हाईकोर्ट ने पूछा है कि कैसे 15 दिन में 2700 दस्ताने इस्तेमाल किए गए। इस मामले में अब अगली सुनवाई 12 दिसंबर को होगी। वहीं इस पर तत्काल प्रतिक्रिया देते हुए बच्ची के पिता जयंत सिंह ने कहा कि सरकार को निष्पक्ष जांच करके अस्पताल के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। कमेटी के सामने अपना पक्ष रखने के लिए वह पंचकूला भी गया था। अभी जांच जारी है।
वहीं जयंत सिंह ने कहा कि अस्पताल ने उससे संपर्क साधने की कोशिश की थी। उनका कहना है कि उनसे इलाज के दौरान कोई गलती नहीं हुई लेकिन आखिरी में थोड़ी बहुत गलतियां जरूर हुई है। जयंत सिंह ने कहा कि उन्होंने और भी बात की लेकिन यह बातें उसने जाइंट कमेटी के सामने बताई है। गौरतलब है कि दिल्ली के द्वारका में रहने वाले जयंत सिंह की सात साल की बेटी को 27 अगस्त से तेज बुखार था।
सरे ही दिन उसे रॉकलैंड अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहां दो दिन भर्ती रहने के बाद उन्होंने गुडग़ांव के फोर्टिस अस्पताल में रेफर कर दिया। जयंत ने 31 अगस्त को बच्ची को गुडग़ांव के अस्पताल में भर्ती करवाया। 14 सितंबर को परिवार ने उसे फोर्टिस से ले जाने का फैसला किया, लेकिन उसी दिन बच्ची की मौत हो गई। बच्ची के पिता जयंत सिंह के एक दोस्त ने 17 नवंबर को हॉस्पिटल के बिल की कॉपी के साथ ट्विटर पर पूरी घटना शेयर की।
उन्होंने इसमें लिखा, मेरे साथी की 7 साल की बेटी डेंगू के इलाज के लिए 15 दिन तक फोर्टिस हॉस्पिटल में भर्ती रही। हॉस्पिटल ने इसके लिए उन्हें 16 लाख का बिल दिया। इसमें 2700 दस्ताने और 660 सिरिंज का बिल भी शामिल था। आखिर में बच्ची की मौत हो गई। 4 दिन के भीतर ही इस पोस्ट को 9000 से ज्यादा यूजर्स ने रिट्वीट किया। इसके बाद हेल्थ मिनिस्टर जेपी नड्डा ने हॉस्पिटल से रिपोर्ट मांगी।
इस तरह बनाए थे 15 लाख 79 हजार रुपए
– एडमिशन चार्ज – 1250 रुपए
– ब्लड बैंक – 61315 रुपए
– डायग्नोस्टिक – 29190 रुपए
– डॉक्टर चार्ज – 53900 रुपए
– दवाइयां – 396732 रुपए
– इक्विपमेंट चार्ज – 71000 रुपए
– इन्वेस्टिगेशन – 217594 रुपए
– मेडिकल/सर्जिकल प्रोसीजर – 285797 रुपए
– मेडिकल कंज्यूमेबल्स – 273394 रुपए
– मिसलेनियस – 15150 रुपए
– रूम रेंट – 174000 रुपए
कुल – 1579322 रुपए
फोर्टिस अस्पताल ने दी थी सफाई
फोर्टिस अस्पताल की ओर से जारी बयान के मुताबिक,बच्ची के इलाज में सभी स्टैंडर्ड मेडिकल प्रोटोकॉल और गाइडलाइंस का ध्यान रखा गया था। बच्ची को डेंगू की गंभीर हालत में हॉस्पिटल लाया गया था। बाद में उसे डेंगू शॉक सिंड्रोम हो गया और प्लेटलेट्स गिरते चले गए। उसे 48 घंटे तक वेंटिलेटर सपोर्टर पर भी रखना पड़ा। परिवार को बच्ची की खराब हालत के बारे में हर दिन लगातार बताया गया था। 14 सितंबर को परिवार ने बच्ची को लीव अगेंस्ट मेडिकल एडवाइज के तहत अस्पताल से ले जाने का फैसला किया। उसी दिन बच्ची की मौत हो गई।