गुडगाँवPublished: Jan 22, 2020 06:14:46 pm
Chandra Prakash sain
समय-समय पर कई बार मांगा ब्यौरा पर नहीं छपा साहित्यसदस्यों के बगैर ही चल रही है सम्मान समिति
स्वतंत्रता सेनानी की कहानी
चंडीगढ़. एक तरफ जहां केंद्र सरकार द्वारा सैनिकों व उनके आश्रितों को सरकार दरबार में मान-सम्मान दिए जाने के दावे कर रही है वहीं हरियाणा के अस्तित्व में आने के बाद वर्ष 1977 में तत्कालीन सरकार द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों व आजाद हिंद के सिपाहियों के विवरण पर आधारित ग्रंथ प्रकाशित करने के आदेशों पर आजतक अमल नहीं हुआ है।
इस बात को लेकर स्वतंत्रता सेनानी व उनके परिजनों में प्रदेश सरकार के प्रति नाराजगी है। सरकार 1977 के बाद से लेकर आज तक कई बार सेनानी परिवारों से फोटो व इतिहास मांग चुकी है लेकिन आज तक इतिहास संकलन को लेकर कुछ भी काम नहीं हुआ है। देश की आजादी की लड़ाई में हरियाणा से करीब 5500 स्वतंत्रता सेनानियों ने भाग लिया था। जिसमें दो हजार से अधिक आजाद हिंद फौज के सेनानियों थे। अधिकतर स्वतंत्रता सेनानी इस इतिहास पुस्तिका के सृजन के इंतजार में स्वर्ग सिधार चुके हैं। प्रदेश में इस समय केवल 10 स्वतंत्रता सेनानी जिंदा हैं, जबकि 399 स्वतंत्रता सेनानियों की विधवाएं अभी जिंदा हैं जो इस इतिहास को देखना चाहती हैं।
हरियाणा स्वतंत्रता सेनानी एवं उत्तराधिकारी संघ के सदस्य ओमप्रकाश ढांडा, सुरेंद्र डूडी, सुरेंद्र जागलान, राजेश व रमेश ने बताया कि 8 दिसंबर 1977 के निदेशक हरियाणा राज्य अभिलेखागार ने आजाद हिंद फौज के सेनानियों को इतिहास बनाने के लिए पत्र लिखकर जीवन संबंधी सूचना भेजने के लिए कहा था। आजाद हिंद फौज के स्वतंत्रता सेनानियों को सूचनापत्र के साथ एक फार्म भी भेजा था तथा उसे भरकर जमा करवाने को कहा गया था। ऐसे पत्र कई बार आए लेकिन उनके परिणाम कभी नहीं आए।
पिछले 5 साल से उनकी पेंशन में कोई भी वृद्घि नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा इस संबंध में दावे तो किए जाते हैं लेकिन धरातल पर कार्रवाई कुछ नहीं हो रही है। स्वतंत्रता सेनानियों व उनके परिजनों को केवल 26 जनवरी और 15 अगस्त को ही याद किया जाता है। मनोहर सरकार ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान हरियाणा स्वतंत्रता सेनानी सम्मान समिति का भी पूरी तरह से गठन नहीं किया। स्वतंत्रता सेनानी लालती राम को चेयरमैन बनाया गया मगर लालती राम अधिक बुजुर्ग होने के कारण सुनने व चलने में भी असमर्थ हैं। आज तक वाइस चेयरमैन और समिति का एक भी मेंबर नहीं बनाया गया है। 1966 के बाद हरियाणा के इतिहास में पहली बार बिना मेंबर की समिति काम कर रही है।