संजीव का कहना है कि उन्हें इतनी घबराहट होने लगी कि उन्हें यह समझ नहीं आ रहा था कि अब मैं पत्नी को ग्वालियर ले जाऊं या भोपाल। इसी दौरान वहां मौजूद मेरे एक दोस्त ने हौसला बढ़ाया तब जाकर मैंने अपनी पत्नी को शहर के ही एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया।
गौर करने वाली बात है कि सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों ने जहां मरीज की हालत को बेहद चिंताजनक व गंभीर बताया था, इसके उलट निजी अस्पताल के चिकित्सकों ने जांच उपरांत कहा कि मरीज को कोई खतरा नहीं है। और ऐसा हुआ भी। पत्नी की डिलेवरी बिना किसी जटिलता के साथ हो गई। लेकिन प्राइवेट अस्पताल की फीस इतनी अधिक है कि मुझे अपना ऑटो 30 हजार रुपए के लिए गिरवी रखना पड़ा तब जाकर मैं अस्पताल की प्रारंभिक फीस जमा कर सका।
अब मुझे यह चिंता सता रही है कि जब तक पत्नी को अस्पताल में भर्ती रखा जाएगा तब तक की फीस जमा करने और रुपए मैं कहां से लाऊं। क्योंकि आय का प्रमुख साधन ऑटो पहले ही गिरवी रखा हुआ है। संजीव का कहना है कि उसके साथ जो व्यवहार जिला अस्पताल के डॉक्टरों ने किया है ऐसा ही व्यवहार वहां आने वाले लगभग सभी मरीजों के साथ किया जा रहा है। जिससे एक ओर जहां मरीज सरकार की जनहितैषी योजनाओं के लाभ से वंचित हो रहे हैं तो वहीं निजी अस्पताल में इलाज का खर्च उठाकर मरीज के परिजन आर्थिक तंगी के हालात में पहुंच रहे हैं।
इस उदाहरण से समझें मेटरनिटी विंग की कार्यप्रणाली
शुक्रवार को बीनागंज निवासी हीराबाई तंवर को प्रसव पीड़ा के बाद जिला अस्पताल के मेटरनिटी विंग ले जाया गया। जहां ड्यूटी डॉक्टर ने जांच उपरांत केस को बेहद क्रिटीकल बताया। जिसमें जच्चा व बच्चा को खतरा बताते हुए भोपाल रैफर कर दिया। हीराबाई को 108 एंबुलेंस से भोपाल ले जाया जा रहा था तभी ब्यावरा के रास्ते महिला को तेज दर्द हुआ। एंबुलेंस के ईएमटी राजीव बुनकर ने महिला की हालत को देखते हुए परिजनों से डिलेवरी कराने की परमिशन ली और कुछ देर बाद हीराबाई की सामान्य डिलेवरी करवा दी।
सिविल सर्जन व कलेक्टर से करूंगा शिकायत
मेटरनिटी विंग के डॉक्टरों के असंवेदनशील व्यवहार की वजह से आज मुझे अपनी पत्नी को प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। साथ ही इलाज का खर्च उठाने के लिए आय का एक मात्र साधन ऑटो को 30 हजार रुपए में गिरवी रखना पड़ा। यह स्थिति मेेरे लिए बहुत ही कष्टदायक है। ऐसी स्थिति का सामना किसी अन्य गरीब मरीज को न करना पड़े इसलिए मैं पूरे मामले की शिकायत सिविल सर्जन से लेकर कलेक्टर को लिखित रूप में करूंगा।
संजीव जैन, पीडि़त