इस पुल की खासियत ये है कि यह पुल प्रदेश व देश के अन्य ओवरब्रिजों से अलग है। इस पुल में गड्डे हो गए थे। पुल को लेकर पत्रिका ने समय-समय पर खबर प्रकाशित की थी, जिस पर वरिष्ठ अधिकारियों ने उच्च स्तर पर चर्चा करके तत्कालीन कलेक्टर के जरिए एक प्रस्ताव मंगाया था, जिसको बीते वर्ष शासन ने स्वीकृति देकर लगभग एक करोड़ रुपए की राशि मंजूर की थी।
जब गिरी एक दंपत्ति
रविवार को दोपहर के समय बारिश के बीच वहां बने एक गड्डे में पानी भर गया था, जहां से एक्टिवा पर एक दंपत्ति निकल रहे थे, उस गड्डे में उनकी एक्टिवा चली गई, वे संभल नहीं पाए और पत्नी व बच्चे सहित उसमें गिर गए। जिनको दूसरे लोगों ने उठाया। इसके पहले एक ब्रिज पर कईँ लोग गिर चुके हैं। ब्रिज पर तेल फेलने पर फिसलन हो रही थी और वाहन चालकों के अलावा पैदल चलने वाले लोग भी घायल हो गए थे। यहां पर रात के समय हादसे का भय रहता है।
सन् 1992 में पूर्व केन्द्रीय मंत्री व गुना-शिवपुरी के तत्कालीन सांसद माधवराव सिंधिया ने इस ब्रिज को स्वीकृति दिलाई थी और शुभारंभ किया था। इसका निर्माण एक बड़ी कंपनी को मिला था जिसके निर्माण और डिजाइन पर उस समय के तत्कालीन राजनेताओं ने भी आपत्ति की थी। इस पुल का निर्माण लोक निर्माण विभाग के अधीन एक एजेंन्सी ने कराया था। बाद में यह पुल सेतु संभाग में शामिल हो गया था। खास बात ये है कि माधवराव सिंधिया ने जिस पुल का शुभारंभ किया था, आज वह कांग्रेस की प्रदेश सरकार होने के बाद भी अपनी दुर्दशा में आंसू बहा रहा है। कोई ध्यान नहीं दे रहा।
साल की शुरूआत से ही तैयारी हो गई थी काम
बताया जाता है कि पीडब्ल्यूडी सेतु संभाग ने इस काम को करने के लिए ठेकेदार सर्वेश शर्मा की एजेन्सी को दे दी थी। इस ठेका कंपनी को अधिकतम चार माह में ये काम पूरा करना था। मगर इसी बीच प्रदेश की सरकार बदल गई, फण्ड नहीं मिला तो ओवर ब्रिज का काम शुरू होने से पहले ही बंद हो गया, जो छह माह से बंद पड़ा हुआ है, वह शुरू होने का नाम नहीं ले पा रहा है। प्रदेश सरकार के एक पूर्व मंत्री केएल अग्रवाल का कहना था कि पुल की मजबूती तो आज भी है, लेकिन वेयरिंग कोट जो पुल की सुरक्षा के लिए होते हैं वे निकल आए हैं, जिसको डामर व गिट्टी से काम करक पुल को और मजबूती दी जा सकती है।