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राम के वनवास लौटने से पहले भी मनाई जाती थी दीपावली, जानिए यह वजह

locationग्रेटर नोएडाPublished: Nov 05, 2018 10:31:54 am

Submitted by:

virendra sharma

नोएडा. खुशी के प्रतीक का पर्व दीपावली आदि काल से मनाई जाती है। इस दिन कई इतिहास भी जुड़े है।

नोएडा. खुशी के प्रतीक का पर्व दीपावली आदि काल से मनाई जाती है। इस दिन कई इतिहास भी जुड़े है। एक तरफ जहां भगवान् श्री कृष्ण इसी दिन शरीर मुक्त हुए। जैन मत के अनुसार अंतिम तीर्थकर भगवान् महावीर, महर्षि दयानंद सरस्वती ने दीपावली को ही निर्वाण प्राप्त किया। लेकिन हिन्दुओं का मत है कि दीपावली के दिन रामचंद्र जी सीता और लक्ष्मण के साथ विजयी होकर अयोध्या वापस लौटे थे। अयोध्या में उनके लौटने की खुशी में घी के दीपक जलाए गए और खुशियां मनाई गई। लेकिन दीपावाली उससे पहले भी मनाई जाती थी।
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सबसे पहले दीपावली सतयुग में ही मनाई गई। जब देवता और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो ऐरावत, चंद्रमा, परिजात, रंभा, वारुणी आदि 14 रत्नों के साथ हलाहल विष भी निकला। साथ ही धन्वंतरि भी प्रकट हुए। इसी से तो स्वास्थ्य के आदिदेव धन्वंतरि की जयंती से दीपोत्सव का महापर्व शुरू हो जाता है। उसके बाद में महामंथन से देवी महालक्ष्मी का पाताल लोक से आई थी। सभी देवी देवाताओं ने उनके स्वागत में पहली दीपावली मनाई थी।
रामचंद्र के अयोध्या लौटने क खुशी में दीपावली मनाई जाती है तो राम की पूजा क्यों नहीं की जाती। इस दिन लक्ष्मी पुत्र गणेश, विष्णु पत्नी लक्ष्मी, सरस्वती की पूजा क्यों की जाती है। यह समुद्रमंथन से जुडा हुआ किस्सा है। उस दौरान देवताओं और राक्षसों के बीच आए दिन युद्ध होता रहता था। राक्षसों पर देवता भारी पड़ते थे तो कभी राक्षस। एक बार देवता राक्षसों पर भारी पड़ रहे थे। जिसके कारण राक्षस पाताल लोक में भागकर छिप गए।
देवताओं से राक्षस शाक्तिशाली नहीं थे। देवाताओं पर महालक्ष्मी की कृपा रहती थी। लक्ष्मी अपने 8 रूपों के साथ इंद्रलोक में थी। जिसके कारण देवता अंहकार से भरे हुए थे। दुर्वासा ऋषि एक दिन समामन की माला पहनकर स्वर्ग की तरफ जा रहे थे। रास्ते में इंद्र आते हुए दिखाई दिए। ये अपने ऐरावत हाथी पर सवार थे। इंद्र को देखकर ऋषि ने प्रसन्न होकर गले की माला उतार कर इंद्र की ओर फेंकी। इंद्र ने माला की तरफ से ध्यान नहीं दिया।
यह मामला ऐरावत के पैर तले कुचल गई। इससे दुर्वासा क्रोधित हो गए। दुर्वासा ने इंद्र को श्राप देते हुए कहा कि जिस अंहकार में डूबेे हो, वह तुरंत पाताललोक चली जाएगी। श्राप के कारण लक्ष्मी स्वर्गलोक छोड़कर पाताल लोक चली गई। लक्ष्मी के जाने के बाद में वता कमजोर हो गए। उधर राक्षस माता लक्ष्मी को देखकर खुश हो गए। इंद्रलोक पाने की जुगत राक्षस भिड़ाने लगे। उधर लक्ष्मी के जाने के बाद में इन्द्र देवगुरु बृहस्पति और अन्य देवाताओं के साथ ब्रह्माजी के पास गए तो ब्रह्माजी ने लक्ष्मी को वापस बुलाने के लिए समुद्र मंथन की युक्ति बताई।
लक्ष्मी को बुलाने के लिए देवताओं और असुरों के बीच मेंं समुद्र मंथन हुआ। इस मंथन से एक दिन महालक्ष्मी निकली। उस दिन कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या थी। लक्ष्मी को पाकर देवता एक बार फिर से बलशाली हो गए। लक्ष्मी के आगमन पर खुशी मनाई गई। देवताओं ने उनकी आराधना की। तभी से कार्तिक आमावस्या के दिन महालक्ष्मी की पूजा की जाती है। अंहकार में कोई गलती न कर दें, इसलिए सरस्वती और गणेश जी की पूजा की जाती है।

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