गुना नगर पालिका में अध्यक्ष चुने जाने के कार्यकाल से लेकर अभी तक का इतिहास देखा जाए तो इन 77 सालों में सबसे अधिक कांग्रेस का कब्जा रहा है। भाजपा इन सालों में उस समय अपना अध्यक्ष चुन पाई जब जनता द्वारा अध्यक्ष का चुनाव सीधे होने लगा, लेकिन गुना शहर के विकास पर नजर डाली जाए तो इंदौर-भोपाल की तर्ज पर गुना का विकास नहीं हो पाया, जबकि इस संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भी सिंधिया घराना करता रहा है।
यह बात अलग है कि गुना संसदीय क्षेत्र और गुना शहर की विधानसभा में अलग-अलग पार्टी का प्रतिनिधित्व विकास में रोड़ा बनता रहा। हाल ही में प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नगरीय निकाय के अध्यक्ष का चुनाव पार्षदों के जरिए कराने की घोषणा की है, इस घोषणा के बाद राजनीतिक माहौल गरमा गया है।
गुना नगर पालिका के अध्यक्ष पद के दावेदार पार्षद के जरिए बनने की दौड़ में दोनों पार्टी के नेता लग गए हैं। जबकि जनता का कहना है कि नगर पालिका अध्यक्ष पद का चुनाव पार्षदों के जरिए न होकर जनता के माध्यम से कराना चाहिए, जिससे भ्रष्टाचार भी रुकेगा और विकास भी तेजी से होगा।
पत्रिका टीम ने जब गुना शहर के विकास को लेकर अलग-अलग क्षेत्र की जनता की नब्ज टटोली तो उनमें से कई लोगों में यहां के माननीयों के प्रति नाराजगी दिखी। उनका कहना था कि यहां सिंधिया घराना लंबे समय तक प्रतिनिधित्व करता रहा। कांग्रेस का भी लंबे समय तक नगर पालिका परिषद पर कब्जा रहा। इस सबके बाद भी न तो हमें मूलभूत सुविधाएं मिल पाईं और न दिखाए गए सपने पूरे हो पाए।
ये रहे अभी तक नगर पालिका गुना के अध्यक्ष
नाम : कार्यकाल
1. स्व. जगजीवन नाथ जुत्शी : 19 जुलाई 1945 से 24 अप्रैल 1948 तक
2. स्व. रतनलाल लाहोट : 25 अप्रैल 1948 से 21 मार्च 1956 तक दूसरी बार 17 मार्च 196 1 से 20 जून 1961
3. पूरन चन्द्र जैन : 22 जून 1956 से 19 अक्टूबर 1957 तक 8 जुलाई 196 1 से 16 मार्च 1962 तक 24 अप्रेल 1973 से 31 दिसम्बर 1973 तक।
4. स्व. जमुना प्रसाद जैन : 20 अक्टूबर 1957 से 19 मार्च 1959 तक 15 मार्च 196 0 से 16 मार्च 1961 तक 31 अक्टूबर 1964 से 26 नवम्बर 1965 तक 11 अप्रेल 1969 से 16 मार्च 1971 तक
5. दिवंगत हरीसिंह झेलमी : 17 मार्च 196 2 से 31 अक्टूबर 1964 तक
6. दिवंगत हरिदेव सूद : 17 मई 1971 से 22 फरवरी 1972 तक।
7. दिवंगत यशवंत राव लुम्बा : 1966 और सन् 1967
8. दिवंगत रामेश्वर प्रसाद शर्मा : 22 जनवरी 1973 से 24 अप्रेल 1973 तक
9. दिवंगत अलख प्रकाश जी गौंडल : 6 जून 1975 से 18 जुलाई 1977 तक
10. रामगोपाल माथुर : 4 सितंबर 1983 से 25 सितंबर 1985 तक
11. रतनकुमार सोनी : 25 सितंबर 1985 से 29 जनवरी 1997 तक
11. दिवंगत डॉ. महावीर कुमार जैन : 29 जनवरी 1987 से 26 मार्च 198 7 तक
12. नेमीचन्द्र जैन : 23 मार्च 1987 से 11 फरवरी 1988 तक
13. ऊषा हरि विजयवर्गीय : 28 दिसम्बर 1994 से दिसम्बर 1999 तक
14. सूर्यप्रकाश तिवारी : 1 जनवरी 2000 से सन् 2004 तक
15. देवेन्द्र गुप्ता : 29 दिसंबर 2004 से 2009 तक
16. त्रिवेणी सोनी : 2009 से 2014 तक
17. राजेन्द्र सलूजा : 2014 से सन् 2020 तक
पार्षदों का रहता था भरपूर दबाब
पार्षदों द्वारा चुने जाने वाले अध्यक्ष कार्यकाल के बारे में जानकार बताते हैं कि पुरानी व्यवस्था में पार्षदों का अध्यक्ष पर काफी दबाब रहता था, विकास के एक-एक मुद्दे पर पार्षद उन पर दबाब बनाते थे। जनता ने सीधे अध्यक्ष को चुना तो अध्यक्ष अपने स्तर पर निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हो गए, इससे शहर के विकास के समीकरण गड़बड़ाए ही नहीं, बल्कि वार्डों का विकास भी समानता से नहीं हुआ, जिससे परिषद में पार्षदों ने अध्यक्ष पर गंभीर आरोप लगाए, वहीं जनता भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित होती रही।
ये नहीं हो पाया अब तक...
