पैसा आने के बाद नहीं बन पाया स्कूल भवन, खुले आसमान के नीचे लगती हैं कक्षाएं
-मामला गोचापुरा गांव का,बच्चों को बैठने टाटपट्टी तक नहीं
नदी पार करके जाना पड़ता है बच्चों व स्टाप को, शिक्षिकाओं को कुर्सियां तक नसीब नहीं
गुना
Published: March 07, 2022 01:31:25 am
गुना/राघौगढ़। शिक्षा का स्तर सुधरे, हर स्कूल का स्वयं का भवन हो, बच्चों को पढऩे के लिए टाट पट्टी उपलब्ध हो, इसके लिए हर जिले के शिक्षा विभाग और ग्राम पंचायतों को पैसा दिया जा रहा है, लेकिन उस पैसे को अधिकारी, जनप्रतिनिधि अपने स्वार्थ के खातिर स्कूल भवन न बनवाकर दूसरे कामों में खर्च कर रहे हैं। जिससे बच्चों को पढऩे तक के लिए भवन तक उपलब्ध नहीं हो पा रहा है, ऐसा ही एक मामला राघौगढ़ जनपद पंचायत के गोचापुरा गांव का आया है, जहां शासन से आए पैसे को ठिकाने लगा दिया, स्कूल भवन अधूरा पड़ा हुआ है, जिससे बच्चों को खुले आसमान के नीचे पढऩा पड़ रहा और वहां पदस्थ दो शिक्षिकाएं भी जमीन पर बैठकर बच्चों को पढ़ाने के लिए मजबूर हैं।
ये है मामला
राघौगढ़ ब्लॉक में नदी के दूसरी तरफ गोचा आमल्या ग्राम पंचायत के अन्तर्गत गोचापुरा गांव बसा हुआ है। इस गांव में प्राइमरी स्कूल भवन बनने के लिए शासन की और से बज आया था, इस बजट का बंदरबाट हो गया, स्कूल भवन जो बनना था वह अधूरा रह गया। लंबे समय से स्कूल भवन के रूप में केवल दीवार खड़ी नजर आ रही है। इस विद्यालय का भवन न होने से खुले आसमान के नीचे एक नीम के पेड़ के नीचे बच्चे पढ़ते हुए मिले। इनमें अधिकतर बच्चे सहरिया-आदिवासी जिनको पढ़ाने आने वाली शिक्षिका अनुपमा शर्मा और सजन कंवर सिसौदिया को भी बैठने के लिए टेबिल कुर्सी नहीं मिली, वे जमीन पर बैठकर बच्चों को पढ़ा रही थीं।
शिक्षिकाओं की पीड़ा
यहां पढ़ाने वाली एक शिक्षिका ने बताया कि बैठने के लिए टेबिल-कुर्सी नहीं हैं, पानी की बोतल भी अपने घर से लाते हैं। शिक्षिका का कहना था कि हमें नदी पार करके बच्चों को पढ़ाने आना पड़ता है। कभी-कभी शराब पीए हुए लोगों से सामना होता है। इसके अलावा कई परेशानी है। जब उनसे स्कूल भवन के न बनने को लेकर पूछा गया तो उनका कहना था कि स्कूल भवन बनवाने के लिए हमने कई बार शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को पत्र लिखे, लेकिन भवन अभी तक नहीं बन पाया। स्कूल भवन न बन पाने को लेकर जिला शिक्षा अधिकारी चन्द्रशेखर सिसौदिया से पूछा गया तो उनका कहना था कि यह मामला मेरे संज्ञान में आया है इस मामले को दिखवाता हूं और जो भी दोषी होगा उसके खिलाफ अवश्य कार्रवाई होगी।
गांव जाने का रास्ता कोई दूसरा नहीं
गांव जाने के लिए नदी पार करके जाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं हैं। इस सहरिया-आदिवासी बाहुल्य में कोई बीमार हो जाए तो उसे अस्पताल पहुंचाने तक के लिए काफी परेशान होना पड़ता है।कई बार मांग करने के बाद भी इस नदी पर पुल नहीं बन पाया है।

पैसा आने के बाद नहीं बन पाया स्कूल भवन, खुले आसमान के नीचे लगती हैं कक्षाएं
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