जिला मुख्यालय के अलावा अन्य कॉलेजों में भी स्टाफ का टोटा है। सबसे बुरी हालत चाचौड़ा के गल्र्स कॉलेज की है। कुल स्वीकृत छह पदों में से छह ही खाली हैं इसके बाद कुंभराज कॉलेज में 6 में से 5पद खाली पड़े हुए हैं। वहीं आरोन कॉलेज में १९ में से केवल ६ पद ही भरे हैं और 13 खाली हैं। राघौगढ़ में 14 में से 7 और चाचौड़ा बॉयज कॉलेज में 12 में से 7 पद खाली हैं।
स्टाफ को कमी को अतिथि शिक्षकों के सहारे पूरा किया जा रहा है। नियमित भर्ती न होते हुए भी उनसे उसी तरह काम लिया जाता है, जैसे नियमित प्राध्यापकों से। लेकिन उनकी तरह छुट्टी या अन्य कोई पात्रता उनके पास नहीं है। जिसके कारण अतिथि शिक्षक भी खुद को ठगा सा महसूस करते हैं और अपने नियमितीकरण के लिए कई बार प्रदर्शन भी कर चुके हैं।
सरकार ने कॉलेजों में खाली पड़े पदों पर नियमित भर्ती के लिए परीक्षा का आयोजन को करवाया था। लेकिन अभी तक प्रक्रिया पूर्ण नहीं हो सकी। यदि प्रक्रिया को पूरा किया भी जाए तो उसमें करीब 5-6 माह का समय लग जाएगा और ये सत्र भी प्रोफेसरों के अभाव में ही बीतेगा। वहीं भर्ती होने के बाद कॉलेजों में पढ़ा रहे अतिथि शिक्षकों का भविष्य भी खतरे में आ जाएगा। कई सालों से प्रदेश की उच्च शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अतिथियों के सिर पर भी बेरोजगार होने की तलवार लटक रही है।