scriptपत्रिका अलर्ट : कोयला संकट का असर रबी फसल की बोवनी पर भी ! | Impact of coal crisis on sowing of Rabi crop | Patrika News

पत्रिका अलर्ट : कोयला संकट का असर रबी फसल की बोवनी पर भी !

locationगुनाPublished: Oct 16, 2021 09:31:28 pm

Submitted by:

Narendra Kushwah

कृषि विशेषज्ञों ने किसानों को चेताया, इस बार गेहूं की अपेक्षा चना व सरसों अधिक करेंबिजली संकट के चलते आ सकती है सिंचाई में दिक्कतगेहूं को 6 पानी की जरूरत जबकि सरसों और चना को सिर्फ दो पानी ही पर्याप्त

पत्रिका अलर्ट : कोयला संकट का असर रबी फसल की बोवनी पर भी

पत्रिका अलर्ट : कोयला संकट का असर रबी फसल की बोवनी पर भी

गुना. जिले के किसानों को सचेत कर देने वाली खबर है। वे हर बार की तरह इस बार भी गेहूं की बोवनी अधिक क्षेत्रफल में करने के बारे में न सोचें। क्योंकि इसमें उन्हें बहुत ज्यादा घाटा उठाना पड़ सकता है। वर्तमान हालात गेहंू की बोवनी कम करने के लिए इशारा कर रहे हैं। इसे गंभीरता से लेने की जरूरत है। यह कहना है कृषि विभाग और कृषि विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों का। जिन्होंने तर्क पूर्ण तरीके से किसानों को सलाह देते हुए गेहूं की अपेक्षा चना और सरसों की बोवनी ज्यादा क्षेत्रफल में करने के लिए कहा है।
कृषि विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक जिले में इस बार रबी सीजन के लिए कृषि विभाग ने 3.20 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बोवनी का लक्ष्य रखा है। इसमें गेहूं 1.91 लाख हेक्टेयर क्षेत्र, 76 हजार हेक्टेयर में चना और 35 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सरसों की बोवनी होना है। इसके अलावा अन्य जिंस की बोवनी होना है, लेकिन सीजन में कृषि विभाग ने किसानों को सलाह देते हुए चेताया है कि वे रबी की प्रमुख फसल गेहूं के स्थान पर सरसों और चना की ज्यादा बोवनी करें।
इसके पीछे कृषि वैज्ञानिकों का तर्क है कि चूंकि गेहूं में 6 पानी लगते हैं। जबकि सरसों व चना में दो पानी की ही जरूरुत होती है। वर्तमान हालातों को देखते हुए आगामी दिनों में यदि बिजली संकट गंभीर हुआ तो गेहूं की फसल में सिंचाई करने में दिक्कत आ सकती है।
दूसरा बड़ा कारण यह भी है कि गेहूं का उत्पादन इतना अधिक होने लगा है कि भंडारण के लिए गोदाम तक कम पडऩे लगे हैं।
जानकारी के मुताबिक इन दिनों खरीफ फसल कटने का दौर चल रहा है। इसके बावजूद किसानों ने अभी से रबी सीजन की तैयारियां शुरू कर दी हैं। कृषि विभाग ने भी बोवनी का लक्ष्य निर्धारित कर लिया है। कृषि विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों की सलाह है कि इस बार किसान रबी सीजन की मुख्य और परंपरागत फसल गेहूं का मोह छोड़कर उसके स्थान पर सरसों और चना की बोवनी को प्राथमिकता दे। विशेषज्ञों ने किसानों को चेताते हुए कहा है कि इस बार गेहंू की उत्पादन क्षमता में गिरावट आ सकती है। इसके पीछे दो तर्क उन्होंने बताएं हैं, इनमे एक है गेहंंू का उतपादन अधिक होना। जिसके कारण सरकार के पास गेहूं का सुरक्षित भंडारण करने पर्याप्त गोदाम तक नहीं हैं। कई बार देखने में आया है कि बारिश की वजह से बड़ी मात्रा में गेहूं खराब हो गया। इसके अलावा एक और कारण है भाव। वर्तमान में सरसों व चना के मुकाबले गेहंू का भाव कम है।

इसलिए सरसों व चना की बोवनी पर अधिक जोर
कृषि विशेषज्ञ इस बार गेहूं की अपेक्षा चना और सरसों की बोवनी पर अधिक जोर दे रहे हैं। इसकी वजह भी उन्होंने स्पष्ट करते हुए बताया है कि मौजूदा समय में देश भर में कोयले को लेकर जो हालात बन रहे हैं, उससे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इन हालातों को ठीक होने में अभी काफी समय लगेगा। जिसे देखते हुए आगामी समय में बिजली संकट गहरा सकता है। जिसका सबसे ज्यादा असर रबी फसल की सिंचाई पर पड़ेगा। क्योंकि इस फसल को पानी की ज्यादा जरूरत होती है। अधिकांश किसानों के पास जो सिंचाई के साधन हैं वे सभी बिजली पर आधारित हैं।

सरसों की बोवनी बढऩे से पाम ऑयल पर निर्भरता घटेगी
रबी सीजन में सरसों की बोवनी बढऩे से न सिर्फ किसानों को फायदा होगा बल्कि व्यापारिक क्षेत्र में भी इसका असर देखने को मिलेगा। जिसका फायदा आम आदमी को होगा। विशेषज्ञों के मुताबिक इस समय देश में 56 प्रतिशत पाम आयल का उपयोग हो रहा है। जिससे हमें आयात करने की जरूरत पड़ रही है। यदि सरसों की पैदावार बढ़ती है तो पाम आयल पर निर्भरता घटेगी।

सोयाबीन में हुए नुकसान से सबक लेने की जरूरत
कृषि विभाग की सलाह के बावजूद सोयाबीन की फसल करने वाले जिले के किसान पिछले तीन सालों से सोयाबीन में नुकसान झेल रहा है। वहीं जिन किसानों ने सलाह मानी उन्हें फायदा भी हुआ है। राघौगढ़ और मधुसूदनगढ़ क्षेत्र के अधिकांश किसानों ने इस बार सोयाबीन की जगह ज्वार की फसल को ज्यादा तवज्जो दी है। बुजुर्ग किसानों का कहना है कि इस क्षेत्र में 25 साल पहले ज्वार की पैदावार अधिक की जाती थी। उस समय मजदूर वर्ग गेहूं की जगह ज्वार ही खाता था। इस फसल को किसान सहायक फसल के रूप में उगाते थे। लेकिन सोयाबीन आने के बाद एकाएक किसानों का इस ओर रुझान बढ़ा। जिसके बाद पिछले कुछ वर्षों में अनियमित वर्षा व अतिवृष्टि के कारण सोयाबीन में बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है। लेकिन अब ज्वार, गेहूं की अपेक्षा अधिक कीमत में बिक रही है। वर्तमान में ज्वार का भाव लगभग 4 से 5 हजार प्रति क्विंटल है।

फैक्ट फाइल
रबी फसल की बोवनी का कुल लक्ष्य : 3.20 लाख हेक्टेयर
चना की बोवनी का कुल लक्ष्य : 76 हजार हेक्टेयर
सरसों की बोवनी का कुल लक्ष्य : 35 हजार
गेहूं की बोवनी का कुल लक्ष्य : 1.91 लाख हेक्टेयर
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