ये है मामला
खेरीखता गांव में रहने वाला आदिवासी समाज के गुमान बारेला के सात साल के बेटे रवि को तीन-चार दिन पहले बुखार आ गया था, उसको पहले गांव के ही एक बगैर डिग्री डॉक्टर को दिखाया, उसकी दवाई के बाद जब उसका बुखार नहीं उतरा तो उसको लेकर माता-पिता बुधवार को दोपहर के समय जिला अस्पताल लेकर आए। आस थी कि बेटे को इलाज मिल जाएगा लेकिन अस्पताल पहुंचने के बाद गरीब माता-पिता के साथ जो हुआ उसकी कल्पना उनने तो क्या शायद हम और आप भी नहीं कर सकते। अस्पताल में बेटे रवि को उसका पिता गोद में लेकर पर्चा बनवाने के लिए इधर-उधर भटकता रहा, इसी बीच वह कुछ डॉक्टरों से मिला और उनसे गुहार लगाई कि उसके बेटे का इलाज कर दें। लेकिन डॉक्टरों ने बगैर पर्चे के देखने से मना कर दिया। वह लगभग सवा घंटे तक बच्चे को गोद में लेकर इधर-उधर भटकता रहा, उसने काफी प्रयास के बाद पर्चा बनवाया, स्ट्रेचर तक नहीं मिला, गोद में ही ले जाकर भर्ती करवाया, लेकिन डॉक्टर देखने नहीं पहुंचे। इसी बीच उसकी सांसें थम गई। बेटे की मौत के बाद उसे गोद में उठाए बेबस माता-पिता रोते बिलखते हुए अस्पताल से ये कहते हुए चले गए कि इंसानियत नाम की कोई चीज नहीं बची है।
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इलाज के अभाव में दम तोड़ते रहे हैं लोग
जिला अस्पताल में इलाज के अभाव में यह पहली मौत नहीं हैं। इससे पहले भी मौतें होती रही हैं। एक साल पूर्व इसी जिला अस्पताल में उस समय इंसानियत शर्मसार हो गई थी, जब अशोकनगर की एक महिला अपने पति को इलाज के लिए जिला अस्पताल लाई, जहां उसके पास पांच रुपए पर्चा बनवाने के लिए नहीं थे। वह पर्चा बनवाने और अपने पति को दिखाने के लिए जिला अस्पताल प्रबंधन से गुहार करती रही, लेकिन इलाज के अभाव में उसके पति की मौत हो गई थी। एक साल बाद अब इलाज के अभाव में रवि की मौत हो गई। रवि की मौत ने एक बार फिर ये सवाल खड़ा हो रहा है कि सिस्टम आखिर इंसानों की सहूलियत के लिए है या फिर उन्हें परेशान करने के लिए।
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