भवन की हालत बेहद जर्जर
एसएनसीयू जिला अस्पताल की बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील इकाई है। क्योंकि यहां लोगों के ऐसे नवजात बच्चों को भर्ती किया जाता है जो किसी न किसी गंभीर बीमरी से पीडि़त हैं। ऐसे में जरा सी लापरवाही स्थिति बिगाड़ सकती है। कई बार ऐसे मौके भी आए जब परिजनों ने डॉक्टर पर इलाज में लापरवाही के आरोप लगाकर उनसे अभद्रता कर दी। एसएनसी यूनिट जिस भवन में संचालित है, वह काफी पुराना है। जिसका अब तक जीर्णोद्धार नहीं कराया गया है। जिससे बारिश के समय यहां ज्यादा परेशानी आती है।
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सुविधाओं के अभाव में यह आ रही परेशानी
जिला अस्पताल के मेटरनिटी वार्ड में यदि महिला की डिलीवरी नार्मल हुई तो उसे दो से तीन दिन तक भर्ती रखा जाता है जबकि सीजेरियन ऑपरेशन होता है तो करीब पांच दिन लग सकते हैं। ऐसे में यदि नवजात शिशु को स्वास्थ्य से संबंधी जटिलता है तो उसे एसएनसीयू में भर्ती किया जाता है। जहां बच्चे को स्वस्थ्य होने में 15 से 25 दिन का समय भी लग सकता है। ऐसे में मां की मेटरनिटी वार्ड से छु्ट्टी कर दी जाती है। वहीं नवजात बच्चों की मां को भर्ती रहने के लिए अलग से वार्ड आरक्षित किए गए हैं। लेकिन जिला अस्पताल में इनकी क्षमता बहुत कम है तथा वहां जरूरी सुविधाओं का अभाव भी है। ऐसे में मां सहित उसके साथ मौजूद अटैंडरों को बहुत ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ता है।
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जिला अस्पताल के अलावा कहीं भी नहीं है एसएनसीयू
नवजात बच्चों के इलाज के लिए जरूरी एसएनसीयू जिला अस्पताल के अलावा कहीं भी नहीं है। जबकि जिले की तहसील और ब्लॉक मुख्यालय पर सामुदायिक व सिविल अस्पताल मौजूद हैं। वहीं जिला मुख्यालय पर ही एक दर्जन से अधिक निजी अस्पताल व नर्सिंग होम मौजूद हैं। लेकिन कहीं भी नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई नहीं है। ऐसे में जिले भर के बच्चे जिला अस्पताल में ही भर्ती होते हैं। वहीं पड़ौसी जिले अशोकनगर व शिवपुरी जिले के नजदीकी ग्रामों की डिलीवरी भी यहां होती हैं। इसी वजह से यहां के एसएनसीयू पर अधिक दबाव है।
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एसएनसीयू में किन बच्चों को रखा जाता है
एसएनसीयू में किस तरह के नवजात बच्चों को उपचार के लिए भेजा जाना है इसके लिए मापदंड तय है। जिसके तहत नवजात शिशु जिन्हें सांस लेने में परेशानी हो रही है, जिनका जन्म के वक्त वजन 2.50 किलो से कम व 4 किलो अधिक है, अगर बच्चा कोमा में है या फिर उसे दौरे पड़े रहे हैं, बच्चों को अगर बेचैनी हो रही है या उसकी सांस उखड़ रही है, उसे किसी तरह का आघात है या फिर उसे पीलिया है। उसके शरीर का तापमान सही नहीं रह रहा है तो उसे बेहतर इलाज के लिए एसएनसीयू में भर्ती कराने की जरूरत होती है। बच्चे को जितनी जल्दी यहां भर्ती कराया जाएगा बच्चे के बचने की उम्मीद उतनी ही अधिक होगी। यह केंद्र 24 घंटे काम करता है।
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फैक्ट फाइल
एसएनसीयू की स्थापना : 14 साल पहले
वार्मर की कुल क्षमता : 24
कुल पद स्वीकृत : 29
वर्तमान में मौजूद : 23