गुना

पत्रिका स्पॉट लाइट : सरकारी प्राथमिक स्कूलों की दशा खराब, इसलिए विद्यार्थी संख्या घटकर रह गई आधी

विद्यालय प्रबंधन का तर्क, अन्य कमियों से ज्यादा शिक्षा का अधिकार अधिनियम है इसकी मुख्य वजह

गुनाMar 17, 2024 / 09:35 pm

Narendra Kushwah

जाटपुरा प्राथमिक विद्यालय भवन जिन सीढियों से चढ़कर बच्चे जाते हैं वही क्षतिग्रस्त।

गुना . जिले के सरकारी प्राथमिक स्कूलों की दशा बहुत खराब है। जिसके परिणामस्वरूप लगातार बच्चों की संख्या घटती जा रही है। बीते 10 सालों में विद्यार्थियों की संख्या घटकर आधी रह गई है। कई स्कूल तो ऐसे हैं जहां छात्र संख्या 50 से भी कम है। विद्यार्थियों की घटती संख्या की जानकारी शिक्षा विभाग के अधिकारियों को होने के बाद भी अब तक विभाग की ओर से इसे बढ़ाने तथा स्कूलों की दशा सुधारने कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं। जिसका नुकसान आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को उठाना पड़ रहा है। कुछ लोग मजबूरीवश निजी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए मजबूर हो रहे हैं तो वहीं सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का शैक्षणिक स्तर भी गिर रहा है। ऐसी स्थिति के लिए विद्यालय प्रबंधन दबी जुबान में शासन की गलत नीतियों और प्रशासनिक उदासीनता को ही जिम्मेदार ठहरा रहा है।
सरकारी प्राथमिक स्कूलों की खराब दशा और घटती छात्र संख्या को लेकर पत्रिका ने शहर के अलग-अलग स्कूलों में जाकर पड़ताल की। इस दौरान विद्यालय प्रबंधन और शिक्षकों से कारण जानने का प्रयास किया।

शासकीय प्राथमिक विद्यालय मातापुरा के प्रभारी संतोष कुशवाह ने बताया कि उनका स्कूल जिस इलाके में है, उसमें आर्थिक रूप से कमजोर परिवार ज्यादा निवास करते हैं। ज्यादातर बच्चे इन्हीं परिवार के हैं। वर्तमान में इस स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या 154 है। जबकि 2009-2010 में छात्र संख्या 300 के लगभग थी।

शासकीय मिडिल स्कूल मानस भवन के प्रभारी नरेंद्र भारद्वाज ने बताया कि उनके यहां प्राथमिक विद्यालय में इस समय कुल विद्यार्थियों की संख्या 150 है। जबकि 2022-23 में यह संख्या 189 के करीब थी।

शासकीय प्राथमिक विद्यालय नानाखेड़ी के प्रभारी गोपाल श्रीवास्तव का कहना है कि हमारे यहां अभी कुल बच्चों की संख्या 225 है। जबकि 2004 से 2008 के बीच यह संख्या 675 तक पहुंच गई थी।

विद्यार्थियों की संख्या घटना की ये वजह भी सामने आईं

पत्रिका ग्राउंड रिपोर्ट में सामने आया है कि इन स्कूलों का इन्फ्रास्ट्रक्चर ठीक नहीं है। जिन कमरों में बच्चे बैठते हैं, उनका प्लास्टर उखड़ा हुआ है। कहीं बाउंड्रीवॉल ही नहीं तो कहीं टूटी होने से सुरक्षा का अभाव है। बैठने के इंतजाम नाकाफी हैं। कुछ स्कूलों में टाटपट्टी पर बच्चों को बिठाया जा रहा है तो कुछ में पर्याप्त फर्नीचर ही नहीं है। वहीं बच्चों की संख्या के हिसाब से शिक्षक भी नहीं हैं। स्कूल प्रबंधन का कहना है कि कुछ शिक्षकों को स्थायी बीएलओ बना दिया है। जिसकी वजह से उन्हें अधिकांश समय फील्ड में या मीटिंग में जाना पड़ता है। इन वजहों से बच्चों की पढ़ाई पर ज्यादा असर पड़ता है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) के तहत एक बार बच्चे का एडमिशन निजी स्कूल में करा दिया तो फिर उसे बाद में नहीं निकालते।

सरकारी स्कूलों की दशा सुधरे तो जरूर वहां बच्चों को पढ़ाएंनिजी स्कूलों की फीस बहुत ज्यादा है। ऐसे में मध्यम वर्गीय परिवार भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं। लेकिन स्कूल भवनों की खराब हालत, फर्नीचर की कमी, सफाई, पेयजल के खराब इंतजामों को देखते हुए चाहकर भी अधिकांश अभिभावक इनमें अपने बच्चों का एडमिशन नहीं करा पा रहे।
राजबाई, अभिभावक

छात्र संख्या घटने की मुख्य वजह आरटीई

हां यह बात सही है कि सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या पिछले कुछ सालों में ज्यादा घटी है। इसके कई कारण हैं। इनमें मुख्य वजह शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत निजी स्कूलों में नि:शुल्क एडमिशन दी जाने की व्यवस्था है। एक समय गुना शहर में प्राथमिक स्कूलों की संख्या 21 थी लेकिन छात्र संख्या घटने के कारण ही कुछ स्कूलाें को एकीकृत विद्यालय में मर्ज करना पड़ा है। वर्तमान में जाटपुरा, पुरानी छावनी के अलावा भी ऐसे कई स्कूल हैं जहां छात्र संख्या 50 से भी कम है।
राजेंद्र साहू, सीएसी गुना

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