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प्रो.सभाजीत मिश्र ने कहा कि योग की जितनी विधायें हैं, उनमें सबका लक्ष्य आत्मसाक्षात्कार ही है। शरीर से लेकर आत्मा तक की समग्रता को एक साथ करने की विधा ही योग है। योग दर्शन में देह की वास्तविका को स्वीकारते हुए उसको साधन के रूप में प्रयोग कर आत्मकल्याण की सिद्धि करते है। इसलिए भी इस दर्शन का महत्व भी बढ़ जाता है क्योंकि यह अमरत्व का साधन है। श्रीमद् भगवद् गीता में भी भगवान का संदेश है कि जीवन की साधारण क्रियाओं में भी परमार्थ का दर्शन करना ही योग है।
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विशिष्ट वक्ता के रूप में श्री गोरखनाथ मन्दिर के प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ ने कहा कि योग भारतीय संस्कृति एवं परम्परा में अनादिकाल से ईश्वर के द्वारा प्रदत्त एक वरदान है। जिसके माध्यम से हमारे ऋषियों ने मानव जीवन को सरलता से जीते हुए आत्मसाक्षात्कार का मार्ग बताया है। उन्होनें कहा कि योग मानव जीवन की एक ऐसी तकनीक है।
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अध्यक्षता करते हुए पूर्व कुलपति एवं महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् के वरिष्ठ उपाध्यक्ष प्रो. उदय प्रताप सिंह ने एक कहानी के माध्यम से कहा कि कोई भी व्यक्ति मजबूत मन व स्थिर बुद्धि को पाना चाहता है तो उसे योग की शरण में जाना चाहिए। क्योंकि जीवन में बिना मजबूत मन व स्थिर बुद्धि के सुख पाना सम्भव नहीं है। व्यक्ति के शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा का समुच्चय ही योग है। योग की क्रियाएं शरीर को शुद्ध करके, मन को मजबूत करके, बुद्धि को स्थिर करके आत्मा के साथ साक्षात्कार कराती हैं। यही उपदेश गीता में भगवान श्री कृष्ण ने भी दिया है।
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समारोह का संचालन श्री गोरक्षनाथ संस्कृत विद्यापीठ के दर्शन विभागाध्यक्ष डाॅ. प्रांगेश कुमार मिश्र तथा आभार ज्ञापन योगाचार्य एवं योग शिविर के प्रभारी डाॅ. चन्द्रजीत यादव ने किया।
अतिथियों का स्वागत डाॅ. रोहित कुमार मिश्र ने किया।
इस अवसर पर प्राचार्य डाॅ. प्रदीप राव, डाॅ. अरविन्द कुमार चतुर्वेदी, डाॅ. शैलेन्द्र प्रताप सिंह, डाॅ.रामजन्म सिंह, डाॅ. अविनाश प्रताप सिंह, डाॅ. दिग्विजय शुक्ल, डाॅ. रोहित कुमार मिश्र, डाॅ. फूलचन्द गुप्त, कलाधर पौडयाल, दीपनारायण, शशि कुमार, पुरूषोत्तम चैबे, नित्यानन्द तिवारी इत्यादि उपस्थित रहे।
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कार्यशाला के दूसरे सत्र को संबोधित करते हुए गोविवि के दर्शनशास्त्र के विभागाध्यक्ष प्रो.द्वारिकानाथ ने कहा कि कृष्ण, बुद्ध, पतंजलि एवं भगवान गोरक्षनाथ जी योग महानायक के रूप अवतार माना गया है। योग किसी व्यक्ति, जाति, धर्म एवं सम्प्रदाय से सम्बन्धित नहीं है। योग रष्ट्रीय नहीं अपितु अन्र्राष्ट्रीय समस्या का समाधान है। योग का अनेक आयाम एवं मार्ग है।
द्वितीय सत्र के सैद्धान्ति सत्र में “राष्ट्र निर्माण में योग की उपादेयता” विषय पर अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि लक्ष्य ईश्वरत्व की प्राप्ति ही योग है। योग कल्पना नहीं पूर्णरूप से विज्ञान है। योग का सिद्धान्त आदिकाल से ऋषि परम्परा, वैदिक परम्परा से प्राप्त होता है।