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…और जब पत्नी की डिलेवरी के लिए पति को गिरवी रखना पड़ा ऑटो

पत्रिका सरोकार : असंवेदनशील हुआ मेटरनिटी विंग स्टाफड्यूटी डॉक्टर ने इतना डराया कि मरीज तो क्या परिजन भी हो गए बीमार जिला अस्पताल का मेटरनिटी विंग स्टाफ बेहद असंवेदनशील हो चुका है। जिसके कारण मरीज व उनके परिजनों को न सिर्फ आर्थिक बल्कि मानसिक प्रताडऩा झेलनी पड़ रही है। मेटरनिटी विंग में पदस्थ डॉक्टर से लेकर अन्य स्टाफ मरीज व उनके अटैंडरों में इतना खौफ भर रहे हैं कि वे डर के मारे अपने मरीज को या तो प्राइवेट अस्पताल ले जाते हैं या फिर सुविधा शुल्क (रिश्वत) देकर ही बच पाते हैं।

गुनाMar 24, 2019 / 02:55 pm

Narendra Kushwah

…और जब पत्नी की डिलेवरी के लिए पति को गिरवी रखना पड़ा ऑटो

गुना. शनिवार को एक ऐसा ही मामला सामने आया है। शहर के शिवाजी नगर कर्नलगंज में रहने वाले संजीव जैन ने पत्रिका को बताया कि वे अपनी पत्नी की डिलेवरी कराने जिला अस्पताल ले गए थे। यहां मेटरनिटी विंग स्टाफ ने उनकी पत्नी नीलू जैन को एडमिट भी कर लिया। लेकिन कुछ देर बाद ही ड्यूटी पर मौजूद दो महिला डॉक्टरों ने उनसे कहा कि तुम्हारी पत्नी की हालत बेहद गंभीर है। उन्हें ब्लड की जरूरत पड़ेगी। साथ ही ब्लड चढ़ते ही मरीज का बीपी बढ़ सकता है। पेट में बच्चे की स्थिति भी ठीक नहीं है। कुल मिलाकर तुम्हारी पत्नी की जो स्थिति है उसे हम यहां नहीं संभाल सकते हैं इसलिए तुम तत्काल ग्वालियर या भोपाल ले जाओ। डाक्टर की यह सब बातें सुनकर संजीव व अन्य परिजनों के हाथ पैर फूलने लगे।

संजीव का कहना है कि उन्हें इतनी घबराहट होने लगी कि उन्हें यह समझ नहीं आ रहा था कि अब मैं पत्नी को ग्वालियर ले जाऊं या भोपाल। इसी दौरान वहां मौजूद मेरे एक दोस्त ने हौसला बढ़ाया तब जाकर मैंने अपनी पत्नी को शहर के ही एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया।

गौर करने वाली बात है कि सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों ने जहां मरीज की हालत को बेहद चिंताजनक व गंभीर बताया था, इसके उलट निजी अस्पताल के चिकित्सकों ने जांच उपरांत कहा कि मरीज को कोई खतरा नहीं है। और ऐसा हुआ भी। पत्नी की डिलेवरी बिना किसी जटिलता के साथ हो गई। लेकिन प्राइवेट अस्पताल की फीस इतनी अधिक है कि मुझे अपना ऑटो 30 हजार रुपए के लिए गिरवी रखना पड़ा तब जाकर मैं अस्पताल की प्रारंभिक फीस जमा कर सका।

अब मुझे यह चिंता सता रही है कि जब तक पत्नी को अस्पताल में भर्ती रखा जाएगा तब तक की फीस जमा करने और रुपए मैं कहां से लाऊं। क्योंकि आय का प्रमुख साधन ऑटो पहले ही गिरवी रखा हुआ है। संजीव का कहना है कि उसके साथ जो व्यवहार जिला अस्पताल के डॉक्टरों ने किया है ऐसा ही व्यवहार वहां आने वाले लगभग सभी मरीजों के साथ किया जा रहा है। जिससे एक ओर जहां मरीज सरकार की जनहितैषी योजनाओं के लाभ से वंचित हो रहे हैं तो वहीं निजी अस्पताल में इलाज का खर्च उठाकर मरीज के परिजन आर्थिक तंगी के हालात में पहुंच रहे हैं।

इस उदाहरण से समझें मेटरनिटी विंग की कार्यप्रणाली
शुक्रवार को बीनागंज निवासी हीराबाई तंवर को प्रसव पीड़ा के बाद जिला अस्पताल के मेटरनिटी विंग ले जाया गया। जहां ड्यूटी डॉक्टर ने जांच उपरांत केस को बेहद क्रिटीकल बताया। जिसमें जच्चा व बच्चा को खतरा बताते हुए भोपाल रैफर कर दिया। हीराबाई को 108 एंबुलेंस से भोपाल ले जाया जा रहा था तभी ब्यावरा के रास्ते महिला को तेज दर्द हुआ। एंबुलेंस के ईएमटी राजीव बुनकर ने महिला की हालत को देखते हुए परिजनों से डिलेवरी कराने की परमिशन ली और कुछ देर बाद हीराबाई की सामान्य डिलेवरी करवा दी।


सिविल सर्जन व कलेक्टर से करूंगा शिकायत
मेटरनिटी विंग के डॉक्टरों के असंवेदनशील व्यवहार की वजह से आज मुझे अपनी पत्नी को प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। साथ ही इलाज का खर्च उठाने के लिए आय का एक मात्र साधन ऑटो को 30 हजार रुपए में गिरवी रखना पड़ा। यह स्थिति मेेरे लिए बहुत ही कष्टदायक है। ऐसी स्थिति का सामना किसी अन्य गरीब मरीज को न करना पड़े इसलिए मैं पूरे मामले की शिकायत सिविल सर्जन से लेकर कलेक्टर को लिखित रूप में करूंगा।
संजीव जैन, पीडि़त

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