इसलिए सरसों व चना की बोवनी पर अधिक जोर
कृषि विशेषज्ञ इस बार गेहूं की अपेक्षा चना और सरसों की बोवनी पर अधिक जोर दे रहे हैं। इसकी वजह भी उन्होंने स्पष्ट करते हुए बताया है कि मौजूदा समय में देश भर में कोयले को लेकर जो हालात बन रहे हैं, उससे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इन हालातों को ठीक होने में अभी काफी समय लगेगा। जिसे देखते हुए आगामी समय में बिजली संकट गहरा सकता है। जिसका सबसे ज्यादा असर रबी फसल की सिंचाई पर पड़ेगा। क्योंकि इस फसल को पानी की ज्यादा जरूरत होती है। अधिकांश किसानों के पास जो सिंचाई के साधन हैं वे सभी बिजली पर आधारित हैं।
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सरसों की बोवनी बढऩे से पाम ऑयल पर निर्भरता घटेगी
रबी सीजन में सरसों की बोवनी बढऩे से न सिर्फ किसानों को फायदा होगा बल्कि व्यापारिक क्षेत्र में भी इसका असर देखने को मिलेगा। जिसका फायदा आम आदमी को होगा। विशेषज्ञों के मुताबिक इस समय देश में 56 प्रतिशत पाम आयल का उपयोग हो रहा है। जिससे हमें आयात करने की जरूरत पड़ रही है। यदि सरसों की पैदावार बढ़ती है तो पाम आयल पर निर्भरता घटेगी।
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सोयाबीन में हुए नुकसान से सबक लेने की जरूरत
कृषि विभाग की सलाह के बावजूद सोयाबीन की फसल करने वाले जिले के किसान पिछले तीन सालों से सोयाबीन में नुकसान झेल रहा है। वहीं जिन किसानों ने सलाह मानी उन्हें फायदा भी हुआ है। राघौगढ़ और मधुसूदनगढ़ क्षेत्र के अधिकांश किसानों ने इस बार सोयाबीन की जगह ज्वार की फसल को ज्यादा तवज्जो दी है। बुजुर्ग किसानों का कहना है कि इस क्षेत्र में 25 साल पहले ज्वार की पैदावार अधिक की जाती थी। उस समय मजदूर वर्ग गेहूं की जगह ज्वार ही खाता था। इस फसल को किसान सहायक फसल के रूप में उगाते थे। लेकिन सोयाबीन आने के बाद एकाएक किसानों का इस ओर रुझान बढ़ा। जिसके बाद पिछले कुछ वर्षों में अनियमित वर्षा व अतिवृष्टि के कारण सोयाबीन में बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है। लेकिन अब ज्वार, गेहूं की अपेक्षा अधिक कीमत में बिक रही है। वर्तमान में ज्वार का भाव लगभग 4 से 5 हजार प्रति क्विंटल है।
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फैक्ट फाइल
रबी फसल की बोवनी का कुल लक्ष्य : 3.20 लाख हेक्टेयर
चना की बोवनी का कुल लक्ष्य : 76 हजार हेक्टेयर
सरसों की बोवनी का कुल लक्ष्य : 35 हजार
गेहूं की बोवनी का कुल लक्ष्य : 1.91 लाख हेक्टेयर