झोलाछाप डॉक्टर्स पर अंकुश नहीं लगा पाया
जानकारी के मुताबिक मौजूदा समय में स्वास्थ्य विभाग में करीब 70 डॉक्टर्स ही रजिस्टर्ड हैं। इसके अलावा शहर सहित जिले की 425 पंचायतों के करीब 1338 गांवों में झोलाछाप डॉक्टर सक्रिय हैं। जो खुलेआम अपनी क्लीनिक संचालित कर रहे हैं।
जानकारी के अभाव में यह झोलाछाप डॉक्टर ग्रामीण मरीज को गलत दवा देकर उसके स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। ऐसे कई मामले भी सामने आए हैं जब गलत इलाज की वजह से मरीज की मौत भी हो चुकी है। यही नहीं मामला थाने तक जा पहुंचा है। इसके बावजूद प्रशासन झोलाछाप डॉक्टर्स पर अंकुश नहीं लगा पाया है।
कार्रवाई सिर्फ नोटिस तक सीमित
झोलाछाप डॉक्टर्स पर कार्रवाई करने सुप्रीम कोर्ट कई साल पहले शासन को आदेशित कर चुका है। इसी क्रम में शासन भी प्रशासन को लिखित में आदेशित कर चुका है। प्रशासन ने कार्रवाई को लेकर लिखित आदेश स्वास्थ्य विभाग को दे दिए लेकिन आज तक धरातल पर कार्रवाई नहीं हो सकी है। हर साल स्वास्थ्य विभाग एक टीम गठित करता है, यह टीम कार्रवाई करने जाती भी है लेकिन अधिकांश मौकों पर खाली हाथ ही लौट आती है। कई बार सिर्फ झोलाछाप डॉक्टर्स को नोटिस देकर ही कार्रवाई की इतिश्री समझ ली जाती है। इसी तरह का सिलसिला लगातार जारी है।
फतेहगढ़ क्षेत्र में एक बच्चे की जा चुकी है जान
हाल ही में फतेहगढ़ क्षेत्र के एक डॉक्टर के खिलाफ पुलिस ने गैर इरादन हत्या का मामला दर्ज किया था। इस मामले में एक बच्चे की झोलाछाप डॉक्टर के गलत इंजेक्शन की वजह से हालत बिगड़ गई थी, जिसकी इलाज के दौरान जिला अस्पताल में मौत हो गई थी। इस घटना के बाद भी फतेहगढ़ क्षेत्र दर्जन भर झोलाछाप डॉक्टर अभी भी सक्रिय बने हुए हैं। स्वास्थ्य अमला इस घटना के बाद भी सक्रिय नहीं हुआ है।
कौन करता है सूचना लीक
झोलाछाप डॉक्टर्स के खिलाफ की जाने वाली छापामार कार्रवाई में सबसे बड़ा रोड़ा सूचना का लीक होना है। विभाग के अधिकारी भी मान रहे हैं कि जब भी टीम कार्रवाई करने पहुंचती है तो उसे पहले ही सूचना मिल जाती है और वह दुकान बंद कर भाग जाते हैं। यही कारण है कि झोलाछाप डॉक्टर के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं हो पा रही है।
यह है झोलाछाप की श्रेणी
सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के मुताबिक वह डॉक्टर जो स्वास्थ्य विभाग में रजिटर्ड नहीं हैें। जिनके पास इलाज करने की उपयुक्त डिग्री या डिप्लोमा नहीं है। यही नहीं वे डॉक्टर भी झोलाछाप की श्रेणी में आते हैं जो अपनी पैथी छोड़ दूसरी पैथी में मरीज का इलाज करते हैं। जैसे कि ऐलोपैथिक डॉक्टर आयुर्वेद की दवा नहीं लिख सकता तो वहीं आयुर्वेदिक डॉक्टर ऐलोपैथिक दवा नहीं लिख सकता है।
क्लीनिक पर न पंजीयन न डिग्री चस्पा
नियमानुसार क्लीनिक चलाने के लिए न सिर्फ सीएमएचओ कार्यालय में पंजीयन होना अनिवार्य है। बल्कि क्लीनिक में पंजीयन नंबर सहित उपयुक्त योग्यता के दस्तावेज चस्पा होना जरूरी है। लेकिन जिला मुख्यालय पर ही दर्जनों क्लीनिक ऐसी चल रही हैं जहां कोई भी जरूरी सूचना अंकित नहीं है। ऐसी क्लीनिक कार्रवाई से बचना स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रही हैं।
यह बोले जिम्मेदार
मेरी जानकारी के मुताबिक इस समय करीब 70 डॉक्टर ही रजिस्टर्ड हैं। बाकी सभी झोलाछाप की श्रेणी में आते हैं। हमने इन झोलाछाप डॉक्टर्स के खिलाफ कार्रवाई करने एक टीम गठित कर दी है।
जिसमें एक डॉक्टर व एक फार्मास्टि शामिल हैं। यह टीम शहर सहित अंचल भर में जाकर झोलाछाप डॉक्टर्स के खिलाफ छापामार कार्रवाई अंजाम देगी।
डॉ पी बुनकर, सीएमएचओ गुना