गौड़-आदिवासी समाज से जुड़े और बमौरी विधानसभा क्षेत्र के हिम्मतपुरा, भैंरोघाटी, टकनेरा, बेरखेड़ी समेत आठ-दस गांव में रहने वाले लोगों ने पत्रिका को अपना दर्द सुनाते हुए कहा कि साहब हम कत्था को काम करत हते, हम गौड़-आदिवासी जात में आत हैं।जहां के अफसरन ने हम बाप-बेटा की जात ही बदल दई, हम अब भी गौड़-आदिवासी हैं मगर हमाओ बेटा पिछड़ी जाति का हो गओ है काहे कि वा का प्रमाण पत्र अफसरन ने पिछड़ी जाति को बनाओ दओ है। हम लोगों को जिला प्रशासन गौड़-आदिवासी जाति के मानकर उसका प्रमाण पत्र देता रहा। शासन की नई गाइड लाइन ऐसी आई जिसने हमें पिछड़ी जाति का माना और पिता-पुत्र की जाति बदल दी।
वे बताते हैं कि गुना जिले के बमौरी, गुना जनपद पंचायत आदि में लगभग 25 हजार गौड़-आदिवासी समाज के लोग निवास करते हैं। सन् 2002 से पूर्व इस समाज के लोगों को गौड़-आदिवासी जाति का माना जाता था। भारत सरकार की अनुसूचित जाति की अनुसूचित में सोलह नम्बर पर इनको गौड़-आदिवासी समाज के होने के रूप में दर्ज किया गया था। सन् 2002 से पूर्व से लेकर अभी तक इनको अनुसूचित जनजाति के रूप में माना जाता रहा और इनको प्रमाण पत्र दिया गया था।
प्रदेश सरकार ने माना पिछड़ा वर्ग
सूत्र बताते हैं कि प्रदेश सरकार ने गौड़-आदिवासी जाति के लोगों को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में शामिल न कर उनको पिछड़ा वर्ग में माना। कुछ समय से तो यह हाल हो गया कि अधिकतर अधिकारियों ने उनको पिछड़ा वर्ग न मानकर सामान्य बताया जाने लगा। आज भी ये सामान्य बने हुए हैं।
बाहर हो गए अजा जनजाति वर्ग से
बताया जाता है कि भारत सरकार और प्रदेश सरकार की जाति अनुसूचि में अलग-अलग श्रेणी में शामिल होने का नतीजा यह रहा कि इन समाज के लोग अनुसूचित जनजाति वर्ग को मिलने वाले लाभ से बाहर हो गए। इससे उनका आर्थिक नुकसान हो रहा है।
अब पिता और पुत्र अलग-अलग जाति के
जिले के गौड़-आदिवासी वर्ग के लोगों की पीड़ा ये है कि पिता-पुत्र की जाति कैसे-कैसे अलग-अलग हो सकती है। सरकार को हमारे पुत्रों की जाति गौड़-आदिवासी मानकर भारत सरकार की जाति अनुसूची में शामिल किया जाना चाहिए। इस समाज के लोगों को अनुसूचित जनजाति वर्ग के आधार पर मिलने वाला से भी वंचित हो गए। अब शासन के आदेश के बाद उनके गौड़.आदिवासी जाति का प्रमाण पत्र बनना है जिसके लिए ग्राम स्तर पर शिविर लगाकर यह काम होना थे। लेकिन पत्राचार के बीच प्रमाण पत्र बनने काम भी शुरू नहीं हो पाया। उनका कहना था कि इसके लिए हम कांग्रेस की तत्कालीन सरकार के कार्यकाल में स्थानीय सांसद,तत्कालीन मंत्रियों व प्रभारी मंत्री से मिलते रहे, आश्वासन मिला, लेकिन प्रमाण पत्र बनना शुरू नहीं हो पाए।उनका कहना था कि भाजपा की सरकार आने के बाद हमें उम्मीद जागी कि अब हमें पहचान मिल जाएगी, इसके लिए भारतीय मजदूर संघ से जुड़े धर्म स्वरूप भार्गव के जरिए भाजपा सरकार के मंत्रियों और पदाधिकारियों से मिलते रहे, हमें सिर्फ आश्वासन मिलते रहे।
आखिरी दम तक लड़ेगे इनकी लड़ाई
उधर भारतीय मजदूर संघ से जुड़े धर्म स्वरूप भार्गव कहते हैं कि इनको अपनी पुरानी पहचान दिलाने के लिए इनकी लड़ाई हम हर स्तर पर लड़ रहे हैं और इनको न्याय दिलाकर ही रहेंगे। इस मांग को लेकर कांग्रेस-भाजपा से जुड़े कई वरिष्ठ नेताओं ने भी अपने-अपने स्तर पर प्रयास किए, आश्वासन दिए, मगर इस जाति को अपनी पुरानी पहचान अभी तक कोई नहीं दिला पाया।तीन साल पहले जाति बदलने को लेकर हुई कागजी कार्रवाई के बाद यहां सामान्य प्रशासन विभाग के तत्कालीन अवर सचिव केके कातिया के नेतृत्व में उच्च अधिकारियों की एक टीम आई थी, जिसने प्रमाण पत्र देखने के बाद माना था कि यह गौड़-आदिवासी समाज के हैं, इसके बाद कागजी कार्रवाई चली, जो बाद में थम गई। कुछ दिनों पूर्व प्रदेश के पंचायत मंत्री महेन्द्र सिंह सिसौदिया के समक्ष भी यह मांग उठाई थी, उन्होंने निर्देश दिए, लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।