बिना पंजीयन के मंडी में बेच नहीं सकते, मंडी से बाहर व्यापारी ले रहे मनमाना दाम
जो फसल निकली है उससे 6 माह का खर्च भी नहीं निकलेगा
क्षेत्र में नए निर्माण कार्य शुरू हों तब मिले रोजगार

गुना. एक महीने के लॉक डाउन ने आम जनजीवन को काफी प्रभावित कर दिया है। आर्थिक रूप से संपन्न लोगों ने तो लॉक डाउन के ३० दिन परिवार के साथ समय व्यतीत करते हुए आसानी से निकाल दिए। लेकिन यह समय आर्थिक रूप से कमजोर, रोज खाने कमाने वाले, मजदूर व कम जमीन वाले किसानों के लिए संकट का रहा है। आर्थिक गतिविधि को फिर से पटरी पर लाने के लिए सरकार ने २० अप्रैल से खेती किसानी सहित कई क्षेत्रों में रियायत दी है। लेकिन इसका ज्यादा असर कम रकबा वाले किसानों पर देखने को नहीं मिल रहा है। यह हकीकत तब सामने आई जब पत्रिका ने ऐसे कई किसानों से बात की जिनके पास खेती का रकबा काफी कम है।
पत्रिका टीम ने जिला मुख्यालय से करीब ५ किमी दूर स्थित ग्राम सकतपुर व सिंगवासा चक्क पहुंचकर किसानों से उनकी परेशानी जानी। इस दौरान उन्होंने बताया कि गांव में ऐसे कई किसान है, जिनके पास ५ बीघा से कम जमीन है। कई किसान तो ऐसे हैं जिनके एक व दो बीघा ही जमीन है। कम उपज होने के कारण उन्होंने समर्थन मूल्य पर फसल बेचने के लिए पंजीयन भी नहीं कराया। इसलिए वे कृषि उपज मंडी जाकर भी फसल नहीं बेच पा रहे हैं। वहीं मंडी के बाहर जो व्यापारी सौदा पत्रक के माध्यम से उपज खरीदी रहे हंै वे मनमाने दाम पर किसान की उपज खरीदना चाहते हैं। किसानों की मुसीबत यह है कि वह अपनी उपज को ज्यादा दिन अपने पास नहीं रख सकता। क्योंकि उसके पास इतनी जगह ही नहीं है कि वह उसे ज्यादा दिन तक सुरक्षित रख पाए। वहीं दूसरी परेशानी यह है कि कम कीमत में उक्त फसल को बेच भी दे तो आगामी ६ माह का खर्चा भी नहीं चल पाएगा। इस समय स्थानीय स्तर पर कोई नए निर्माण भी नहीं चल रहे जहां जाकर मजदूरी की जा सके। लॉक डाउन के चलते लगे प्रतिबंध के कारण अपने क्षेत्र को छोड़कर दूसरी जगह पर भी नहीं जा पा रहे हैं। ऐसे में आगामी तीन माह तक घर का खर्च चलाना भी मुश्किल साबित हो रहा है। सरकार यदि स्थानीय स्तर पर मनरेगा के तहत काम शुरू करवाए तो ही कुछ हो सकता है।
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४० प्रतिशत किसानों के पास कम जमीन, बाकी मजदूर
ग्राम पंचायत सकतपुर गुना जिले की ऐसी पंचायत है, जहां रहने वाले लोगों में ४० प्रतिशत किसान ऐेसे हैं जिनके पास ५ बीघा से कम जमीन है। शेष रहने वाले लोग गुना जाकर मजदूरी व हाथ ठेलों पर खाद्य सामग्री बेचकर अपने परिवार का पेट पालते हैं। लेकिन लॉक डाउन के प्रतिबंधों ने उन्हें न सिर्फ बेरोजगार कर दिया है बल्कि भविष्य की चिंता उन्हें लगातार सता रही है।
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किसानों की पीड़ा उनकी जुबानी
हम तीन भाई हंै। जिनके हिस्से में डेढ़-डेढ़ बीघा जमीन आई है। इस जमीन से निकली उपज से दो माह का खर्च मुश्किल से चल पाएगा। इस समय न तो बाजार में कोई काम है और न ही मजदूरी। गांव मेें किसान एक दूसरे से नए रोजगार के बारे में चर्चा करते रहते हैं।
लक्षमण, किसान
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एक महीने के इस लॉक डाउन आर्थिक रूप से कमजोर मजदूर व छोटे किसानों को बहुत नुकसान पहुंचाया है। जिसकी भरपाई आगामी तीन माह में होना काफी मुश्किल है। गर्मी के मौसम में एक तरफ स्वास्थ्य की चिंता तो दूसरी तरफ रोजगारी की तलाश।
बालकिशन, किसान
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