: विगत 24 घंटे सातों दिन पानी अभी तक नहीं मिल पाया।
: शहर की सड़कों से यातायात का दबाव कम के लिए नहीं बन पाई क्रॉस रोड।
: हर गलियों में सीमेन्ट कांक्रीट का अभाव रहा।
: नवनिर्मित स्टेडियम अभी तक नहीं ले पाया आकार ।
: रिंग रोड का अभी तक बना रहा अभाव ।
: सीवर लाइन का अभाव।
: अच्छी मुख्य सड़क नहीं।
: कचरा प्रबंधन फेल, जगह-जगह गंदगी का ढेर।
: शहर की एक सैकड़ा से अधिक अवैध कॉलोनियों में न तो पानी की पाइप लाइन डल पाईं और न विद्युत खम्भे।
: शहर में आज भी आधी आबादी को नहीं मिल पाया सिंध नदी का पानी।
: आधा सैकड़ा से अधिक अवैध कॉलोनियों में पानी की निकासी की सही व्यवस्था नहीं। घरों में घुस रहा है नालियों का पानी।
: स्मार्ट सिटी का सपना तीन साल पहले सीएम शिवराज सिंह चौहान ने राष्ट्रपति के आगमन के समय दिखाया था, वह अभी तक पूरा नहीं हुआ।
: जज्जी से बस स्टैण्ड को हटाकर चिंताहरण मंदिर वाईपास पर ले जाना था, प्लान बना, रह गया धरा। नहीं लेे गए। जिससे शहर न डवलप हो पाया और न ही ऑटो चालकों को रोजगार बढ़ा।
ऊषा हरि विजयवर्गीय को चुना था पार्षदों ने
नगरीय निकाय में अध्यक्ष चुनाव जनता द्वारा न कराकर पार्षदों के जरिए कराए जाने की घोषणा से भाजपा में अंदर ही अंदर विरोध हो रहा है। कहा जा रहा है कि इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा। विकास भी नहीं हो पाएगा। पूर्व के इतिहास को देखा जाए तो सन् 1994-95 में पार्षदों द्वारा गुना में कांग्रेस की ऊषा हरी विजयवर्गीय को चुना था। सन् 2000 में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने यह प्रक्रिया बदली और नगरीय निकाय के अध्यक्ष, महापौर का चुनाव पार्षद के जरिए न कराकर सीधे जनता के जरिए चुनने की प्रक्रिया कराई। इसे तहत सबसे पहले अध्यक्ष भाजपा के सूर्यप्रकाश तिवारी बने थे। इस प्रक्रिया के तहत आखिरी अध्यक्ष राजेन्द्र सलूजा रहे।
शहर की सरकार के सबसे पहले मुखिया बने थे जुत्शी: गुना नगर पालिका के सबसे पहले मुखिया स्वर्गीय जगजीवन नाथ जुत्शी बने थे। नगर पालिका का इतिहास बताता है कि रतनलाल लाहोटी, पूरन चन्द्र जैन, जमुना प्रसाद जैन, और यशवंत राव लुम्बा को मौका एक से अधिक बार मिला।
सोनी को देना पड़ा था इस्तीफा : नई व्यवस्था में अविश्वास प्रस्ताव को लेकर जो आशंका जताई जा रही है, उसके शिकार गुना नगर पालिका में कांग्रेस नेता रतन सोनी हो चुके हैं। साढ़े तीन दशक पूर्व डा. महावीर जैन और रतन जैन दोनों अध्यक्ष पद के दावेदार थे। रतन सोनी बाजी मारकर अध्यक्ष बन गए थे। अविश्वास प्रस्ताव पारित होता कि इससे पहले रतन सोनी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। बाद में कांग्रेस नेता नेमीचन्द्र जैन कुछ समय के लिए अध्यक्ष बने थे।
ये सामने आ रहे हैं अध्यक्ष बनने के दावेदार: कुलजीत राजेन्द्र सलूजा, सविता अरविन्द गुप्ता, वंदना मांडरे, अनुसुईया रघुवंशी, नीरू बृजेश शर्मा, सुनीता रविन्द्र रघुवंशी,मधु राधेश्याम पारीख, चन्द्रकांता देवेन्द्र गुप्ता।
कांग्रेस: रश्मि रजनीश शर्मा, ऊषा हरीशंकर विजयवर्गीय, अंजना विश्वनाथ तिवारी, सुनीता बसंत शर्मा,नीता निकलंक जैन।