scriptहार का दाग धुलने उतरे इस भाजपाई दिग्गज से अमित शाह ने जोड़ा यह रिश्ता | The untold story of this leader whom Amit shah also admires in Public | Patrika News

हार का दाग धुलने उतरे इस भाजपाई दिग्गज से अमित शाह ने जोड़ा यह रिश्ता

locationगोरखपुरPublished: May 17, 2019 02:27:46 pm

बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कलराज मिश्र के बाद दूसरे पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रमापति त्रिपाठी मैदान में

Loksabha election 2019

डैमेज कंट्रोल के लिए यहां से लड़ रहे इस भाजपाई दिग्गज को मिल रही इनसे टक्कर

हार के दाग को धुलने के लिए एक बार फिर मैदान में उतरे भाजपाई दिग्गज को अब देवरिया की जनता पर आस है। यूपी भाजपा में रणनीतिकार माने जाने वाले बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रमापति राम त्रिपाठी को बीजेपी ने कई समीकरणों को साधते हुए देवरिया सीट से उतारे हैं। इस चुनाव में अगर वह बाजी मार ले जाते हैं तो वह जनता से सीधे चुने जाने वाला पहला चुनाव जीतेंगे साथ ही देवरिया लोकसभा सीट बीजेपी की सबसे सुरक्षित सीट का ठप्पा भी लग जाएगा।
यूपी भाजपा के सबसे अहम रणनीतिकारों में रहे हैं शुमार

जोड़तोड़ की राजनीति में माहिर माने जाने वाले रमापति राम त्रिपाठी भाजपा के एक जाने माने चेहरा हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके त्रिपाठी को बीजेपी ने कई बार एमएलसी बनाकर सदन में भेजा है। हालांकि, संगठन के महत्वपूर्ण पदों पर रहने वाले रमापति राम त्रिपाठी कभी भी आम चुनाव नहीं जीत सके हैं। गोरखपुर जिले के रहने वाले त्रिपाठी को बीजेपी ने 1993 में कौड़ीराम सीट से चुनाव लड़ाया, वह 22284 वोट पाकर चुनाव में तीसरे नंबर पर रहे। इस चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी अंबिका सिंह को जीत मिली। जबकि जनता दल की गौरी देवी 23339 मत पाकर दूसरे नंबर पर रहीं। हालांकि, त्रिपाठी को संगठन ने तवज्जो देते हुए दो बार एमएलसी बनाया। वह सन 2000 से 2012 तक एमएलसी रहे। 2012 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर त्रिपाठी को पार्टी ने महराजगंज के सिसवा से विधानसभा चुनाव लड़ाया। इस बार भी पूर्व प्रदेश अध्यक्ष जनता के चुनाव में सफल नहीं हो सके। सिसवा में उनको 37669 वोट मिले जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी सपा प्रत्याशी शिवेंद्र सिंह को 54440 मत मिले। अब तीसरी बार देवरिया से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं।
गोरखपुर क्षेत्र के दर्जन भर जनप्रतिनिधियों को स्थापित करने में योगदान
भाजपा पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रमापति राम त्रिपाठी संगठन का वह चेहरा हैं जिन्होंने गोरखपुर क्षेत्र और यूपी के विभिन्न लोकसभा-विधानसभा क्षेत्रों में पदाधिकारियों-नेताओं को टिकट दिलाने में अहम योगदान दिया। गोरखपुर मंडल में करीब एक दर्जन ऐसे नाम हैं जो पूर्व प्रदेश अध्यक्ष की वजह से टिकट पाने में सफल रहे हैं और जीत का स्वाद भी चख चुके हैं। खुद अपने पुत्र को दो बार वह लोकसभा चुनाव लड़वाने में सफल रहे। उनके पुत्र शरद त्रिपाठी 2009 व 2014 में संतकबीरनगर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ चुके हैं, 2014 में वह जीते भी।
देवरिया में त्रिकोणीय मुकाबले में फंसे

