scriptपत्रिका फोकस : मूल समस्याएं दरकिनार, बेमतलब के प्रतीक्षालयों पर विधायक निधि खर्च | Basic problems bypassed, MLA funds spent on unnecessary waiting rooms | Patrika News
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पत्रिका फोकस : मूल समस्याएं दरकिनार, बेमतलब के प्रतीक्षालयों पर विधायक निधि खर्च

एक तरफ शहरवासी सड़क और नाली जैसी मूलभूत समस्याओं से जूझ रहे तो दूसरी तरफ विधायक निधि का हो रहा दुरुपयोग- नगर के सभी 37 वार्डों में है जल निकासी की समस्या, खुले में फैल रही गंदगी, घरों के आसपास जमा हो रहा गंदा पानी- जर्जर सड़कों की वजह से सफाई में दिक्कत तो वहीं वाहनों का मेंटीनेंस बढ़ा- वार्ड के कई हिस्सों में हाथ ठेले वाले सब्जी व अन्य सामान बेचने तक नहीं जा पाते

गुनाNov 16, 2021 / 12:51 pm

Narendra Kushwah

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गुना. नगर के 37 वार्डों की जनता पिछले पांच सालों से सड़क व नाली जैसी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में समस्याओं से जूझ रही है। लेकिन इस ओर न तो स्थानीय जनप्रतिनिधि ध्यान दे रहे हैं और न ही प्रशासनिक अधिकारी। जब वार्डवासी समस्याओं से परेशान होकर अधिकारियों को अवगत कराते हैं तो कॉलोनियों को अवैध बताकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया जाता है। वहीं जनप्रतिनिधि बजट न होने की बात कहकर समस्या को टाल देते हैं। यही कारण है कि गुना नगर में 10 करोड़ की लागत से बनने वाली सड़क व नालियों का काम पिछले पांच सालों से अधर में लटका हुआ है। जिसके कारण शहरवासी कई तरह की परेशानियों से जूझ रहे हैं। शहर के ऐसे हालात उस स्थिति में है जब गुना विधानसभा के विधायक पूर्व मंत्री गोपीलाल जाटव विधायक निधि की 1.85 करोड की कुल राशि का खुलेआम धड़ल्ले से दुरुपयोग कर रहे हैं। जहां जरुरत ही नहीं है वहां मनमानी पूर्वक यात्री प्रतीक्षालय स्थापित करा रहे हंै। रातों रात कहीं भी यात्री प्रतीक्षालय (बस स्टॉप) बना दिया जाता है। हद तो तब हो गई जब जिला अस्पताल परिसर में एक नहीं बल्कि तीन यात्री प्रतीक्षालय कुछ ही समय में स्थापित कर दिए गए। यह नजारा देख खुद जनता यह कहने को मजबूर हो गई कि आखिर यह हो क्या रहा है ? शहर के प्रमुख मार्गों, सार्वजनिक स्थानों पर 50 से 100 मीटर की दूरी पर उपयोगविहीन यात्री प्रतीक्षालय को देखकर हर व्यक्ति हैरान और परेशान हैं। वह यह कहते हुए सार्वजनिक रूप से सुना जा रहा है कि विधायक निधि का इस तरह बेरहमी से दुरुपयोग किया जाना सरासर आर्थिक अपराध है, क्योंकि यह पैसा जनता की मेहनत की कमाई से टैक्स के रूप में वसूला गया है। इसलिए इसका दुरुपयोग इस तरह से नहीं किया जा सकता है।
जानकारी के मुताबिक सरकार गुना शहर को मिनी स्मार्ट सिटी बनाना चाहती है। लेकिन इस दिशा में सबसे बड़ा रोड़ा सड़क और जल निकासी का अभाव है। शहर के कुल 37 वार्डों में से एक भी ऐसा वार्ड नहीं है, जहां सड़क और नालियों की समस्या न हो। जल निकासी न होने से बारिश के अलावा भी पूरे साल भर नागरिक परेशान होते हैं। वर्तमान समय में शहर की कॉलोनियों में खासकर मलिन बस्तियों में घरों से निकले गंदे पानी के जमाव के कारण लोग डेंगू और मलेरिया का शिकार हो रहे हैं। नालियां न होने से पड़ौसियों में झगड़ा हो रहा है। स्थानीय पूर्व पार्षदों का कहना है कि वे पिछले काफी समय से अपने वार्डों में नाली और सड़क बनाने की मांग कर चुके हंै लेकिन बजट का अभाव बताया जाता है।

