इसलिए बिगड़ रही व्यवस्था
हर मंगलवार को जिला मुख्यालय पर कलेक्ट्रेट में आयोजित जनसुनवाई में आने वाले आवेदकों की कुल संख्या में सबसे ज्यादा बमोरी क्षेत्र के लोग होते हैं। इनकी समस्या को लेकर पत्रिका ने जब पड़ताल की तो सामने आया कि बमोरी में एडीएम के नियमित न बैठने से लोग शिकायत करने गुना आते हैंं। तहसीलदार भी उन्हें बहुत कम कार्यालय में मिलते हैं। पटवारियों का मिलना तो ग्रामीण और किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या बना हुआ है। इस तरह स्थानीय स्तर पर होने वाले भी काम न होने के कारण ही लोगों को गुना तक जाना पड़ रहा है।
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ग्रामीणों की जुबानी उनकी परेशानी
जब कोई बड़ा प्रशासनिक अधिकारी बमोरी में नहीं है तो जो अधिकारी हैं वह भी अपनी मनमानी करते हैं। बमोरी में जितने भी विभाग हैं, लगभग सभी विभागों के अधिकारियों से अगर जनता को कोई काम है तो यह गारंटी नहीं है कि अधिकारी हर दिन बमोरी मिल जाएंगे। यह स्थिति भी तब है जब प्रशासन ने अधिकारियों को कार्यालय में बैठने के लिए दिन तक निश्चित कर दिए हैं। इसी वजह से क्षेत्रीय जनता एसडीएम की मांग कर रही है।
जानकीलाल, ग्रामीण
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शिक्षा विभाग :
यदि किसी को स्कूल से संबंधित कोई काम है और उसे बीईओ कार्यालय जाना है तो वह फोन कर पहले पता कर ले कि वह कार्यालय में मौजूद हैं कि नहीं। क्योंकि बमोरी में ब्लॉक शिक्षा अधिकारी के मिलने की कोई गारंटी नहीं है। जब भी इनके बारे में पता किया जाता है तो अधिकांशत: यही जानकारी मिलती है कि वह फील्ड में गए हैं। वहीं क्षेत्र के सरकारी स्कूलों की स्थिति किसी से छुपी नहीं है। विद्यालयों के हाल बेहाल हैं। कुछ विद्यालयों में शिक्षक हैं तो बच्चे नहीं और कुछ में बच्चे हैं तो शिक्षक नहीं। बमोरी क्षेत्र के ऐसे कई विद्यालय हैं जहांं यदि 4 शिक्षक पदस्थ हैं तो दो हमेशा गायब ही मिलेंगे। कई जगह तो आलम यह है कि कुछ विद्यालय बंद होने की कगार पर हैं। क्योंकि उनमें शिक्षक तो हैं लेकिन बच्चे नहीं। शिक्षा विभाग की ऐसी लापरवाही है कि शिक्षकों को सिर्फ और सिर्फ अपनी तनख्वाह से मतलब होता है ना कि शिक्षा से।
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राजस्व विभाग :
बमोरी में सबसे बुरी हालत राजस्व विभाग की ही है। मुख्यमंत्री की घोषणा थी कि राजस्व विभाग की सबसे छोटी इकाई जिसे पटवारी कहा जाता है, मध्य प्रदेश शासन के आदेश अनुसार पटवारी सप्ताह में 3 दिन अपनी पंचायत में रहेंगे। लेकिन इसकी जमीनी हकीकत यह है कि सप्ताह में 3 दिन तो छोड़ो कई पटवारियों ने तो तीन-तीन माह से अपनी पंचायतें नहीं देखी हैं। वह घर पर रहकर ही अपना कार्य करते हैं। जिससे ग्रामीण जनता को बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। किसानों को चाहे अपनी जमीन की किताब बनवानी हो या फिर नामांतरण करवाना हो या और कोई भी कार्य हो तो पटवारी का कोई ठिकाना नहीं है।
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जनपद पंचायत :
ग्रामीण जनता को तहसील के बाद सबसे ज्यादा काम जनपद में ही पड़ता है। स्थानीय ग्रामीणों से मिली जानकारी के अनुसार सीईओ पंचायतों का निरीक्षण करने कब आए हैं इसकी जानकारी उन्हें नहीं है। बमोरी क्षेत्र में शायद ही ऐसी कोई पंचायत हो जहां भ्रष्टाचार की सुगबुगाहट न हो। बमोरी में रहने वाले लोगों में मजदूर वर्ग की संख्या अधिक है। स्थानीय स्तर पर रोजगार न मिल पाने के कारण लोग दूसरे जिलों में पलायन कर रहे हैं। मनरेगा के तहत जरुरमंदों को बहुत काम मिल रहा है। कागजीबाड़ा के कई मामले सामने आ चुके हैं। मध्य प्रदेश शासन द्वारा जो भी योजनाएं चलाई जाती हैं उन योजनाओं के बारे में आम जनता को जानकारी ही नहीं है। लगभग सभी पंचायतों में ग्राम सभाएं कागजों पर ही संचालित हो रही हैं।
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स्वास्थ्य : बमोरी में एक मात्र सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र है। जहां भी डॉक्टर व अन्य स्टाफ की कमी बनी हुई है। क्षेत्रीय जनता अप्रशिक्षित डॉक्टरों के भरोसे है। गंभीर हालत होने पर गुना ही जाना पड़ता है। जिन ग्राम पंचायतों में प्राथमिक और उपस्वास्थ्य केंद्र हैं, वहां की हालत भी ठीक नहीं है। स्टाफ के अभाव में कई उपस्वास्थ्य केंद्र तो ज्यादातर समय ताले में ही कैद रहते हैं।
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एक भी सर्वसुविधायुक्त खेल मैदान नहीं
100 से अधिक गांवों वाली बमोरी विधानसभा में विकास की जमीनी हकीकत यह है कि पूरे इलाके में एक भी सर्वसुविधायुक्त खेल मैदान नहीं है। सरकारी स्कूलों में जो खुला क्षेत्र है, उसी को बच्चे खेल मैदान के रूप में उपयोग करते हैं। लेकिन इन मैदानों की स्थिति भी खेलने लायक नहीं है। कहीं कीचड़ है तो कहीं गड्ढे व पत्थर। यही कारण है कि खेल मैदान के अभाव में क्षेत्र की खेल प्रतिभा न तो उभरकर सामने आ पा रही और न निखर पा रही है। राजनीतिक में बड़े पदों पर आसनी नेता यहां पैदा तो हुए लेकिन वह गुना मुख्यालय पर रहने लगे हैं। उन्हें अपने जन्मभूमि वाले क्षेत्र के विकास की परवाह नहीं है।