भाजपा प्रत्याशी रमापति राम त्रिपाठी देवरिया संसदीय सीट से चुनाव लड़ते हुए त्रिकोणीय मुकाबले में फंसे हुए हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र के जगह पर चुनाव लड़ने आए रमापति राम त्रिपाठी का मुख्य मुकाबला महागठबंधन और कांग्रेस से है। महागठबंधन से चुनाव लड़ रहे बसपा के विनोद जायसवाल के पक्ष में यादव-मुस्लिम-दलित-वैश्य जातियों का समीकरण हैं तो कांग्रेस प्रत्याशी नियाज अहमद के पास देवरिया से कई चुनाव लड़ने का अनुभव।
उधर, भाजपा के दिग्गज के पास संगठन तो है लेकिन संगठन में सुलगती आंतरिक गुटबाजी को भी शांत करना उनके लिए चुनौती है तो बाहरी होने के दंश से उबरते हुए लोगों को समझाना भी एक कठिन काम।
बीजेपी जीतती है तो देवरिया होगा यूपी बीजेपी का सबसे सुरक्षित सीट

भारतीय जनता पार्टी के लिए यह सीट जीतना बेहद अहम है। 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां से भाजपा के एक दिग्गज कलराज मिश्र चुनाव लड़ने आए थे। खुद को यहीं का निवासी बताकर कलराज मिश्र ने सबको साध लिया था। हालांकि, टिकट मिलने पर फौरी तौर पर संगठन में उनका भी काफी विरोध हुआ था। पैराशूट उम्मीदवार की बात कहकर कई जगह कलराज मिश्र की खिलाफत सड़कों पर कार्यकर्ताओं ने किया था। लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता कलराज मिश्र ने विरोध करने वाले पदाधिकारियों-कार्यकर्ताओं को साध लिया। कलराज मिश्र देवरिया सीट से रिकार्ड मतों से जीते और मंत्री भी बनें। इस बार टिकट ने देकर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रमापति राम त्रिपाठी को संगठन ने चुनाव लड़ाया है। त्रिपाठी भी संगठन की पसंद हैं। अगर इस बार वह चुनाव जीत जाते हैं तो संगठन के लिए देवरिया सबसे सुरक्षित सीट मानी जाएगी।
भाजयुमो के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष भी कर रहे नुकसान

देवरिया सीट से भाजयुमो के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष रामाशीष राय बागी होकर चुनाव लड़ रहे हैं। दिग्गज भाजपाई के बागी होने से बीजेपी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। रामाशीष राय भूमिहार जाति से ताल्लुक रखते हैं। देवरिया लोकसभा सीट में भूमिहार जाति की अच्छी खासी संख्या है। राय स्थानीय का मुद्दा भी जोरशोर से उठा रहे हैं।
एकै साधे सब सधै…

देवरिया से पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रमापति राम त्रिपाठी को चुनाव लड़ाकर बीजेपी ने एकै साधे सब सधे की कहावत चरितार्थ की है। सांसद कलराज मिश्र का टिकट कटने की सूचना के बाद से ही यहां दर्जन भर से अधिक लोग उम्मीदवारी का दावा करने लगे। एक दूसरे को बेहतर साबित करने के लिए ये संभावित उम्मीदवार आपस में ही भिड़ने लगे थे। तमाम बार एक दूसरे का विरोध सड़क पर आम हुआ। कलराज मिश्र की जगह पर देवरिया से किसी प्रत्याशी पर निर्णय लेना संगठन के लिए एक दुरूह काम साबित होने लगा। उधर, संतकबीरनगर जूताकांड के बाद सांसद शरद त्रिपाठी व राकेश बघेल के मुद्दे पर यूपी में ही संगठन दो हिस्सों में दिखने लगा। संगठन को कई सीटें प्रभावित होती दिखी। गोरखपुर में भी निषाद पार्टी के शामिल होने के बाद मुश्किलें और बढ़ गई। पार्टी गोरखपुर की सीट दूसरे को देना नहीं चाहती थी। ऐसे में संगठन ने संतकबीरनगर के निवर्तमान सांसद शरद त्रिपाठी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष पिता को देवरिया भेजकर सभी समीकरणों को साधने की कोशिश की। हुआ यह कि संतकबीरनगर से जूताबाज सांसद का टिकट भी कट गया, इससे दूसरा पक्ष खुश हो गया। देवरिया में सभी दावेदारों को दरकिनार कर संगठन के वरिष्ठ व्यक्ति को भेजकर सार्वजनिक विरोध का सामना करने से पार्टी बच गई। पार्टी ने गोरखपुर को सीट को अपने पास रख लिया और निषाद पार्टी को खुश करते हुए संतकबीरनगर से प्रवीण निषाद को प्रत्याशी बना लिया।

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