– साफ-सफाई, शुद्ध पेयजल, अच्छी सड़कें और परिवहन का जनता को इंतजार
– न स्टेडियम बन पाया और न ही तलघरों में पार्किग, कैसे सुधरे यातायात व्यवस्था
MP की कांग्रेस सरकार मेें तीन मंत्री बावजूद अब तक गुना जिले में नहीं लग पा रहे विकास के पंख
गुना। गुना शहर में रहने वाले हर व्यक्ति का सपना है कि गुना शहर शहर इंदौर-भोपाल की तर्ज पर चमक वाला हो। इसके साथ-साथ इस बात का भी इंतजार है कि उनको साफ-सुथरा पानी कब मिलेगा, डोर-टू डोर कचरे के लिए वाहन कब आएंगे। अच्छी सड़कों पर कब चलेंगे।
जिन कॉलोनियों में रह रहे हैं वहां अच्छी सड़कें और मूलभूत सुविधाएं कब तक मिल जाएंगी। सफाई की समुचित व्यवस्था हो। सड़कों से पार्किंग हटें, कॉलोनियों में रहने वाले लोगों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध हों। यह सब तभी संभव है जब जब पूर्व मुख्यमंत्री की घोषणा के अनुरूप गुना नगर पालिका उन्नयन होकर नगर निगम बन जाए और स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत विकास के लिए स्वीकृत पैसा गुना को मिल जाए।
इसके साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री ने याना को नगर पंचायत बनाने और बमौरी में उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज खोले जाने के साथ-साथ प्रदेश सरकार भी गुना जिले में विकास के लिए अभी तक कई घोषणाएं कर चुका है, लेकिन धरातल पर कुछ भी नजर नहीं आ रहा है।
खास बात ये है कि प्रदेश सरकार में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह समेत प्रदेश के नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री जयवर्धन सिंह का दबदबा है। इसके साथ ही प्रदेश सरकार में श्रम मंत्री के रूप में महेन्द्र सिंह सिसौदिया और जिले की प्रभारी मंत्री इमरती देवी की अच्छी खासी पकड़ है। पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का भी इस गुना से गहरा नाता रहा है।
इस सबके बाद भी गुना जिले का विकास कोसों दूर है। योजनाओं के तहत जिले भर से विकास संबंधी जो प्रस्ताव पूर्व में भेजे गए थे, उनको यदि स्वीकृति मिल जाए और लंबित कामों के लिए पैसा मिल जाए तो और पूर्व में गुना जिले के विकास बतौर की गई घोषणाओं पर अमल हो जाए तो गुना जिले के विकास में पंख लग सकते हैं।
गुना के पिछड़े होने की वजह जब पत्रिका टीम ने तलाशी तो कई ऐसे कारण सामने आए कि जहां एक ओर जनता और मूलभूत सुविधाओं के लिए परेशान है तो वहीं दूसरी ओर शहर की यातायात व्यवस्था बिगाडऩे में सबसे बड़ा योगदान आलीशान भवन के उन मालिकों का है, जो भवन में बनाए गए तलघरों का उपयोग पार्किंग में न कराकर व्यवसायिक उपयोग के लिए करा रहे हैं और वहां आने वाले वाहन सड़कों पर खड़ी कराकर यातायात को बाधित करा रहे हैं। मल्टी लेवल पार्किंग जो तीन जगह बनना है, उस दिशा में अभी तक प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाई है।
महिला, बाल विकास महिला एवं बाल विकास कुपोषण के नाम पर लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी गुना में ढाई हजार से अधिक बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। मध्यान्ह भोजन की राशि डकारने आंगनबाड़ी केन्द्रों पर बच्चों की फर्जी संख्या दर्ज हुई देखी जा सकती है। बीते वर्ष राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने कुपोषित बच्चे और टीबी से ग्रस्त बच्चों को गोद लेने आह्वान किया था, लेकिन इस दिशा में सकारात्मक परिणाम नहीं आए। यह प्रक्रिया शुरू भी नहीं हो पाई।
