कुल मिलाकर ये है कि नगर पालिका के चुनाव फिलहाल अपने समय यानि नवम्बर-दिसम्बर माह में नहीं हो पाएंगे। वहीं गुना शहर की जनता द्वारा मिनी स्मार्ट सिटी Mini Smart City के सपने फिलहाल अधूरे रह जाएंगे। कांग्रेसी सूत्र बता रहे हैं कि प्रदेश सरकार नगर पालिका गुना का कार्यकाल खत्म होने के बाद समितियों का गठन करके नया अध्यक्ष बनाएगी। जिसके पास नगरीय निकाय की चाबी रहेगी।
सरकार निकाय चुनाव को आगे बढ़ा रही
उधर भाजपा नेताओं का कहना है कि प्रदेश की जनता के बीच कांग्रेस विरोधी माहौल है, इसीलिए सरकार निकाय चुनाव को आगे बढ़ा रही है। नगरपालिका परिषद सहित नगर परिषदों का कार्यकाल दिसंबर 2019 में खत्म हो रहा है। यह कार्यकाल खत्म होने से पूर्व चुनाव प्रक्रिया मई माह से शुरू हो जाना थी, जिसके तहत परिसीमन, मतदाता सूचियों का प्रकाशन, वार्ड आरक्षण प्रक्रिया, अध्यक्ष पद का आरक्षण होना था,इसके लिए तिथि भी घोषित हुई, लेकिन चुनाव संबंधी प्रक्रिया पूरी होने से पहले तिथि टल गई।
चुनाव की प्रक्रिया की सुगबुगाहट तक नहीं
13 अगस्त को वार्ड आरक्षण की तिथि भी तय की गई थी, वह भी स्थगित हो गई। वही प्रशासन स्तर पर नगरीय निकाय के चुनाव की प्रक्रिया की सुगबुगाहट तक नहीं हैं। इसकी मुख्य वजह यह है कि प्रदेश सरकार निकाय चुनाव को परिसीमन के नाम पर आगे बढ़ाने की तैयारी में है। ऐसे में गुना नगर पालिका परिषद और जिले की अन्य नगर पालिका व नगर पंचायतों का कार्यकाल खत्म हो जाएगा। बताया जाता है कि फिर नगरपालिका की पूरी कमान गठित की जाने वाली समिति के हाथोंं में आ जाएगी।
अध्यक्ष व सदस्यों का निर्धारण सरकार करेगी
समिति में एक अध्यक्ष व अधिकतम 10 सदस्य हो सकते हैं। समिति अध्यक्ष व सदस्यों का निर्धारण सरकार करेगी, जिसमें वर्तमान जनप्रतिनिधि या फिर शहरी क्षेत्र के किसी बेहतर कांग्रेसी चेहरे को अध्यक्ष बनाया जा सकता है। नपाध्यक्ष की तरह ही समिति अध्यक्ष को चेक पॉवर रहेंगे और वो उसी तरह काम करेगा, जैसे परिषद के कार्यकाल में अध्यक्ष करता है।
न तो शहर मिनी स्मार्ट सिटी बन पाया और न ही समस्याओं का निराकरण
विकास को लेकर होते रहे विवाद: गुना नपा का इतिहास देखा जाए तो यहां लंबे समय से नगर पालिका पर भाजपा का कब्जा रहा है। लेकिन शहर के विकास को लेकर न तो भाजपा के पार्षद एकजुट रहे और न ही पूरी नगर पालिका परिषद। नगर पालिका में अध्यक्ष पद पर रहे राजेन्द्र सलूजा ने चुनाव लडऩे के समय जो घोषणाएं की थीं उनमें से आधे से अधिक पूरी नहीं हो पाई। उनके विरुद्ध गबन, भ्रष्टाचार के तहत पुलिस थाने में मामला दर्ज हो गया था। उसके बाद राजू यादव प्रभारी अध्यक्ष बने, लेकिन वे भी विवादों के घेरे में दिनों-दिन आते जा रहे हैं। अधिकतर पार्षदों का कहना है कि न तो शहर मिनी स्मार्ट सिटी बन पाया और न ही समस्याओं का निराकरण। जिससे शहर का विकास थम सा गया है।
अधिकतर नगरपालिका में कांग्रेस का कब्जा हो जाएगा
समिति के जरिए बनाएंगे माहौल: सूत्रों ने बताया कि पूर्व में नगर पालिका अध्यक्ष को पार्षद ही चुनते थे। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में नगर पालिका अध्यक्ष जनता के द्वारा चुने जाने की प्रक्रिया शुरू हुई। लेकिन यह प्रक्रिया कांग्रेस के नुकसान खाते में चली गई, भाजपा का अधिकतर नगर पालिकाओं पर कब्जा हो गया था। इस प्रक्रिया में बदलाव कर नगर पालिका अध्यक्ष का चुनाव जनता द्वारा न कराकर पार्षदों के जरिए कराए जाने की पूरी तैयारी प्रदेश सरकार ने कर ली है। इसके पीछे मंशा यह है कि अधिकतर नगरपालिका में कांग्रेस का कब्जा हो जाएगा
इनका कहना है
निकाय चुनाव को आगे बढ़ाने के लिए नपा एक्ट में संशोधन करना पड़ेगा। कार्यकाल खत्म होने के बाद सरकार एक एडहॉक समिति बनाकर अपनी पसंद के नेता को अध्यक्ष बना सकते हैं, जिसको सभी पावर दे सकते हैं। एडहॉक समिति में दस या अधिक लोगों को शामिल किया जा सकता है।
सुनील रघुवंशी सेमरी, एडवोकेट