नगर का जो प्रमुख मुक्तिधाम है वह सिर्फ नाम का है। क्योंकि यहां अंतिम संस्कार के लिए लकडिय़ां तक नहीं मिलती हैं। इसके अलावा पानी व अन्य सुविधा भी नहीं हैं। नागरिकों ने बताया कि यहां लकडिय़ों का टैंडर नगर परिषद् के माध्मय से होता है जो पिछले काफी समय से नहीं हुआ है। इसी वजह से लोगों को लकडिय़ों के लिए परेशान होना पड़ता है। मुक्तिधाम निर्माण के समय यहां एक ट्यूबवैल था जो लंबे समय से खराब पड़ा है। गौर करने वाली बात है कि कागजों में इस बोर को ठीक कराने के नाम पर राशि निकाल ली गई है। श्मशान घाट के चारों ओर गंदगी का अंबार लगा है। क्योंकि शहर का पूरा कचरा यहीं डाला जा रहा है। जिसके कारण अंतिम संस्कार के समय लोगों का यहां खड़ा होना भी मुश्किल हो जाता है।
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अस्पताल : नगर के स्वास्थ्य केंद्र को सिविल अस्पताल का दर्जा मिले काफी समय हो गया है। लेकिन यहां मरीजों को आज भी प्राथमिक स्वास्थ केंद्र की सुविधा मिल रही हैं। गौर करने वाली बात है कि अस्पताल में एक्सरे मशीन तो है लेकिन वह काफी समय से चालू हालत में नहीं है। आरोनवासियों की दूसरी सबसे बड़ी समस्या महिला चिकित्सक का न होना है। जिसके कारण अधिकांश महिलाओं को इलाज से लेकर जांच कराने गुना ही आना पड़ता है। ऐसे में जो महिलाएं आर्थिक रूप से सक्षम हैं वे तो अपना इलाज प्राइवेट डॉक्टर या गुना आकर करा लेती हैं लेकिन गरीब वर्ग की महिलाएं इलाज से वंचित हो रही हैं। वहीं सिविल अस्पताल में रात के समय दवाएं भी नहंीं मिलती।
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मुख्यालय पर नहीं रहते हंै पटवारी
सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों के मुख्यालय पर न रहने की समस्या से नगरवासी बहुत ज्यादा परेशान हैं। सरकारी कार्यालयों के कई-कई दिन तक चक्कर लगाने के बाद न तो अधिकारी मिलते हैं और न ही समय पर काम हो पा रहा है। नागरिकों का कहना है कि पटवारी आरोन में न रुककर गुना से अपडाउन करते हैं। ऐसे में वे न तो समय पर कार्यालय आते हैं और न ही जरूरत के समय फोन उठाते हैं।