महिलाओं के हाथों नहीं मरना चाहते आतंकी
इनके हाथों में मेहंदी, नेल पॉलिश, आंखों में काजल व होठों पर लिपिस्टिक लगी हो लेकि सेना की वर्दी में तैनात इन महिलाओं के हाथ में आधुनिक हथियार रहते हैं। इन महिलाओं के सामने आतंकवादी आने से कतराते हैं। दरअसल, ये आतंकी इनके हाथों नहीं मरना चाहते। उन्हें लगता है कि महिला के हाथ से मारे गए, तो जन्नत नसीब नहीं होगी। जिहाद की राह पर निकले इन आतंकियों का मानना है कि महिलाओं के हाथों मरकर दौजख की आग का सामना करना पड़ेगा।
महिला लड़ाकों की पुरानी परंपरा
पिछले 100 सालों का रिकॉर्ड देखें तो कुर्द समाज में महिला लड़ाकों की पुरानी परंपरा है।कुर्दों ने ओटोमन साम्राज्य से लड़ाई की, ब्रिटेन से लड़े. सद्दाम हुसैन के दौर में बाथिस्ट सत्ता से जंग की और अब आईएस से लड़ रहे हैं। बता दें कि इराक में जब सद्दाम हुसैन का दौरान था उस समय सद्दाम की ओर से कुर्दों के खिलाफ नरसंहार अभियान शुरू किया गया था। गांव के गांव जला दिए गए थे, शहर उजाड़ वीरान कर लिए गए, लोगों को उनके घरों से खदेड़ दिया गया। इस दौर में लगभग पौने दो लाख से ज्यादा कुर्दों ने जान गंवाई। उस समय ये कुर्द औरतें अपने पतियों और भाइयों का साथ देती थीं।
कुर्द समाज की रोल मॉडल हैं झिनी शाख
इन महिला लड़ाकों को झिनी शाख कहा जाता है। ये गुरिल्ला वॉर छापामार युद्ध, घात लगाकर हमला करने और फिर गायब हो जाने में पूरी पारंगत हैं। आजादी हासिल करने की उस लड़ाई में इन महिला जांबाजों ने अपने मर्दों का खूब साथ दिया। महिलाओं के इस योगदान के लिए कुर्द लोगों को अपनी औरतों का गर्व है। इन महिलाओं में सब औरतों में एक बात कॉमन है। इन सबको आईएसआईएस से बहुत चिढ़ है। इस चिढ़ का सबसे बड़ा कारण यह है कि आईएस से जुड़े लोगों के एिल महिलाएं केवल सेक्स और गुलामी की चीज हैं। कूर्द महिलाओं को यह मंजूर नहीं है।