scriptइस गुमनाम ताजमहल को भी एक राजा ने अपनी रानी की प्रेम में करवाया था निर्माण | This Taj Mahal was also built by a king in the love of his queen | Patrika News

इस गुमनाम ताजमहल को भी एक राजा ने अपनी रानी की प्रेम में करवाया था निर्माण

locationग्रेटर नोएडाPublished: Nov 11, 2017 09:42:12 pm

Submitted by:

Iftekhar

कासना का सती निहालदे का मंदिर एक प्रेम की इबारत है।

Greater noida

वीरेंद्र शर्मा, ग्रेटर नोएडा. जब भी प्रेम के प्रतीक की बात की जाए तो कहीं न कहीं ताजमहल का नाम जेहन में आता है। प्रेम की दास्तां बयां करने वाला एक ताजमहल ग्रेटर नोएडा में भी मौजूद है। कासना का सती निहालदे का मंदिर एक प्रेम की इबारत है। राजस्थान के कीचड़गढ़ के राजकुमार नुरसुल्तान ने अपनी पत्नी की याद में मंदिर को बनाया था। उस दौरान दनकौर से लेकर सूरजपुर तक फैले हुए बाग में 9 लाख पेड़ हुआ करते थे। कासना को उस समय कौशलगढ़ के नाम से जाना जाता था। 

ऐसे शुरू हुई प्रेम कहानी
कासना कभी मघ की राजधानी हुआ करती थी। हजारों साल पहले नरसुल्तान और सती निहालदे के बीच प्रेम हुआ। इस प्रेम कहानी को बयां करता सती मंदिर आज भी कासना गांव में मौजूद हैं। राजा मघ की बेटी निहालदे नौलखा बाग में एक दिन अपनी सहेलियों के साथ झूला झूल रही थी। बताया जाता है कि निहालदे काफी सुंदर थी। राजस्थान के कीचड़गढ़ का राजकुमार नरसुल्तान उसपर मोहित हो गया था। नरसुल्तान ने उसी दौरान निहालदे के सामने शादी का प्रस्ताव रखा, जिसे राजा मघ ने स्वीकार किया और दोनों का विवाह करा दिया था। इसके बाद सुल्तान अपनी रानी को लेकर केशवगढ़ पहुंचा।


नरसुल्तान को मारने का किया था प्रयास
नरसुल्तान के साथ में केशवगढ़ के राजकुमार फूल कंवर भी शिकार खेलता हुआ नौलखा में आया था। दोनों ही बाग में आराम करने लगे थे। दोनों राजकुमार के बीच में गहरी दोस्ती थी। उधर, फूल कंवर भी निहालदे की सुंदरता पर मोहित हो गया था। उसके मन में निहालदे को पाने का लालच आ गया। उसने फुलकंवर ने नरसुल्तान को मारने का प्रयास किया, लेकिन नरसुल्तान बच गया। यह बात उसने केशवगढ़ के राजा को बताई, लेकिन राजा ने अपने पुत्र का पक्ष लेते हुए नरसुल्तान को वनवास का हुक्म सुना दिया। उधर निहालदे ने भी नरसुल्तान के साथ केशवबढ़ से जाने की जिद की थी, लेकिन नरसुल्तान ने सावन माह में तीज पर वापस आने का वादा किया था।

वियोग में हो गई थी सती
केशवगढ़ छोड़ने के बाद में नरसुल्तान नरवरगढ़ में मारु के यहां पहुंच गया था। उधर निहालदे भी अपने पिता राजा मघ के यहां कासना गांव आ गई। वियोग के चलते कई बार निहालदे ने नरवरगढ़ नरसुल्तान को पत्र लिखा था, लेकिन मारु ने यह बात छूपाई रखी, लेकिन एक दिन निहालदे का पत्र उसके हाथ में आ गया। इससे उसे पता चला की सुल्तान की पत्नी उसके वियोग में दिन काट रही है। तीज के दिन उसके न पहुंचने पर सती हो जाएगी। तीज पर सुल्तान को निहालदे के पास आने में कुछ देर हो गई और इधर निहालदे ने अपने प्रण के अनुसार खुद को जलती हुई चिता में भस्म कर दिया। रानी निहालदे की याद में सुल्तान ने यहां मंदिर बनवाया, जो आज भी क्षेत्र में सती के मंदिर के रूप में विख्यात है।

पर्यटक स्थल डेवलप करने की मांग
प्रेम में त्याग का प्रतीक सती निहालदे मंदिर को इतिहास के पन्ने से जोड़ा जा चुका है। आज यह ऐतिहासिक धरोहर प्रशासन के रेकॉर्ड में भी दर्ज है। राजस्थान के लाल बलुआ पत्थर के इस्तेमाल कर राजस्थानी कला के अनुसार ही उस समय सती निहालदे मंदिर का निर्माण कराया गया था। जर्जर हालत में पहुंच चुके सती निहालदे मंदिर का जीर्णोधार अथॉरिटी की तरफ से कराया जा रहा हैं। क्राइम फ्री इंडिया फोर्स के राष्ट्रीयध्यक्ष अमित पहलवान ने बताया कि चार साल की लंबी लड़ाई के बाद में अथॉरिटी ने मंदिर की सुध ली हैं। फिलहाल अथॉरिटी इाके निर्माण में करीब डेढ़ करोड़ रुपये खर्च कर रही हैं। उन्होंने बताया कि पर्यटक स्थल बनवाने की मांग भी की जा चुकी हैं। पर्यटक विभाग की टीम भी इस मंदिर का निरीक्षण कर चुकी हैं।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो