scriptपत्रिका बिग इश्यू : यह कैसा नगर विकास, मुक्तिधाम को बनाया ट्रेचिंग ग्राउंड | What is this city development, Muktidham has been made trenching groun | Patrika News

पत्रिका बिग इश्यू : यह कैसा नगर विकास, मुक्तिधाम को बनाया ट्रेचिंग ग्राउंड

locationगुनाPublished: Sep 21, 2021 12:53:09 am

Submitted by:

Narendra Kushwah

अंतिम संस्कार के लिए न लकड़ी मिलती है और न पानी व सफाई के इंतजाम
सिर्फ नाम का बस स्टैंड, यात्रियों के लिए जरूरी सुविधाओं का अभावदर्जा सिविल अस्पताल का, सुविधाएं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की- वर्षों से खराब पड़ी है एक्सरे मशीन, महिला चिकित्सक का अभाव, रात में नहीं मिलती दवाशिकायत करने पर जनप्रतिनिधि कहते हैं अभी हमारी सरकार नहीं

पत्रिका बिग इश्यू : यह कैसा नगर विकास, मुक्तिधाम को बनाया ट्रेचिंग ग्राउंड

पत्रिका बिग इश्यू : यह कैसा नगर विकास, मुक्तिधाम को बनाया ट्रेचिंग ग्राउंड

गुना/आरोन . राघौगढ़ विधानसभा क्षेत्र में आने वाला आरोन नगर पिछले काफी समय से विकास से महरूम है। यहां न तो चलने के लिए सुविधाजन सड़क है और न ही सर्वसुविधायुक्त बस स्टैंड। मुक्तिधाम पर अंतिम संस्कार के लकड़ी तक की व्यवस्था नहीं है। नगर के स्कूल और मंदिरों के आसपास खुलेआम मीट विक्रय हो रहा है। स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर सिविल अस्पताल तो है लेकिन यहां मरीजों के लिए जरूरी सुविधाएं नहीं हैं। कुल मिलाकर नगर की आबादी लंबे समय बाद भी मूलभूत सुविधाओं से महरूम बनी हुई है। नागरिकों का कहना है कि जनप्रतिनिधियों को समस्या बताते हैं तो वे अपनी सरकार न होने की बात कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं।

नगर में विकास के यह हाल

बस स्टैंड : किसी भी नगर के विकास की सबसे पहली पहचान उसके बस स्टैंड, सड़क और जल निकासी की व्यवस्था से होती है। इस मामले में आरोन अभी कोसों दूर है। यहां बने बस स्टैंड पर यात्रियों के लिए न तो शुद्ध पेयजल की व्यवस्था है और न ही बैठने के लिए उचित इंतजाम। स्टैंड परिसर में जहां देखो वहां जानवर उन्मुक्त रूप से घूमते नजर आते हैं। कीचड़ से सराबोर परिसर में बसें रखी रहती हैं। जो जगह यात्रियों को बैठने के लिए है वहां अक्सर कुत्ते व जानवर ही बैठे नजर आते हैं। सफाई नियमित रूप से तो क्या सप्ताह में एक दिन भी मुश्किल से होती है। यह स्थिति तब है जब इस बस स्टैंड पर 100 से 120 बसें प्रतिदिन आती जाती हैं। 3 दर्जन से अधिक बसें रात को रूकती हैं। गौरतलब है कि नगर के इस बस स्टैंड को लाल बहादुर शास्त्री के नाम से जाना जाता है। यहां की सफाई व्यवस्था की पोल यहां पड़ा गोबर व गंदगी खुद-ब-खुद खोल रही है। परिसर में जगह-जगह कीचड़, बदबूदार पानी फैल रहा है। बस स्टैंड के अंदर प्रतीक्षालय में इंसान की जगह आवारा जानवर बैठे हुए रहते हैं। इन सभी समस्याओं से परेशान यात्री प्रतीक्षालय में ना बैठ कर बाहर बैठने को मजबूर हैं। प्रतीक्षालय को चारों तरफ से पान की गुमठी वाले व अन्य ढेलो वालों ने घेर रखा है।
मुक्तिधाम के भी बुरे हालत
नगर का जो प्रमुख मुक्तिधाम है वह सिर्फ नाम का है। क्योंकि यहां अंतिम संस्कार के लिए लकडिय़ां तक नहीं मिलती हैं। इसके अलावा पानी व अन्य सुविधा भी नहीं हैं। नागरिकों ने बताया कि यहां लकडिय़ों का टैंडर नगर परिषद् के माध्मय से होता है जो पिछले काफी समय से नहीं हुआ है। इसी वजह से लोगों को लकडिय़ों के लिए परेशान होना पड़ता है। मुक्तिधाम निर्माण के समय यहां एक ट्यूबवैल था जो लंबे समय से खराब पड़ा है। गौर करने वाली बात है कि कागजों में इस बोर को ठीक कराने के नाम पर राशि निकाल ली गई है। श्मशान घाट के चारों ओर गंदगी का अंबार लगा है। क्योंकि शहर का पूरा कचरा यहीं डाला जा रहा है। जिसके कारण अंतिम संस्कार के समय लोगों का यहां खड़ा होना भी मुश्किल हो जाता है।

अस्पताल : नगर के स्वास्थ्य केंद्र को सिविल अस्पताल का दर्जा मिले काफी समय हो गया है। लेकिन यहां मरीजों को आज भी प्राथमिक स्वास्थ केंद्र की सुविधा मिल रही हैं। गौर करने वाली बात है कि अस्पताल में एक्सरे मशीन तो है लेकिन वह काफी समय से चालू हालत में नहीं है। आरोनवासियों की दूसरी सबसे बड़ी समस्या महिला चिकित्सक का न होना है। जिसके कारण अधिकांश महिलाओं को इलाज से लेकर जांच कराने गुना ही आना पड़ता है। ऐसे में जो महिलाएं आर्थिक रूप से सक्षम हैं वे तो अपना इलाज प्राइवेट डॉक्टर या गुना आकर करा लेती हैं लेकिन गरीब वर्ग की महिलाएं इलाज से वंचित हो रही हैं। वहीं सिविल अस्पताल में रात के समय दवाएं भी नहंीं मिलती।

मुख्यालय पर नहीं रहते हंै पटवारी
सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों के मुख्यालय पर न रहने की समस्या से नगरवासी बहुत ज्यादा परेशान हैं। सरकारी कार्यालयों के कई-कई दिन तक चक्कर लगाने के बाद न तो अधिकारी मिलते हैं और न ही समय पर काम हो पा रहा है। नागरिकों का कहना है कि पटवारी आरोन में न रुककर गुना से अपडाउन करते हैं। ऐसे में वे न तो समय पर कार्यालय आते हैं और न ही जरूरत के समय फोन उठाते हैं।
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