इन ग्रामों में बिजली का गंभीर संकट
बमोरी विधानसभा क्षेत्र के ग्राम रामपुरिया, मोयदा, टगरिया, पूरा, चकचुरीलिया, कपासी, सिलावटी गांव में बिजली 24 घंटे में से बमुश्किल 2 से 3 घंटे ही मिल पा रही है। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि वे बिजली संकट के चलते बिजली कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों को आवेदन भी दे चुके हैं। लेकिन समस्या का निराकरण नहीं हुआ।
बमोरी विधानसभा क्षेत्र के ग्राम रामपुरिया, मोयदा, टगरिया, पूरा, चकचुरीलिया, कपासी, सिलावटी गांव में बिजली 24 घंटे में से बमुश्किल 2 से 3 घंटे ही मिल पा रही है। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि वे बिजली संकट के चलते बिजली कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों को आवेदन भी दे चुके हैं। लेकिन समस्या का निराकरण नहीं हुआ।
किसान की परेशानी उसकी जुबानी
पिछले कई वर्षों से मूंग की खेती करते आ रहे हैं। इस बार 15 बीघा में मूंग की फसल बोई है। मूंग की उत्तम फसल तैयार करने में 4 से 5 हजार प्रति बीघा का खर्च आता है। जिसमें बीज, दवाइयों का खर्च शामिल हैं। पिछले कुछ हफ्तों में लाइट की समस्या बहुत ज्यादा विकराल हो गई हे। वर्तमान में मुश्किल से 24 घंटे में मात्र 8 घंटे लाइट मिल पा रही है। कई बार मेंटेनेंस के चलते घंटों बिजली गुल रहती है। इस बार मूंग का रकबा भी काफी मात्रा में बड़ा है।
महेश प्रसाद शर्मा, किसान
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पिछले साल अच्छी बारिश हुई थी इसलिए इस बार बोर में पानी भी अच्छा है। इस देखते हुए इस बार पिछले वर्ष की तुलना में एक हेक्टेयर रकबे में ज्यादा मूंग की फसल की है। मूंग की फसल में 15 से 18 दिन में पानी की जरूरत होती है। लेकिन बिजली पर्याप्त नहीं मिल पा रही इसलिए सिंचाई करने में बहुत ज्यादा परेशानी आ रही है। यदि यही हालत रही तो बीज खराब हो जाएगा।
सुनील पवार, किसान
पिछले कई वर्षों से मूंग की खेती करते आ रहे हैं। इस बार 15 बीघा में मूंग की फसल बोई है। मूंग की उत्तम फसल तैयार करने में 4 से 5 हजार प्रति बीघा का खर्च आता है। जिसमें बीज, दवाइयों का खर्च शामिल हैं। पिछले कुछ हफ्तों में लाइट की समस्या बहुत ज्यादा विकराल हो गई हे। वर्तमान में मुश्किल से 24 घंटे में मात्र 8 घंटे लाइट मिल पा रही है। कई बार मेंटेनेंस के चलते घंटों बिजली गुल रहती है। इस बार मूंग का रकबा भी काफी मात्रा में बड़ा है।
महेश प्रसाद शर्मा, किसान
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पिछले साल अच्छी बारिश हुई थी इसलिए इस बार बोर में पानी भी अच्छा है। इस देखते हुए इस बार पिछले वर्ष की तुलना में एक हेक्टेयर रकबे में ज्यादा मूंग की फसल की है। मूंग की फसल में 15 से 18 दिन में पानी की जरूरत होती है। लेकिन बिजली पर्याप्त नहीं मिल पा रही इसलिए सिंचाई करने में बहुत ज्यादा परेशानी आ रही है। यदि यही हालत रही तो बीज खराब हो जाएगा।
सुनील पवार, किसान
- ग्रामकालीन मूंग की बोवनी वर्ष 2022 (रकबा हेक्टेयर में)
विकासखंड्र ग्राम लक्ष्य पूर्ति
