scriptकश्मीर में बारुद फैल चुका था, वहां कभी शिव-शक्ति की उपासना होती थीः विधानसभा अध्यक्ष | UP Vidhansabha Speaker big statement on Kashmir issue in Gorakhnath | Patrika News

कश्मीर में बारुद फैल चुका था, वहां कभी शिव-शक्ति की उपासना होती थीः विधानसभा अध्यक्ष

locationगोरखपुरPublished: Sep 14, 2019 02:32:00 am

जम्मू-कश्मीर से धारा 370 व 35 ए हटाना ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद
गोरखनाथ मंदिर में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद एवं संस्कृति पर बोल रहे थे विधानसभा अध्यक्ष हृदयनारायण दीक्षित

कश्मीर में बारुद फैल चुका था, वहां कभी शिव-शक्ति की उपासना होती थीः विधानसभा अध्यक्ष

कश्मीर में बारुद फैल चुका था, वहां कभी शिव-शक्ति की उपासना होती थीः विधानसभा अध्यक्ष

यूपी विधानसभा के अध्यक्ष माननीय हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि उत्तर भारत से 6 जिज्ञासु पैदल चलते कश्मीर पहुंचे थे। वहाॅ ऋषि के आश्रम में जाकर ऋषि से प्रश्न करते है। ऋषि एक वर्ष बाद प्रश्नों का उत्तर देने के लिए कहते है। जिज्ञासु 1 वर्ष तक प्रतिक्षा करते है। इस प्रकार जिस कश्मीर ने जिज्ञासा से भरा प्रश्नोपनिषद् दिया, जिस कश्मीर में शिव एवं शक्ति की उपासना होती रही वहा बारूद फैल चुका था। जब केन्द्र की सरकार ने धारा 370 और 35 ए हटाया तो पूरे देश ने इसे स्वीकारा। यही हमारा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद है।
Read this also: धर्म भारत का प्राण है और संस्कृति भारत की आत्माः योगी आदित्यनाथ

