इस समय स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी और अधिक बढ़ जाती है कि वह स्वाइन फ्लू के लक्षण वाले मरीज को पहचानने के लिए अलग से स्क्रीनिंग की व्यवस्था करे ताकि उसकी पहचान समय रहते हो जाए और उसे सामान्य मरीजों से अलग कर प्रथक वार्ड में भर्ती कर इलाज किया जा सके। लेकिन जिला अस्पताल में अब तक न तो अलग से स्क्रीनिंग की व्यवस्था की गई है और न ही मरीजों को भर्ती करने अलग से वार्ड बनाया गया है।
जिला अस्पताल जांच कराने नहीं पहुंचा
यहां बता दें कि जिला अस्पताल में स्वास्थ्य सुविधाएं ठीक न होने के कारण अधिकांश मरीज सीधे जिले से बाहर अपना इलाज कराने चले जाते हैं। जिसका ताजा उदाहरण हाल ही में सामने आया है। जिले में एक नहीं बल्कि 10 डेंगू के मरीज पीडि़त पाए गए हैं। लेकिन इनमें से एक भी जिला अस्पताल जांच कराने नहीं पहुंचा।
इंदौर में ही जांच कराई तथा इलाज कराया
सभी मरीजों ने जिले के बाहर भोपाल व इंदौर में ही जांच कराई तथा इलाज कराया। गौर करने वाली बात है कि जिले के स्वास्थ्य महकमे को डेंगू के मरीजों की जानकारी तब लगी जब उनके पास दूसरे अस्पताल वालों ने अपने यहां भर्ती डेंगू मरीज की जानकारी दी। यहां बता दें इसके बाद भी जिला अस्पताल में न तो डेंगू के मरीज के लिए अलग से वार्ड बनाया गया है और न ही स्वाइन फ्लू के मरीज के लिए।
इसलिए जरूरी है अलग से वार्ड
सर्दी के मौसम में ही स्वाइन फ्लू होने का खतरा सबसे ज्यादा होता है तथा इसी समय जुकाम, खांसी के मरीज भी काफी बढ़ जाते हैं। ऐसी स्थिति सामान्य जुकाम, खांसी के मरीज व स्वाइन फ्लू से पीडि़त मरीज को पहचानना थोड़ा कठिन हो जाता है। स्वाइन फ्लू वायरस के कारण होने वाली एक बीमारी है।
सर्दी के मौसम में इस फ्लू के होने का खतरा दोगुना हो जाता है। जैसे-जैसे तापमान गिरता जाता है और प्रदूषण बढ़ता जाता है। ज्यादा से ज्यादा लोग स्वाइन फ्लू के लक्षण लेकर आने लगते हैं।
स्वाइन फ्लू एक रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन है जो एच-1 एन-1 वायरस के कारण होता है। यह वायरस ज्यादातर सूअरों में पाया जाता है पर कभी कभार इंसानों में ट्रांसफर होकर बीमारियां फैलाता है। यह वायरस इंसान के नाक, गले और फेफड़ों में रहने वाली कोशिकाओं को दूषित करके शरीर में इन्फ्लुएंजा जैसे लक्षण पैदा करता है। यह वायरस बड़ी आसानी से व्यक्ति के नाक या मुँह द्वारा शरीर में प्रवेश कर सकता है।
इन लक्षणों से पहचानें स्वाइन फ्लू
कभी कभी ज्वर आना, ठण्ड लगना, खांसी और खराब गला, नाक का बहना, शरीर या सिर में दर्द, थकावट, उबकाई और उल्टियां, स्वाइन फ्लू के शुरुआती लक्षण ज्यादातर वायरस के शरीर में प्रवेश करने के 1 से 3 दिन के अंदर-अंदर प्रकट होते है।
स्वाइन फ्लू से इन्हें सबसे ज्यादा खतरा
गर्भवती महिलाएं खास तौर पर जिनका नौवा महीना चल रहा है। बुज़ुर्ग जिनकी उम्र 65 से ज्यादा है। पांच साल से छोटे शिशु। वह लोग जिन्हें लंबे समय से अस्थमा, इम्फीसेमा, डायबिटीज और दिल का रोग हो।
यह सावधानियां भी बचा सकती हैं स्वाइन फ्लू से
अधिकतर समय आराम करें और अपने इम्यून सिस्टम को इस बीमारी से लडऩे दें। ज्यादा से ज्यादा पानी और दूसरे तरल पदार्थ पिएं ताकि आपको डिहाइड्रेशन ना हो जाए। ज़्यादा ज्वर और शरीर में दर्द होने पर पेरासिटामोल लें। स्वाइन फ्लू के लक्षणों से राहत पाने के लिए अदरक वाली चाय और लहसुन का रस भी पी सकते हैं।
ऐसे पहचानें जुकाम व स्वाइन फ्लू में अंतर
जुकाम व स्वाइन फ्लू के लक्षण लगभग एक जैसे हंै लेकिन कुछ ऐसे लक्षण भी है जो दोनों की पहचान कराते हैं। सर्दी-जुकाम के समय पहले गले में खराश पैदा होती है और जलन होती है। नाक बंद हो जाती है या बहने लगती है। रोगी को बार-बार छींक आती है। हल्का बुखार भी आ जाता है। सामान्य लोगों में आमतौर पर सात दिनों के बाद जुकाम दूर हो जाता है।