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EXCLUSIVE—Dussehra 2018: यूपी के इस मंदिर में राम के साथ ही होगी रावण की भी पूजा
दशहरा पर देशभर में जगह-जगह रामलीला का मंचन शुरू होता होता है। दशहरा के त्योहार को बुराई पर अच्छाई की जीत मानकर रावण का पुतला दहन किया जाता है। रावण के पुतला दहन करने की कुप्रथा का विरोध शुरू हो गया है। श्री मोहन योग आश्रम (ट्रस्ट) बिसरख धाम के ट्रस्टी अशोक महाराज ने बताया कि दशानन के कारण गांव के लोग खुद को गौरवान्वित महसूस करते है। लंका पर विजय पताका फहराकर राजनैतिक सूझबूझ और पराक्रम का परिचय रावण ने दिया था। यह माना जाता है कि रावण ने राक्षस जाति का उद्धार करने के लिए सीता का हरण किया था। साथ ही उन्होंने बुद्रिमता और प्राक्रम का परिचय दिया था। उन्होंने बताया कि पुराणों में जिक्र किया गया है कि गांव के ही मंदिर में शिव भगवान ने रावण को दर्शन दिए थे। उन्होंने बताया कि रावण के पुतला दहन पर रोक लगाकर इस प्रथा को समाप्त किया जाना जरुरी है। उन्होंने कहा कि रावण जैसे परम ज्ञानी विद्वान ब्रह्मपुत्र व ब्राह्मण का पुतला दहन नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि यहीं वजह है कि उनके गांव में रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता है। साथ ही 60 साल से गांव में रामलीला का मंचन भी नहीं हुआ है। बताया गया है कि 60 साल पहले गांव में पहली बार रामलीला का आयोजन किया गया था। उस समय गांव में एक शख्स की मौत हो गई थी। मौत के बाद में रामलीला का मंचन बंद करा दिया गया। बिसरख गांव में तभी से रामलीला का आयोजन नहीं होता है।
गांव में अभी मिलते है शिवलिंग रावण के गांव बिसरख का जिक्र शिवपुराण में भी होता है। त्रेता युग में इस गांव में ऋषि विश्रवा के घर घर रावण का जन्म हुआ था। उसके बाद में रावण ने शिवलिंग की स्थापना गांव में की थी। बताया जाता है कि आज भी गांव में खुदाई के दौरान जमीन से शिवलिंग निकलते है।
इस शिवलिंग की गहराई नहीं जान सका कोई बिसरख गांव में प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर की स्थापना त्रेता युग में की गई थी। आज भी गांव में मंदिर पूरे वैभव के साथ विराजमान है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग की गहराई इतनी है कि खुदाई के बाद भी उसका कहीं छोर नहीं मिला है। यह अष्टभुजी शिवलिंग है। पुराणों की माने तो गांव के इसी मंदिर में शिव ने रावण को दर्शन देकर बुद्रिध्मता और प्रराक्रमी होने का वरदान दिया था।
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