विधानसभा अध्यक्ष शुक्रवार को गोरखनाथ मंदिर में आयोजित ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ महाराज की 50वीं एवं महन्त अवेद्यनाथ महाराज की पांचवीं पुण्यतिथि समारोह में ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद एवं संस्कृत’ विषय पर आयोजित सम्मेलन में बतौर मुख्य वक्ता वक्तव्य दे रहे थे। इस दौरान जम्मू-काश्मीर विषय पर बोलते हुए उन्होंने ये बातें कहीं।
उन्होंने कहा कि संस्कृत बढ़ने के साथ संस्कृति बढ़ेगी और तभी ‘परमवैभवम्मेंतत्वराष्ट्रम्’ तक पहुंचने का हमारा लक्ष्य पूरा होगा। उन्होंने कहा कि हमारे पास दुनिया का प्राचीनतम और श्रेष्ठतम ज्ञान का भण्डार, ग्रन्थ संस्कृत में ही है। भारत ऋषियों-मुनियों और तपस्वियों का देश है। यह नदियों-पर्वतों का देश है। यह आदि संस्कृति और दुनियां की प्राचीनतम भाषा संस्कृत का देश है। हमने छः हजार साल से संस्कृति को संजोकर विस्तृत किया। अपनी ज्ञान परम्परा के ग्रन्थों को संजोकर आजतक रखा हैं, वे सभी ग्रन्थ अथवा यह कहें कि ज्ञान परम्परा संस्कृत भाषा में हंै। यही कारण है कि हमारी संस्कृति और संस्कृत एक दूसरे के पूरक हैं। हमने लिखित और मौखिक दोनो परम्पराओं के माध्यम से अपनी सांस्कृतिक धरोहर बनाए रखी हैं। भारत का आदमी अपने ज्ञान को जीता है। इस ज्ञान की अथवा जीवन की भाषा संस्कृत ही हैं। अतः यदि संस्कृत नहीं रहेगी तो संस्कृति भी हम नहीं बचा सकते। भारतीय संस्कृति की रक्षा की आवश्यक शर्त है संस्कृत भाषा की रक्षा। भारत संस्कृत और संस्कृति को छोड़कर जिन्दा नहीं रह सकता।
HridayNarayan Dikshit
विधानसभा अध्यक्ष हृदयनारायण दीक्षित ने कहा कि संस्कृत माता एवं संस्कृति उसकी पुत्री है। दोनों का प्रभाव साथ-साथ पड़ता है। भारत का राष्ट्रवाद अन्य देशों के राष्ट्रवाद से पृथक है क्योकि भारत के राष्ट्रवाद में संस्कृति महत्वपूर्ण है जबकि अन्य देशों में निश्चित भूभाग और वहाॅ का राजा महत्वपूर्ण है। सर्वप्रथम ऋग्वेद में कई बार राष्ट्र का वर्णन हुआ है। अथर्ववेद में राष्ट्र की परिभाषा देते हुए कहा गया है कि त्याग, तपश्या और साहचर्य से राष्ट्र का जन्म हुआ है। वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, वन्देमातरम् सभी में राष्ट्र को माता माना गया है। भारत माॅ हमारे प्राणों में वशी है। यही कारण है भारत मां की स्वतंत्रता के लिए लाखों लोगों ने अपने प्राणों की बलि दी। ये सभी प्रेरणा संस्कृत साहित्य से ही प्रदत्त है।
उन्होंने कहा कि संस्कृत के ऋग्वेद में सबसे पहले विज्ञान का दृष्टिकोण दिखा। काल की गणना, सूर्य के गति का ज्ञान के साथ वैज्ञानिक जिज्ञासा संस्कृत साहित्य में सर्वत्र विद्यमान है। उपनिषदों में जिज्ञासु प्रश्न पूछता है और ऋषि उसका उत्तर देता है। हम जिज्ञासु राष्ट्र है, हम अंधविश्वासी नही है। प्रश्न की परम्परा एवं आध्यात्मिक आस्था केवल हमारी संस्कृति में है जिसे संस्कृत संरक्षित करते आ रही है।
Read this also: नवोदय विद्यालय के छात्र आलू की सब्जी के शोरबे में अंडा व पनीर देने पर भड़के, हंगामा, र्इंट-पत्थर फेंका गया

संस्कृत भाषा जीवित होगी तभी भारतीय संस्कृति अक्षुण्य होगी

मुख्य अतिथि दिगम्बर अखाड़ा, अयोध्या के महन्त सुरेशदास महाराज ने कहा कि संस्कृत भाषा जीवित होगी तभी भारतीय संस्कृति अक्षुण्य होगी। संस्कृत देववाणी है, भारत की वाणी है, मानवता की वाणी है, करूणा की वाणी है, दया की वाणी है, अहिंसा की वाणी है और फिर ज्ञान-विज्ञान की वाणी है। बताया कि ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ महाराज ने कहा था कि संस्कृत भाषा समस्त ज्ञान तथा विज्ञान का बृहद भण्डार है। इस देश के वासी तब तक प्रथम श्रेणी के वैज्ञानिक नही बन सकते जब तक कि वे संस्कृत मे उपलब्ध प्राचीन भारतीय विज्ञानों का उचित अध्ययन नही कर लेते। वे कहा करते थे संस्कृत भारतीय भाषाओं की जननी है। उनकी पुण्यतिथि पर हम ‘संस्कृत और संस्कृति’ की रक्षा का संकल्प लेकर ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित कर सकते है। उन्होंने आगे कहा कि युगपुरूष ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ ने कहा था कि भारत वह भूमि है जहाॅ से ज्ञान और दर्शन की लहरें उठती है। दोनों महन्त जी महाराज भारत को जगद्गुरू के रूप में पुर्नप्रतिष्ठित होना देखना चाहते थे। वे जीवन पर्यन्त इसी उद्देश्य से संस्कृत एवं संस्कृति के उत्थान के लिये प्रयत्न करते रहें। उन्हे वास्तविक श्रद्धांजलि उनके इन्ही प्रयत्नों को आगे बढ़ाकर ही दी जा सकती है।
Read this also: तुम्हारी बेटी को मारकर ले लिया बदला, तुम एेसे बाप को हो जिसे बेटी की लाश भी नसीब नहीं होगी

महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् के अध्यक्ष एवं पूर्व कुलपति प्रो. उदय प्रताप सिंह ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि संस्कृत भारतीय चेतना और सनातन स्रोत की अजस्र धारा है। सनातन संस्कृत का आधार स्तम्भ है। यदि किसी को भारत तथा भारतीयता को समझना है तो संस्कृत की शरण लेनी होगी। संस्कृत भाषा और भारतीय संस्कृति एक दूसरे की पूरक है। पश्चिमी अवधारणा के विपरीत भारतीय मनीषियों ने राष्ट्र को एक भू-सांस्कृतिक ईकाई माना है। ऐसे में संस्कृति के बगैर भारत राष्ट्र की कल्पना बेमानी है। भारत राष्ट्र तभी तक जीवित है जब तक भारतीय संस्कृति सुरक्षित है और संस्कृति की सुरक्षा संस्कृत भाषा की रक्षा से ही सम्भव है। विपरीत परिस्थितियों में भी यदि भारत राष्ट्र सुरक्षित रहा तो केवल भारतीय संस्कृति की मौलिक ताकत के कारण।
विशिष्ट वक्ता डीडीयू गोरखपुर के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष प्रो. मुरली मनोहर पाठक ने कहा कि राष्ट्रवाद किसी राष्ट्र के प्रति उसके निवासियों के हृदय में प्रेम की भावना का नाम है। किन्तु यह राष्ट्रवाद केवल भावना से ही नही अपितु उसके प्रति समर्पण से सिद्ध होता है। हमारे वेदों में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का बीज मिलता है। ‘संगच्छध्वं संवदध्वम्’ जैसे मंत्र सम्पूर्ण राष्ट्र को एक मार्ग पर चलने व बोलने की भावना को जागृत करता है। यदि भारत वर्ष में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को पुनः एक बार जन-जन में जागृत करना है तो हम सभी को न केवल संस्कृत भाषा का अध्यन करना होगा वरन् उसमें निहित सांस्कृतिक भावना को अपने जीवन में आत्मसात् भी करना होगा।
Read this also: पूर्व कमिश्नर की मृत पत्नी हो गईं ‘जिंदा’ और कर दीं अरबों की बेशकीमती जमीन रजिस्ट्री!

कश्मीर में बारुद फैल चुका था, वहां कभी शिव-शक्ति की उपासना होती थीः विधानसभा अध्यक्ष
समारोह का शुभारम्भ दोनों ब्रह्मलीन महाराज को पुष्पांजलि के साथ हुआ। रंगनाथ त्रिपाठी द्वारा वैदिक मंगलाचरण, पुनीष पाण्डेय द्वारा गोरक्षाष्टक पाठ प्रस्तुत किया गया। संस्कृत गीत डाॅ. प्रांगेश मिश्र द्वारा प्रस्तुत किया गया। मंच संचालन डाॅ. श्रीभगवान सिंह ने किया।
इस अवसर पर महन्त शेरनाथ, महन्त शिवनाथ, महन्त मिथलेशनाथ, योगी कमलनाथ, महन्त राममिलनदास आदि उपस्थित थे।
श्रीगोरखनाथ संस्कृत विद्यापीठ के प्राचार्य डाॅ. अरविन्द चतुर्वेदी एवं महाराणा प्रताप इण्टर कालेज के प्रधानाचार्य अरूण कुमार सिंह, महाराणा प्रताप बालिका इण्टर कालेज की प्रधानाचार्या कृष्णा चटर्जी आदि ने अतिथियों का स्वागत किया।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो