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पेरिस हमले के बाद दुनिया में हो सकता है धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण

पेरिस हमले के बाद अब दुनिया पर एक और नया बड़ा खतरा
मंडराने लग गया है। और वो खतरा है धर्म के आधार पर फिर से दुनिया के
ध्रुवीकरण की शुरुआत। जिसमें एक तरफ तो मुस्लिम होंगे तो दूसरी तरफ गैर
​मुस्लिम। ये ध्रुविकरण दुनिया के लिए बेहद ख़तरनाक संकेत हैं।

Nov 17, 2015 / 03:10 pm

barkha mishra

पेरिस हमले के बाद अब दुनिया पर एक और नया बड़ा खतरा मंडराने लग गया है। और वो खतरा है धर्म के आधार पर फिर से दुनिया के ध्रुवीकरण की शुरुआत। जिसमें एक तरफ तो मुस्लिम होंगे तो दूसरी तरफ गैर ​मुस्लिम। ये ध्रुविकरण दुनिया के लिए बेहद ख़तरनाक संकेत हैं।

माना जाता है कि यूरोप एक बहु-सांस्कृतिक समाज है। जहां कट्टरता की जगह नहीं है। लेकिन ISIS और कट्टरपंथी विचारधारा से यूरोप के युवा मुस्लिम आबादी को गुमराह किया गया है। और अगर बात की जाए आंकड़ों की तो 6000 से ज़्यादा मुस्लिम लड़ाके इस वक्त आईएसआईएस के लिए लड़ रहे हैं।

यूरोप में मुस्लिम आबादी दूसरों की अपेक्षा युवा है इनकी औसत उम्र 32 वर्ष है जबकि दूसरे धर्मों से ताल्लुक रखने वाले लोगों की औसत उम्र 42 वर्ष है। 2010 के आंकड़े के मुताबिक पूरे यूरोप में 5 करोड़ मुस्लिम हैं जो कुल आबादी का 6 फीसदी हैं।

इस्लामिक देशों सहित सभी देशों को आना होगा आगे

isis attack

इसमें सबसे ज़्यादा जर्मनी में 48 लाख और फ्रांस में 47 लाख मुस्लिम हैं। अनुमान लगाया जा रहा है​ कि 2030 तक यूरोप की आबादी का 8 फीसदी हिस्सा मुस्लिम आबादी होगी। एक तथ्य में यह भी सामने आया है कि दुनिया में करीब 50 देश ऐसे हैं, जहां पर मुस्लिम बहुल आबादी है। लेकिन इन 50 देशों में सिर्फ़ 15 देश ऐसे हैं, जिन्होंने धर्म को राज्य और शासन का आधार नहीं बनाया है यानी जो सेकुलर देश कहे जा सकते हैं।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि आईएसआईएस जैसे आतंकवादी संगठन इस्लाम का उपयोग गलत तरीके से कर रहे है और दुष्प्रचार कर रहे हैं। और इसी वजह से सभी जगह स्थितियां बेहद खतरनाक होती जा रही है।

कोई भी धर्म आतंकवाद का समर्थन नहीं करता लेकिन आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठन इस्लाम का गलत इस्तेमाल करके युवाओं का ब्रेन वॉश करके उन्हे आतंकवादी बना देते हैं।

देश में फैला रहे इन आतंकवादी संगठनों से मुकाबला करने के लिए सभी देशों को, खासतौर पर इस्लामिक देशों को खुलकर सामने आना होगा। उसके बाद ही कुछ बदलाव हो सकेंगे।


पेरिस हमले के बाद जी-20 देशों की बैठक का एजेंडा भी बदल गया है। टर्की में हुए सम्मेलन में जी-20 के देशों ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के लिए मिले जुले दिए है। इस बयान में दो बातें ऐसी भी हैं जिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काफी ज़ोर दिया।

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यहां पर हुए आतंकी हमले

पेरिस में हुए इस सबसे बड़े आतंकवादी हमले को मिलाकर पिछले 11 महीनों में फ्रांस पर ये चौथा आतंकवादी हमला है। इस वर्ष जनवरी में पेरिस में शार्ली हेब्दो मैगज़ीन के दफ्तर पर आतंकी हमले में 20 लोगों की जान चली गई थी। फरवरी, 2015 को फ्रांस के नाइस में एक यहूदी सामुदायिक केंद्र पर आतंकवादी हमला हुआ।
और 21 अगस्त 2015 को एक आतंकवादी ने एम्सटर्डम से पेरिस जा रही एक हाई स्पीड ट्रेन में फायरिंग की थी जिसमें कुछ लोग घायल हो गए थे।

क्यू बन रहा है फ्रांस आतंकवाद का निशाना?


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आतंकवादी संगठन बार बार फ्रांस को ही अपना निशाना क्यू बना रहा है। इसके पीछे भी कई कारण बताए जा रहे है। पहली वजह ये है कि फ्रांस ने सीरिया और इराक में अमेरिकी सेना का साथ दिया है। अमेरिका के साथ मिलकर फ्रांस के लड़ाकू विमानों ने कई बार सीरिया और इराक़ में आईएसआईएस के ठिकानों पर हमला किया है।
तीसरा कारण फ्रांस ने अन्य देशों में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के लिए 10 हजार सैनिक भेजे हैं। पश्चिम अफ्रीका में 3 हजार, मध्य अफ्रीका में 2 हजार और इराक में फ्रांस के 3200 सैनिक तैनात हैं।

पूरे यूरोप में सबसे ज्यादा मुस्लिम फ्रांस में ही रहते हैं और आईएसआईएस इस्लाम का दुरुपयोग करके बहुत से लोगों को अपने संगठन में शामिल कर सकता है। यही वजह है कि आईएसआईएस फ्रांस में अपने स्लीपर सेल्स यानी छिपे हुए आतंकवादियों को आसानी से एक्टिव कर लेता है।

बताया जाता है कि फ्रांस से 500 से ज़्यादा मुस्लिम कट्टरवादी नागरिक आईएसआईएस में शामिल होने के लिए सीरिया और इराक़ गए हैं। पेरिस पर हुए हमले की सबसे बड़ी वजह फ्रांस के राष्ट्रपति फांस्वा ओलांद के बयान को बताया जा रहा है, जो उन्होने पिछले हफ्ते दिया था।

अपने बयान में उन्होने कहा था कि आईएसआईएस के खिलाफ लड़ने के लिए वो इराक में एयरक्राफ्ट कैरियर भेजेंगे। साथ ही यह भी कहा था कि उन रास्तों को बंद करना है, जहां से आतंकवाद को आर्थिक मदद मिलती है। और उन देशों और आतंकवादियों से निपटना, जो दूसरे देश में आतंक फैलाने के लिए तैयार किए जाते हैं।

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