गुना। ग्लोबल वार्मिंग को रोकने, नरवाई में आग न लगाएं। फसलों की नरवाई में आग लगाना, रसायनिक खाद व कीटनाशकों के उपयोग आदि ने वायुमंडल, कृषि भूमि, फसलों व जल स्रोतों में प्रदूषणों से भूमि का स्वास्थ्य बिगड़ रहा है।
फसलों के लिए लाभकारी कई 16 प्रकार के सभी पोशक तत्व व कैंचुआ जैसे सुक्ष्मजीव भी बहुत अधिक मात्रा में नष्ट हो जाने से जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने वाली कार्बन व नाईट्रोजन लगभग पूरी तरह से नष्ट होने से जमीन की उर्वरा शक्ति समाप्त होती जा रही है। इसकी जानकारी जिला पर्यावरण केंद्र के सुचेता सिंह व हंबीर सिंह द्वारा पर्यावरण जागरुकता अभियान के अंतर्गत गुना शहर, रुठियाई, सब्जी मंडियों, ककवासा, उदयपुरी, कंचनपुरा में दी गई।
इसके अलावा विजयपुर, पगारा, सकतपुर, भुलाय, दौराना, रेलवे स्टेशन, एनएफएल, बसस्टैंड, राघौगढ तहसील के कई गांव में देसी खाद आधारित खेती को बढ़ावा देने व नरवाई में आग लगाने के प्रतिबंध से ग्लोबल वार्मिंग में नियंत्रण, कृषि भूमि संरक्षण व खाद्य सुरक्षा पर जन-जागरुकता अभियान द्वारा गांव-गांव में लोगों को जागरुक किया जा रहा है। किसानों को जैविक खेती को अपनाने, फसल प्रबंधन, सिंचाई की फब्बारा एवं ड्रिप आधुनिक विधियों तथा पर्यावरण के प्रति जागरुक रहने के लिए पोस्टर चस्पा, बिस्त्रित लेख, पर्चे भी वितरित किए जा रहे हैं।
देसी खाद के उपयोग की जरूरत
पर्यावरण प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग तथा रसायनिक खाद व कीटनाशकों से जनित बीमारियों को रोकने के लिए फसल की नरवाई (भूसा), गोबर, नीम के पत्ते व गुठली, अन्य घरेलू कचडे आदि को जैविक खेती के लिए देसी खाद के रुप में उपयोग की आवश्यकता है।