यह प्रत्याशी थे पूर्व सांसद बालेश्वर यादव। मुलायम सिंह यादव के खास सिपहसलारों में शुमार बालेश्वर यादव निर्दल ही जनता के बल पर ताल ठोक चुके थे। इधर, सपा मुखिया ने भी इस सीट पर अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया, इस सीट से सीधे उनको चुनौती मिली थी। लेकिन जनता तो मन में कुछ और ठान चुकी थी। उस चुनाव को याद करते हुए कई जानकार बताते हैं कि बालेश्वर यादव को 2004 में जो जनसमर्थन मिल रहा था वह अकल्पनीय था। उनको चौक-चौराहों पर सिक्कों से तौला जाने लगा। जहां जाते लोग अपनी क्षमतानुसार चंदा देते, चुनाव के लिए संसाधन उपलब्ध कराते। लोग अपने धन-संसाधन से खुद चुनाव लड़ने लगे।
परिणाम आया तो बालेश्वर यादव निर्दल ही सांसद बन चुके थे। उनको 206850 वोट मिले थे। कांग्रेस के प्रत्याशी पूर्व गृह राज्य मंत्री आरपीएन सिंह दूसरे स्थान पर रहे। जबकि सपा प्रत्याशी पांचवें पायदान पर थे। सपा प्रत्याशी रामअवध यादव को महज 66551 मत मिले। इस चुनाव में बसपा के प्रत्याशी नथुनी प्रसाद कुशवाहा को 168869 मत तो भाजपा के प्रत्याशी चार बार सांसद रहे रामनगीना मिश्र को 115969 मत मिले थे।
चुनाव जीतकर वह संसद में पहुंचे। कुछ ही दिनों बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गए। 2009 में कांग्रेस के सिंबल पर देवरिया लोकसभा चुनाव लड़े लेकिन जीत नहीं पाए। चुनाव बाद ही कांग्रेस से मोहभंग हो गया और पूरे सम्मान के साथ समाजवादी पार्टी में वापसी कर ली और लगातार सक्रिय हैं।
लोकदल से राजनीति की शुरूआत करने वाले बालेश्वर यादव साल 1985 में पडरौना से विधायक बने थे। वह मुलायम सिंह यादव के करीबियों में हमेशा से गिने जाते रहे। 1989 में जनता दल से पडरौना लोकसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरे और आसानी से जीत गए। दो बार विधायक और दो बार सांसद रह चुके बालेश्वर यादव सपा के स्थापना काल से जुडे़ रहे हैं। वह देश के कुछ गिने चुने प्रतिनिधियों में हैं जो निर्दल लोकसभा चुनाव जीतकर संसद में पहुंचा हो। अस्सी साल का यह कद्दावर सपा नेता एक बार फिर लोकसभा चुनाव में सक्रिय है।
परिणाम आया तो बालेश्वर यादव निर्दल ही सांसद बन चुके थे। उनको 206850 वोट मिले थे। कांग्रेस के प्रत्याशी पूर्व गृह राज्य मंत्री आरपीएन सिंह दूसरे स्थान पर रहे। जबकि सपा प्रत्याशी पांचवें पायदान पर थे। सपा प्रत्याशी रामअवध यादव को महज 66551 मत मिले। इस चुनाव में बसपा के प्रत्याशी नथुनी प्रसाद कुशवाहा को 168869 मत तो भाजपा के प्रत्याशी चार बार सांसद रहे रामनगीना मिश्र को 115969 मत मिले थे।
चुनाव जीतकर वह संसद में पहुंचे। कुछ ही दिनों बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गए। 2009 में कांग्रेस के सिंबल पर देवरिया लोकसभा चुनाव लड़े लेकिन जीत नहीं पाए। चुनाव बाद ही कांग्रेस से मोहभंग हो गया और पूरे सम्मान के साथ समाजवादी पार्टी में वापसी कर ली और लगातार सक्रिय हैं।
लोकदल से राजनीति की शुरूआत करने वाले बालेश्वर यादव साल 1985 में पडरौना से विधायक बने थे। वह मुलायम सिंह यादव के करीबियों में हमेशा से गिने जाते रहे। 1989 में जनता दल से पडरौना लोकसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरे और आसानी से जीत गए। दो बार विधायक और दो बार सांसद रह चुके बालेश्वर यादव सपा के स्थापना काल से जुडे़ रहे हैं। वह देश के कुछ गिने चुने प्रतिनिधियों में हैं जो निर्दल लोकसभा चुनाव जीतकर संसद में पहुंचा हो। अस्सी साल का यह कद्दावर सपा नेता एक बार फिर लोकसभा चुनाव में सक्रिय है।
बहरहाल, उस चुनाव के बाद दो लोकसभा चुनाव यहां की जनता देख चुकी आैर एक चुनाव सिर पर है। कुशीनगर की राजनीति को करीब से देखने-समझने वाले बताते हैं कि इस क्षेत्र में वह लोकसभा चुनाव अविस्मरणीय है। शायद जनता अपनी ताकत का एहसास बड़े राजनेताआें को करा रही थी।