ऐसा क्या हुआ? स्कूलों से लापता 1511 बच्चे, 13 हजार ने किया पलायन और 343 गंवा चुके जान
गुनाPublished: Feb 11, 2020 11:18:43 am
शाला से बाहर बच्चों के सर्वे में आई हकीकत: स्कूलों में न स्टॉफ और ना ही सुविधाएं, बच्चे शाला छोडऩे को मजबूर
ऐसा क्या हुआ? स्कूलों से लापता 1511 बच्चे, 13 हजार ने किया पलायन और 343 गंवा चुके जान
गुना (मोहर सिंह लोधी). सरकारी और निजी स्कूलों से ९५११ बच्चे लापता हैं और १३ हजार से अधिक बच्चों के परिवारों ने गुना से पलायन कर लिया है। इतना ही नहीं ३६ हजार से अधिक बच्चों में से ३४२ ऐसे हैं जो अपनी जान गंवा चुके हैं।
जी हां! पढऩे और सुनने में ये आंकड़े अजीब लग सकता हैं। लेकिन ये गुना में ड्रॉपआउट (शाला से बाहर) बच्चों की हकीकत है। जिले में कक्षा एक से आठवीं तक दो लाख से अधिक स्कूली बच्चों में से ३६ हजार से अधिक शाला छोड़ चुके हैं। शिक्षा विभाग ने इसका सर्वे किया तो कई तरह की स्थिति सामने आई। इनमें से १३०७१ बच्चों के परिवार पलायन कर लिया है और उनके नाम अभी भी स्कूलों के रजिस्टर में चढ़े हुए थे। इसी तरह ३४२ बच्चे मर चुके हैं, लेकिन उनके नाम स्कूलों से नहीं हटाए जा सके थे।
कई सरकारी स्कूलों में तो फर्जी नाम लिखे हुए थे, ताकि बच्चों की संख्या ज्यादा दिखाई जा सके। लेकिन ये आंकड़े चौकाने वाले हैं। जब शासन बच्चों के लिए स्कूल चले हम, मध्यान्ह भोजन और मुफ्त में सामग्री दे रही है, ऐसे समय भी बच्चे पढ़ाई छोडऩे मजबूर हैं।
प्राइमरी और मिडिल स्कूलों के बच्चे: ड्रॉपआउट बच्चों की संख्या प्राइमरी और मिडिल स्कूलों की है। शिक्षा विभाग ने जिले में ३६ हजार बच्चों का सर्वे करने शिक्षकों को सूची सौंपी थी। जनवरी में ये सर्वे पूरा किया और फरवरी में विभाग ने रिपोर्ट का संकलन कर लिया है। इसी तरह जिले में हर साल करीब २० हजार बच्चे ऐसे हैं, जो अगली कक्षा में जाने के बजाय पढ़ाई छोड़ देते हैं। कोई अपने माता-पिता के काम हाथ बटाने मजबूर हैं तो किसी के अभिभावक पढ़ाई को महत्व नहीं देते। कई बच्चे स्कूलों में सुविधाएं न मिलने से पढ़ाई करने नहीं जाते हैं।
ड्रॉपआउट बच्चों के सर्वे की स्थिति
३६१६६ बच्चों का सर्वे करना था।
२६६५५ बच्चों का सर्वे किया।
५९५४ बच्चों को शाला में प्रवेश के लिए चिन्हित किया।
१३०७१ बच्चों के परिवार पलायन कर चुके हैं और बच्चों ने नाम स्कूलों में दर्ज मिले।
१८३० बच्चे १८ वर्ष से अधिक आयु के पाए गए।
३४२ बच्चों के नाम ऐसे थे, जो मर चुके हैं, लेकिन स्कूलों में उनके नाम चल रहे थे।
३७३४ बच्चों के घर पहुंचे, लेकिन उनका परिवार मौजूद नहीं मिला।
१७२४ बच्चों को प्रवेश दिलाया।
९५११ बच्चों की नहीं जानकारी।
ये है शिक्षकों की स्थिति: ७३ स्कूल शिक्षकविहीन, २६१ स्कूलों में सिर्फ एक-एक शिक्षक ही कार्यरत
उधर, जिले में सरकारी स्कूलों की स्थिति बेहद नाजुक है। १२ प्राइमरी और ५८ मिडिल स्कूल ऐसे हैं, जहां एक भी शिक्षक नहीं है। ८७ प्राइमरी और १७० मिडिल स्कूल ऐसे हैं, जिनमें सिर्फ एक-एक शिक्षक ही पदस्थ है। एक हाई स्कूल और दो हायर सेकंडरी स्कूल शिक्षक विहीन हैं और दो हाई स्कूल और दो हायर सेकंडरी स्कूलों में केवल एक-एक शिक्षक कार्यरत हैं। इस जवह से इन स्कूलों में पढ़ाई भगवान भरोसे है। हद तो ये है कि श्रममंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया की विधानसभा क्षेत्र में ही १७ स्कूल शिक्षक विहीन हैं। मंत्री जयवर्धन सिंह के विधानसभा क्षेत्र राघौगढ़ में शिक्षक विहीन स्कूलों की संख्या २२ है। एक शिक्षक शालाओं की संख्या तो और भी ज्यादा है। इससे पढ़ाई प्रभावित हो रही है।