scriptआशा किन्नर, जिसके आगे धराशायी हो गए थे योगी के जिले के सियासी योद्धा, बन गई थीं मेयर | Kinnar Asha devi won mayor election In gorakhpur 2001 | Patrika News

आशा किन्नर, जिसके आगे धराशायी हो गए थे योगी के जिले के सियासी योद्धा, बन गई थीं मेयर

locationगोरखपुरPublished: Oct 28, 2017 01:16:01 pm

2001 में मेयर चुनाव की घोषणा होते ही गोरखपुर में राजनैतिक सरगर्मियां भी तेज़ हो गई थी। हर राजनैतिक दल अपनी बिसात बिछाने को आतुर था…

asha devi

गोरखपुर में जब किन्नर आशा देवी बनीं पहली किन्नर मेयर

Dheerendra Vikramadittya Gopal

गोरखपुर. साल 2001, 21 वीं सदी में हम सब पहुंच चुके थे। दो सदियों को जीने वाली पीढ़ी गोरखपुर में भी एक इतिहास बना रही थी। इतिहास सदी के इस शुरूआती साल (2001) को चाहे जिस रूप में याद करे, लेकिन गोरखपुर इसे एक राजनैतिक सबक वाले वर्ष के रूप में आइना दिखाने वाले साल के रूप में याद करता है। यह वह दौर था जब बीजेपी में अंतर्कलह चरम पर था। योगी आदित्यनाथ की हिन्दू युवा वाहिनी अपनी ज़मीन मजबूत करने में जुटी थी। ठाकुर वर्चस्व वाली राजनीति फिर से ब्राम्हण वर्चस्व को चुनौती देने की तैयारी में थी। लेकिन इस राजनैतिक पेशबंदी से जनता ऊब चुकी थी। कहते हैं मौका और दस्तूर बना गोरखपुर का मेयर चुनाव। इस चुनाव में एक तीर से कई शिकार हुए और यही से राजनीति की एक नई इबारत भी लिखी गई। 2001 में मेयर चुनाव की घोषणा होते ही गोरखपुर में राजनैतिक सरगर्मियां भी तेज़ हो गई थी। हर राजनैतिक दल अपनी बिसात बिछाने को आतुर था। लेकिन दलों में अंतर्कलह भी चरम पर।
उधर, जनता भी राजनैतिक दलों को सबक सिखाने को मन बना चुकी थी, लेकिन उनके पास कोई विकल्प भी नहीं था। लेकिन जनता के इस आक्रोश को और हवा दिया समाज के कुछ प्रबुद्धजनों ने। राजनैतिक दलों का प्रतीकात्मक विरोध करने के लिए एक विकल्प दिया। विकल्प के रूप में कुछ लोगों ने किन्नर आशा देवी उर्फ़ अमरनाथ यादव को प्रत्याशी बनवा दिया। किन्नर आशा देवी के मैदान में आने तक किसी को यह अहसास नहीं था कि वह लड़ाई में रहेंगी। खुद चुनाव लड़ाने का सुझाव देने वालों तक को नहीं। जानकार बताते हैं कि, मजाक-मजाक में शुरू हुआ चुनाव अचानक से परिवर्तन का वाहक बनने लगा।
राजनैतिक दलों को सबक सिखाने के लिए जनता की सहानुभूति आशा देवी के साथ होने लगी। जब किन्नर शबनम मौसी गोरखपुर प्रचार करने पहुंची तो रेलवे स्टेशन से नगर निगम तक ऐतिहासिक भीड़ थी। यह भीड़ राजनैतिक दलों के प्रति अपने गुस्से और परिवर्तन की कहानी कह रही थी। आशा देवी को चूड़ी चुनाव चिन्ह मिला था। चुनाव हुआ फिर परिणाम की प्रतीक्षा होने लगी। परिणाम आया तो सभी राजनैतिक दलों के प्रत्यशियों की जमानत जब्त थी। जनता मठाधीशी को सबक सिखा चुकी थी।
किन्नर आशा देवी गोरखपुर की मेयर बन चुकी थीं। लालबत्ती वाले रिक्शा से चलती थीं। आशा देवी आशा देवी जब चुनी गईं तो उन्होंने भी राजनीतिक दलों को सबक सिखाया तो एक संदेश भी दिया। कहते हैं कि, जनता अपना प्रतिनिधि चुन देती है। उसके बाद वह प्रतिनिधि खुद को जनता से सर्वोपरि होने की कोशिश में लग जाता। अचानक से लक्ज़री गाड़ी, आलिशान बंगले उसकी ठाठ में जुड़ जाते। लेकिन मेयर बनने के बाद किन्नर आशा देवी ने इन सबसे परहेज किया। वह जीतने के बाद रिक्शा से नगर निगम पहुंची। वह एक रिक्शा बनवाईं जिसपर लालबत्ती लगी हुई थी। लाल बत्ती लगा रिक्शा शहर के सड़कों पर जब दौड़ने लगा तो लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गया।
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