एक इमामबाड़ा बना हुआ है। इनके पति बंदे अली बेग के पिता को इसी दौर में क्रांतिकारी होने के कारण फांसी दी गई थी। मिर्जा आगा इब्राहीम बेग के पूर्वज मिर्जा हसन अली बेग सन् 1739 में नादिर शाह के हिन्दुस्तान पर आक्रमण के समय ईरान से दिल्ली आए थे।