इसकी वजह ये है कि बच्चों वाले आईसीयू में वेंटिलेटर नहीं हैं। इसके साथ ही अंचल भर में शिशु रोग विशेषज्ञों का बेहद टोटा है। केवल बीनागंज को छोड़कर अंचल के किसी भी अस्पताल में शिशु रोग विशेषज्ञ तक नहीं हैं।
जिला अस्पताल के बच्चों वाले आईसीयू में देखा जाए तो वेंटिलेंटर न होने और इलाज न मिलने से हर माह 150 में से 25 बच्चों की जान चली जाती है। यहां अशोकनगर से भी नवजातों को इलाज के लिए यहां लाना पड़ता है।
कुछ समय पूर्व प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट गुना आए थे, उन्होंने कमियां मिलने पर नाराजगी जाहिर की थी, इसके बाद भी न तो जिला अस्पताल की व्यवस्थाएं सुधरीं और न ही इलाज सही मिल रहा है।
सूत्रों ने बताया कि जिला अस्पताल में बने एसएनसीयू, पीआईसीयू और चिल्ड्रन वार्ड में 80 पलंग हैं, जबकि यहां प्रतिदिन बच्चे दो सौ से अधिक आते हैं। पलंगों की संख्या कम होने से एक पलंग पर तीन-तीन बच्चों को लिटाकर इलाज किया जाता है, जिससे बच्चों में एक-दूसरे के संक्रमण पहुंचने से दूसरी बीमारी लगने का खतरा बना रहता है। बताया जाता है कि इस समय जिला अस्पताल में छोटे बच्चों के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करें तो यहां बच्चों की उम्र के हिसाब से तीन यूनिट संचालित हैं।
पहली यूनिट के रूप में एसएनसीयू (नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई) जिसमें जन्म के बाद से लेकर 28 दिन तक के बच्चों को रखा जाता है। इस उम्र के बाद के बच्चे पीआईसीयू वार्ड में रखे जाते हैं।
चूंकि इस वार्ड की वर्तमान क्षमता 12 बेड हैं, इसलिए यहां भर्ती बच्चे को स्वास्थ्य लाभ होने पर सामान्य चिल्ड्रन वार्ड में रेफर कर दिया जाता है। खास बात यह है कि तीनों यूनिटों में बच्चों के इलाज के लिए कुल 7 डॉक्टर ही मौजूद हैं जबकि तीन और शिशु रोग विशेषज्ञ की जरूरत है।
यहां बताना होगा कि अंचल के बीनागंज अस्पताल को छोड़कर किसी भी स्वास्थ्य केंद्र पर शिशु रोग विशेषज्ञ नहीं है। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र के सभी बच्चों को इलाज के लिए जिला अस्पताल ही लाना पड़ता है। यहां के चिल्ड्रन वार्ड की कुल क्षमता 20 बैडेड है लेकिन सीजन के समय यहां क्षमता से अधिक बच्चों को भर्ती करना पड़ता है।
इनका कहना है
मरीजों की संख्या बढ़ाने वार्ड अपडेट नहीं हुए हैं। इस समय 3 शिशु रोग विशेषज्ञ की कमी भी बनी हुई है। जिले में सिर्फ बीनागंज में ही शिशु रोग विशेषज्ञ हैं। निमोनिया व अन्य बीमारी से मरने वाले बच्चों की संख्या घटती-बढ़ती रहती है।
– डॉ. एसपी जैन,प्रभारी पीआईसीयू
बच्चों के इलाज में यह आ रही परेशानी
जिला अस्पताल में इस समय बच्चों के कुल 7 डॉक्टर हैं। इनमें से चार डॉक्टर एसएनसीयू में ड्यूटी देते हैं। जबकि तीन डॉक्टर पीआईसीयू व चिल्ड्रन वार्ड के बच्चों को देखते हैं। ऐसे में सबसे बड़ी समस्या मरीज परिजनों को ओपीडी में डॉक्टर के न मिलने से आ रही है।
जांच के नाम परेशानी
सूत्रों ने जानकारी दी कि चाहें बच्चा मरीज हो या बड़ा मरीज। हर किसी को जांच के नाम पर वहां के प्रबंधन द्वारा परेशान किया जाता है। कुछ स्टॉफ तो उनको यहां इलाज न मिलने की बात कहकर निजी अस्पताल में इलाज कराने की सलाह दे देता है। प्रसूति वार्ड में स्वास्थ्य मंत्री के आदेश के बाद भी व्यवस्थाएं सुधरने को तैयार नहीं हैं।
वार्डों में गंदगी व्याप्त
जिला अस्पताल के वार्डों में बने शौचालयों में गंदगी व्याप्त है। जिनको सफाई कराने तक की सुध जिला अस्पताल के प्रबंधन को नहीं हैं। इसके साथ ही भोजन का भी स्तर नहीं सुधर पा रहा है। कुल मिलाकर जिला अस्पताल अव्यवस्थाओं का अड्डा बनकर रह गया है।