नगर निगम सन् 2013 के विधानसभा चुनाव के समय गुना में प्रचार के लिए आए तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान गुना आए थे, उन्होंने यहां घोषणा की थी कि गुना नगर पालिका को नगर निगम का दर्जा दिया जाएगा। लेकिन यह घोषणा अभी तक पूरी नहीं हो पाई। जबकि गुना शहर नगर निगम बनने की पात्रता रखने की श्रेणी में आ गया है।
इसकी वजह यह है कि आसपास के 11 गांव की 2011 की जनगणना के अनुसार 15 हजार लोग नगरीय क्षेत्र की सीमा में आ गए हैं, जिसका मास्टर प्लान में प्रस्तावित भी है। शहर विस्तारित होता चला गया। हाल ही में हुई एक बैठक में नगर निगम बनाने की मांग उठी, उसका प्रस्ताव यदि वर्तमान प्रशासक कलेक्टर यदि राज्य शासन को भेजें तो गुना नगर पालिका नगर निगम बन सकती है। जिसके बाद शहर का विकास बड़ी तेजी से हो सकता है।
शहर की पेयजल व्यवस्था के हाल शहर की जनता के साथ ग्रामीण जनता को पीने का पानी साफ मिले, इसके लिए नगर पालिका कागजों में लाखों रुपए खर्च कर रही है, इसके बाद भी जनता को साफ पानी नहीं मिल पा रहा है। इसका ही परिणाम है कि गुना में निजी स्तर पर पानी का व्यापार काफी तेजी से बढ़ा है। ग्रामीण क्षेत्रों में नलकूप और हैंडपंप बंद पड़े हुए हैं। नल-जल योजना भी दम तोड़ चुकी हैं।
अवैध कॉलोनियां शहर हो या चाहें ग्रामीण क्षेत्र, हर जगह के जमीन के कारोबारी किसी न किसी दल से जुड़े हैं। इसका परिणाम ये है कि कुछ जमीन कारोबारियों ने शासकीय जमीन के साथ-साथ बगैर डायवर्सन और अनुमति के कॉलोनियां काट दी हैं, जिन पर मकान तक तन गए हैं।
वहां कॉलोनाइजर उन कॉलोनियों के विकास के लिए एक रूपया देने को तैयार नहीं है। इन कॉलोनियों का निर्माण कराने वालों ने पार्क की भूमि तक बेच दी, न यहां सड़क है और न पीने के पानी की सुविधा। कुछ समय पूर्व सात कॉलोनाइजरों पर कलेक्टर भास्कर लाक्षाकार ने सीएमओ को संबंधित पुलिस थाने में उनके खिलाफ एफआई कराने के आदेश दिए, मगर पन्द्रह दिन बाद भी उन पर एफआईआर नहीं हो पाई।
जबकि अवैध कॉलोनी बनाने वाले 83 कॉलोनाइजरों पर कार्रवाई होना है। पानी के स्रोत भुजरिया तालाब जैसे कई तालाबों की जमीन और पानी निकासी के लिए बने नालों पर भूमाफिया ने कब्जा कर अवैध कॉलोनियां काट दी हैं।
स्टेडियम का मामला वर्तमान समय में संजय स्टेडियम पूरी तरह दलदल में समाया हुआ है। इस स्टेडियम पर एस्ट्रोटर्फ डाले जाने का प्रस्ताव तैयार होकर शासन के पास गया था। इसके लिए कई जनप्रतिनिधियों ने घोषणाएं कीं लेकिन अभी तक न तो एस्ट्रोटर्फ डल पाई और न ही नए स्टेडियम का निर्माण शुरू हो पाया।
यातायात व्यवस्था: यातायात व्यवस्था पर नजर डाली जाए तो सिंग्नल चालू हैं, लेकिन अतिक्रमण की वजह से सड़क दिनों-दिन सकरी होती जा रही है जहां एक ओर कोचिंग व निजी संस्थानों पर आने वाले लोगों की वजह से एबी रोड की सड़क काफी सकरी हो गई है। यहां यातायात पुलिस कार्रवाई भी कर रही है, इसके बाद भी यहां की यातायात व्यवस्था नहीं सुधर रही है। इसकी वजह ये है कि तलघरों में पार्किंग की व्यवस्था नहीं हो पाई है।
सड़क, पुलों की स्थिति: जिले के फतेहगढ़,बमौरी मधुसूदनगढ़ के लोग बताते हैं कि यहां सड़कों की हालत काफी जर्जर है। प्रभारी मंत्री इमरती देवी का कहना था कि जिले में विकास कार्य कराएंगे। सफाई व्यवस्था: सफाई के केस पर चर्चा की जाए तो एक माह में नपा 75 लाख रुपए खर्च करती है। पर न तो कचरा संयंत्र प्लांट यहां लग पाया और न ही सभी वार्डों में डोर-टू डोर वाहन चल पाए। सफाई के लिए कम से कम सौ वाहन की जरूरत है।