इन क्षेत्रों के लोग सड़क और नाली की समस्या से जूझ रहे
सकतपुर रोड, ईदगाह बाड़ी रोड,नजूल कॉलोनी, नई सड़क, बोहरा चौराहा, आसमानी माता मंदिर रोड, लालाजी का बाड़ा, भार्गव कॉलोनी, माथुर कालोनी, कर्नलगंज रोड, विवेक कालोनी, खैजरा रोड, कुश्मौदा, कृष्णानी कालोनी, विंध्याचल कालोनी, वंदना कॉलोनी, भगत सिंह, वर्धमान कालोनी, आरोन पेट्रोल पंप से प्रेमी मोबाइल शॉप तक के इलाके में सड़क और जल निकासी की व्यवस्था बहुत खराब है। जिसके कारण कॉलोनी के कई मार्गों में दूधिए, सिलेंडर पहुंचाने वाले तथा हाथ ठेले पर सब्ज, फल सहित अन्य सामग्री बेचने वाले जा ही नहीं पाते।

इन कामों में की जा सकती है विधायक निधि खर्च
कई ऐसी जरूरी सुविधाएं हैं जो बजट के अभाव में संबंधित विभाग जनता को उपलब्ध नहंीं करवा पा रहे हैं। यदि स्वास्थ्य के क्षेत्र में देखें तो जिला अस्पताल में मरीज और अटैंडर कई सुविधाएं न होने से काफी समय से परेशान हैं। सबसे पहली समस्या यहां शुद्ध पेयजल का अभाव है। जो फिल्टर प्लांट लगा था वह बीते कई माह से खराब है। परिसर में जिस बोर से पानी आ रहा है उसे प्रबंधन पीने योग्य नहीं मानता लेकिन वर्तमान में मजबूरीवश इसी पानी को मरीज व अटैंडर पी रहे हैं। पेयजल सुविधा के नाम पर मात्र दो टंकियों में दो ही नल हैं। ऐसे में मरीजों को एक गिलाव पानी के लिए भी इंतजार करना पड़ता है। बर्तन धोने की कोई व्यवस्था नहीं है।
अस्पताल का पूरा परिसर ऊबड़ खाबड़ हालत में है। जहां मरीजों को स्टै्रचर से ले जाने में बहुत ज्यादा परेशानी होती है। सफाई कर्मी ठीक से झाडू नहीं लगा पाते। कई जगह जल भराव की स्थिति निर्मित हो जाती है। यह समस्या बीते पांच सालों से है। जिसका प्रस्ताव बजट के अभाव में अटका हुआ है।

जिला अस्पताल में भर्ती मरीज व अटैंडरों की असली परेशानी सर्दी के मौसम में शुरू होती है। सबसे पहले तो सभी मरीजों को कंबल नहीं मिल पाते हैं। स्टाफ का कहना होता है कि उन्हें पलंग के हिसाब से कंंबल और बैड मिलते हैं। जबकि अस्पताल में हमेशा क्षमता से अधिक मरीज भर्ती रहते हैं। ऐसे में उन्हें किराए के कपड़ों का इस्तेमाल करना पड़ता है। इस मौसम में असली परीक्षा अटैंडर की होत है, क्योंकि उसे वार्ड में सोने न तो जगह मिलती है और न ही कपड़े। सबसे ज्यादा चिंता की बात तो यह है कि पूरे अस्पताल परिसर में अटैंडरों को ठहरने सर्दी से बचने कोई इंतजाम नहीं हैं। बाजार से रजाई, कंबल किराए पर लाकर वे खुले में ही रात गुजारने को मजबूर होते हैं। इसके अलावा मरीजों को बॉटल लगाने स्टैंड की हमेशा कमी देखी जाती है। ऐसे में कई बार स्टाफ खिड़की से तक बॉटल बांध देती हैं।
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