गुना 307 900 200
बमोरी 254 700 550
राघौगढ़ 367 1100 3150
चांचौड़ा 303 800 170
आरोन 146 500 160
-------------------------
योग 1377 4000 4230
------------------------
ग्रीष्मकालीन मूंग की बोवनी वर्ष 2021 (रकबा हेक्टेयर में)
विकासखंड्र ग्राम लक्ष्य पूर्ति
गुना 307 1300 250
बमोरी 254 1100 550
राघौगढ़ 367 1600 1110
चांचौड़ा 303 1200 250
आरोन 146 800 275
-------------------------
योग 1377 6000 2435
------------------------
विकासखंड्र ग्राम लक्ष्य पूर्ति
गुना 307 900 200
बमोरी 254 700 550
राघौगढ़ 367 1100 3150
चांचौड़ा 303 800 170
आरोन 146 500 160
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योग 1377 4000 4230
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ग्रीष्मकालीन मूंग की बोवनी वर्ष 2021 (रकबा हेक्टेयर में)
विकासखंड्र ग्राम लक्ष्य पूर्ति
गुना 307 1300 250
बमोरी 254 1100 550
राघौगढ़ 367 1600 1110
चांचौड़ा 303 1200 250
आरोन 146 800 275
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योग 1377 6000 2435
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मूंग की पैदावार का गणित
इस समय मूंग के बीज की कीमत क्वालिटी अनुसार 100 रुपए प्रति किलो से शुरूआत है जिसकी अधिकतम कीमत 300 रुपए तक है। एक एक बीघा मूंग की फसल में दवाई का खर्च 700 से 1200 रुपए तक आ रहा है। यह कृषि भूमि की गुणवत्ता के आधार पर कम या ज्यादा भी हो सकता है। बोवनी से कटाई तक एक बीघा में 3 से 4 हजार रुपए तक का खर्च आता है। वहीं औसत पैदावार 3 से 4 क्विंटल प्रति बीघा है। वर्तमान में मंडी में मूंग का भाव 5470 से 6435 चल रहा है।
-
इसलिए मूंग की ओर रुझान बढ़ रहा
मूंग एक बहुप्रचलित एवं लोकप्रिय दालों में से एक है। मूंग गर्मी और खरीफ दोनों मौसम की कम समय में पकने वाली एक मुख्य दलहनी फसल है। ग्रीष्म मूंग की खेती गेहूं, चना, सरसों, मटर, आलू, जौ, अलसी आदि फसलों की कटाई के बाद खाली हुए खेतों में की जाती है। गेहूं-धान फसल चक्र वाले क्षेत्रों में मूंग की खेती द्वारा मिट्टी उर्वरता को उच्च स्तर पर बनाए रखा जा सकता है। मूंग से नमकीन, पापड़ तथा मंगौड़ी जैसे स्वादिष्ट उत्पाद भी बनाए जाते हैं। इसके अलावा मूंग की हरी फलियों को सब्जी के रूप में बेचकर किसान अतिरिक्त आय प्राप्त कर सकते हैं। किसान इसकी एक एकड़ जमीन से 30 हजार रुपए तक की कमाई कर सकते हैं।
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कब-कब होती है बुवाई
ग्रीष्मकालीन मूंग की बुवाई का उचित समय 15 मार्च से 15 अप्रैल तक होता है। जिन किसानोंं के पास सिंचाई की सुविधा है वे फरवरी के अंतिम सप्ताह से भी बुवाई कर देते हंै। बसंतकालीन मूंग बुवाई मार्च के प्रथम पखवाड़े में की जाती है। खरीफ मूंग की बुवाई का उपयुक्त समय जून के द्वितीय पखवाड़े से जुलाई के प्रथम पखवाड़े के मध्य है। बोवनी में देरी होने पर फूल आते समय तापमान में वृद्धि के कारण फलियां कम बनती है या बनती ही नहीं है। इससे इसकी पैदावार प्रभावित होती है। दलहनी फसल होने के कारण मूंग को अन्य खाद्यान्न फसलों की अपेक्षा नाइट्रोजन की कम आवश्यकता होती है। जड़ों के विकास के लिए 20 किग्रा नाइट्रोजन, 50 किग्रा फास्फोरस तथा 20 किग्रा पोटाश प्रति हैक्टेयर डालना चाहिए।
