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गुना

क्वॉरंटीन से बाहर आते ही भुखमरी का शिकार हो रहे प्रवासी मजदूर

न कोई सरकारी मदद और न ही रोजगार, आखिर इस भीषण गर्मी में परिवार का कैसे पालें पेट

गुनाMay 29, 2020 / 08:49 pm

Narendra Kushwah

क्वॉरंटीन से बाहर आते ही भुखमरी का शिकार हो रहे प्रवासी मजदूर

क्वॉरंटीन से बाहर आते ही भुखमरी का शिकार हो रहे प्रवासी मजदूर

गुना. प्रवासी मजदूरों की मदद करने के सभी दावे पूरे तरह से खोखले साबित हो रहे हैं। लॉक डाउन के समय रोजगार छिनने के बाद न तो मजदूरों को रहने के लिए स्थान मिला और न ही दो वक्त का खाना। मजबूरीवश बड़ी संख्या में श्रमिकों को शहरों से अपनी गांव की ओर पलायन करना पड़ा। खास बात यह है कि ज्यादातर मजदूरों को अपने पैसे या पैदल ही अपने गांव तक आना पड़ा है। इसी बीच रास्ते में कोई सरकारी मदद भी नहीं मिली है। हालांकि जिले की सीमा में प्रवेश करने के बाद स्क्रीनिंग कर मजदूरों को सरकारी संस्थाओं में क्वॉरंटीन जरूर कर दिया गया। इस दौरान 14 दिनों तक श्रमिकों को दो जून की रोटी की व्यवस्था हो गई। लेकिन क्वॉरंटीन पीरियड से बाहर आते ही प्रवासी मजदूरों की असली अग्नि परीक्षा शुरू हो गई है। क्योंकि इस समय प्रवासी मजदूरों के पास न तो रोजगार है और न ही उसे दो जून की रोटी के लिए कोई सरकारी मदद मिल रही है। इस समय केवल आसपास रहने वाले ग्रामीण ही प्रवासी मजदूरों की मदद कर रहे हैं। लेकिन मदद का यह सिलसिला आखिर कब तक जारी रहेगा, यह सोचकर श्रमिक बेहद चिंतित नजर आ रहे हैं।
जानकारी के मुताबिक स्थानीय प्रशासन ने बीते दिनों मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराने की बात कहकर मनरेगा के कार्य शुरू कराने का दावा किया था। इसकी शुरूआत भी हुई जिसके फोटो भी प्रशासन द्वारा सार्वजनिक किए गए लेकिन यह कार्य आगे ज्यादा दिन नहीं चल सके और न ही जिले के सभी गांवों में मनरेगा के कार्य शुरू हुए। जिसका कारण पंचायत सचिवों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सबसे प्रमुख वजह मजदूरों को जल्द भुगतान न होना है। शासकीय प्रक्रिया ही ऐसी है कि मजदूरों को भुगतान करने में कम से कम 15 दिन तो लग ही जाते हैं। कभी कभी तो एक माह से भी ज्यादा समय हो जाता है। वहीं दूसरा कारण प्रवासी मजदूरों को शहर में जितने पैसे मिलते थे उससे बहुत कम भुगतान मनरेगा के द्वारा होता है। वहीं तीसरी वजह मटेरियल के अभाव में निर्माण कार्य पूर्ण न होना है। क्योंकि दूसरे जिलों से आने वाली रेत इस समय नहीं आ पा रही है। जिसके अभाव में यह काम नहीं हो पा रहे हैं। चौथी वजह मई माह में रौद्र रूप धारण कर चुकी गर्मी का सितम है। जिसके कारण भी अधिकांश प्रवासी मजदूर काम नहीं कर पा रहे हैं।

मजदूरों की परेशानी उनकी जुबानी
हमारे गांव सहित आसपास के किसी भी गांव में मनरेगा के तहत कोई भी काम नहीं चल रहे हैं। न ही आसपास ऐसे कोई निजी निर्माण कार्य हो रहे हैं जहां मजदूरी मिल सके। इससे पहले मैं इंदौर में एक दुकान पर काम करता था जबकि पत्नी एक हॉस्टल में खाना बनाने संबंधी काम करती थी। इन पैसों से जैसे तैसे घर खर्च चल जाता था लेकिन वापस आने पर तो दो वक्त का खाना भी नहीं मिल पा रहा।
रानू रजक, प्रवासी मजदूर

इंदौर से लौटने के बाद मुझे परिवार सहित गांव के एक स्कूल में क्वॉरंटीन कर दिया गया। सरपंच की तरफ से जो राशन दिया गया था वह सिर्फ क्वॉरंटीन समय के लिए ही था। इससे बाहर आने के बाद प्रशासन से किसी तरह की आर्थिक या राशन की मदद नहीं मिली है। मनरेगा या अन्य कोई निजी निर्माण कार्य भी नहीं हो रहे हंै जहां काम करने के बाद कम से कम दो वक्त की रोटी की जुगाड़ ही हो जाए।
सोनू रजक, प्रवासी मजदूर

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