बच्चे भी नहीं आ रहे प्रवेश लेने
इस संस्था से जुड़े कई फैकल्टी के अनुसार में इस संस्था में कहने को आठ फेकल्टी है, बच्चों की संख्या देखी जाए तो इन आठ फेकल्टी में 52 बताई जबकि सीट 60 से अधिक हैं जो हर बार खाली ही रह जाती हैं। इस संस्था में प्रवेश लेने वाले एक छात्र से प्रथम सेमेस्टर के रूप में 87 हजार रुपए ली जाती है। इसके बाद यह फीस घटती व बढ़ती रहती है। नौ का यहां स्टॉफ है जिनके वेतन पर ही हर माह लगभग दस लाख रुपए खर्च होता है। इसके अलावा दूसरे खर्चें भी अलग हैं। बहुमंजिलें मशीनें तो हैं लेकिन पर्याप्त बच्चों के न होने से वह धूल खा रही हैं। बच्चों के अनुसार एक तो शहर से काफी दूर ये संस्था है ओर दूसरी हॉस्टल और संस्था में जो सुविधाएं हमको मिलना चाहिए वे नहीं मिल पा रही हैं।
हंगामा हुआ तो बच्चों को जोधपुर शिफ्ट कर दिया था
बताया गया कि दो-ढाई साल पूर्व यहां पढ़ रहे बच्चों ने कोई सुविधा न मिलने के बाद यहां नाराजगी जाहिर कर हंगामा किया था। उनकी नाराजगी ये थी कि वहां प्रेक्टिकल के लिए लैब, मशीन और स्टॉफ तक नहीं था। जिसके बाद यहां से 35 बच्चों को जोधपुर स्थित एफडीडीआई की संस्था में शिफ्ट कर दिया था।
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ेघाटे में चल रही है संस्था
संस्थान के प्रमुख आरके सिंह मानते हैं कि यहां बच्चों की संख्या और स्टॉफ पर होने वाले खर्चे के अनुपात में गुना में संस्था घाटे में चल रही है। वैसे अधिकतर जगह ऐसी इंस्टीट्यूट मेट्रो सिटी में हैं, केवल यहीं ग्रामीण क्षेत्र में खुली है। उसकी वजह कुछ भी हो सकती है। कम प्रवेश की वजह प्रचार-प्रसार और जागरूकता का अभाव बताया। यहां प्रवेश बढ़े इसके लिए हम सांसद डा. केपी यादव से भी मिले थे, लेकिन उन्होंने भी कोई रूचि नहीं ली थी।