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मूंग की फसल में सिंचाई
पहली सिंचाई 10-15 दिनों में करें। इसके बाद 10-12 दिनों के अंतराल में सिंचाई करें। इस प्रकार कुल 3 से 5 सिंचाइयां करें। यहां यह ध्यान रखना आवश्यक है कि शाखा निकलते समय, फूल आने की अवस्था तथा फलियां बनने पर सिंचाई अवश्य करनी चाहिए।
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मूंग की फसल में रोग एवं कीटों का प्रकोप
ग्रीष्मकाल में कड़ी धूप व अधिक तापमान रहने से मूंग की फसल में रोगों व कीटों का प्रकोप कम होता है। फिर भी मुख्य कीट जैसे माहू, जैडिस, सफेद मक्खी, टिड्डे आदि से फसल को बचाने के लिए 15-20 दिनों बाद 8-10 किग्रा प्रति एकड़ क्लोरोपाइरीफॉस 2 प्रतिशत या मैथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत की धूल का पौधों पर बुरकाव करें। पीले पत्ते के रोग से प्रभावित पौधों को उखाडक़र जला दें या रासाायनिक विधि के अंतर्गत 100 ग्राम थियोमेथाक्सास का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर रखे में छिडक़ाव करें।
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मूंग का अधिक उत्पादन लेने के लिए यह करें
स्वस्थ और प्रमाणित बीज का उपयोग करें।
सही समय पर बुवाई करें, देर से बुवाई करने पर पैदावार कम हो जाती है।
किस्मों का चयन क्षेत्रीय अनुकूलता के अनुसार करें।
बीज उपचार अवश्य करें। जिससे पौधो को बीज और मिट्टी जनित बीमारियों से प्रारंभिक अवस्था में प्रभावित होने से बचाया जा सके।
मिट्टी परीक्षण के आधार पर संतुलित उर्वरक उपयोग करें। जिससे भूमि की उर्वराशक्ति बनी रहती है, जो अधिक उत्पादन के लिए जरूरी है।
खरीफ मौसम में मेड नाली पद्धति से बुवाई करें।
समय पर खरपतवारों नियंत्रण और कीट और रोग रोकथाम करें।
पीला मोजेक रोग रोधी किस्मों का चुनाव क्षेत्र की अनुकूलता के अनुसार करें।
इस समय मूंग के बीज की कीमत क्वालिटी अनुसार 100 रुपए प्रति किलो से शुरूआत है जिसकी अधिकतम कीमत 300 रुपए तक है। एक एक बीघा मूंग की फसल में दवाई का खर्च 700 से 1200 रुपए तक आ रहा है। यह कृषि भूमि की गुणवत्ता के आधार पर कम या ज्यादा भी हो सकता है। बोवनी से कटाई तक एक बीघा में 3 से 4 हजार रुपए तक का खर्च आता है। वहीं औसत पैदावार 3 से 4 क्विंटल प्रति बीघा है। वर्तमान में मंडी में मूंग का भाव 5470 से 6435 चल रहा है।
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इसलिए मूंग की ओर रुझान बढ़ रहा
मूंग एक बहुप्रचलित एवं लोकप्रिय दालों में से एक है। मूंग गर्मी और खरीफ दोनों मौसम की कम समय में पकने वाली एक मुख्य दलहनी फसल है। ग्रीष्म मूंग की खेती गेहूं, चना, सरसों, मटर, आलू, जौ, अलसी आदि फसलों की कटाई के बाद खाली हुए खेतों में की जाती है। गेहूं-धान फसल चक्र वाले क्षेत्रों में मूंग की खेती द्वारा मिट्टी उर्वरता को उच्च स्तर पर बनाए रखा जा सकता है। मूंग से नमकीन, पापड़ तथा मंगौड़ी जैसे स्वादिष्ट उत्पाद भी बनाए जाते हैं। इसके अलावा मूंग की हरी फलियों को सब्जी के रूप में बेचकर किसान अतिरिक्त आय प्राप्त कर सकते हैं। किसान इसकी एक एकड़ जमीन से 30 हजार रुपए तक की कमाई कर सकते हैं।
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कब-कब होती है बुवाई
ग्रीष्मकालीन मूंग की बुवाई का उचित समय 15 मार्च से 15 अप्रैल तक होता है। जिन किसानोंं के पास सिंचाई की सुविधा है वे फरवरी के अंतिम सप्ताह से भी बुवाई कर देते हंै। बसंतकालीन मूंग बुवाई मार्च के प्रथम पखवाड़े में की जाती है। खरीफ मूंग की बुवाई का उपयुक्त समय जून के द्वितीय पखवाड़े से जुलाई के प्रथम पखवाड़े के मध्य है। बोवनी में देरी होने पर फूल आते समय तापमान में वृद्धि के कारण फलियां कम बनती है या बनती ही नहीं है। इससे इसकी पैदावार प्रभावित होती है। दलहनी फसल होने के कारण मूंग को अन्य खाद्यान्न फसलों की अपेक्षा नाइट्रोजन की कम आवश्यकता होती है। जड़ों के विकास के लिए 20 किग्रा नाइट्रोजन, 50 किग्रा फास्फोरस तथा 20 किग्रा पोटाश प्रति हैक्टेयर डालना चाहिए।
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मूंग की फसल में सिंचाई
पहली सिंचाई 10-15 दिनों में करें। इसके बाद 10-12 दिनों के अंतराल में सिंचाई करें। इस प्रकार कुल 3 से 5 सिंचाइयां करें। यहां यह ध्यान रखना आवश्यक है कि शाखा निकलते समय, फूल आने की अवस्था तथा फलियां बनने पर सिंचाई अवश्य करनी चाहिए।
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मूंग की फसल में रोग एवं कीटों का प्रकोप
ग्रीष्मकाल में कड़ी धूप व अधिक तापमान रहने से मूंग की फसल में रोगों व कीटों का प्रकोप कम होता है। फिर भी मुख्य कीट जैसे माहू, जैडिस, सफेद मक्खी, टिड्डे आदि से फसल को बचाने के लिए 15-20 दिनों बाद 8-10 किग्रा प्रति एकड़ क्लोरोपाइरीफॉस 2 प्रतिशत या मैथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत की धूल का पौधों पर बुरकाव करें। पीले पत्ते के रोग से प्रभावित पौधों को उखाडक़र जला दें या रासाायनिक विधि के अंतर्गत 100 ग्राम थियोमेथाक्सास का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर रखे में छिडक़ाव करें।
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मूंग का अधिक उत्पादन लेने के लिए यह करें
स्वस्थ और प्रमाणित बीज का उपयोग करें।
सही समय पर बुवाई करें, देर से बुवाई करने पर पैदावार कम हो जाती है।
किस्मों का चयन क्षेत्रीय अनुकूलता के अनुसार करें।
बीज उपचार अवश्य करें। जिससे पौधो को बीज और मिट्टी जनित बीमारियों से प्रारंभिक अवस्था में प्रभावित होने से बचाया जा सके।
मिट्टी परीक्षण के आधार पर संतुलित उर्वरक उपयोग करें। जिससे भूमि की उर्वराशक्ति बनी रहती है, जो अधिक उत्पादन के लिए जरूरी है।
खरीफ मौसम में मेड नाली पद्धति से बुवाई करें।
समय पर खरपतवारों नियंत्रण और कीट और रोग रोकथाम करें।
पीला मोजेक रोग रोधी किस्मों का चुनाव क्षेत्र की अनुकूलता के अनुसार करें।