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प्रवासियों के पलायन से इंडस्ट्रीज एरिया से गायब हुई रौनक

locationगुडगाँवPublished: Jun 06, 2020 01:10:49 am

Submitted by:

Devkumar Singodiya

सूने हो गए गांव-गुवाड़ में 25 प्रतिशत से कम रह गए श्रमिकभवन मालिकों की आय बुरी तरह हुई प्रभावित

प्रवासियों के पलायन से इंडस्ट्रीज एरिया से गायब हुई रौनक

प्रवासियों के पलायन से इंडस्ट्रीज एरिया से गायब हुई रौनक

मानेसर/गुरुग्राम. कोरोना के कारण हरियाणा से प्रवासियों के बड़े पैमाने पर पलायन के बाद अब ग्रामीण व शहरी क्षेत्र उनकी चहल पहल से वीरान हो गए हैं। खासतौर पर हरियाणा के औद्योगिक क्षेत्रों के आसपास के इलाकों में सन्नाटा पसरा पड़ा है। अधिकांश किराएदार मकान खाली कर अपने प्रदेशों को लौट गए हैं। इससे स्थानीय लोगों की किराए की आय बुरी तरह प्रभावित हो गई हैं और आने वाले दिनों में यह संकट अधिक गहराने के आसार बन गए हैं।

लॉकडाउन के कारण बाजार, व्यापार व इंडस्ट्रीज बंदी के साइड इफेक्ट का एक पहलू यह भी है कि क्षेत्र के अधिकांश रिहायशी इलाके वीरान हो गए हैं। बडी संख्या में श्रमिकों व प्रवासियों के पलायन ने यहां की रौनक को प्रभावित किया है। देश की राजधानी दिल्ली सीमा के साथ सटे उद्योग विहार की कंपनियों में काम करने वाले 80 प्रतिशत से अधिक श्रमिक सरहौल, डूंडाहेडा, मोलाहेडा, कार्टरपुरी और न्यू पालम विहार क्षेत्र में रहते हैं।

दिल्ली की सीमा के साथ हरियाणा गुरूग्राम के डूंडाहेडा व मोलाहेडा ऐसे गांव हैं जिनके अधिकतर लोग 400-500 से ज्यादा कमरों वाले मकानों के मालिक हैं और सामान्य दिनों में इनके यहां किराए के कमरे खाली नहीं मिलते थे। वहीं डूंडाहेडा निवासी गुरूग्राम उद्योग एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रवीण यादव की मानें तो अब उद्योग विहार के साथ लगते गांवों के 80 प्रतिशत से अधिक कमरे खाली हो गए हैं। किरायेदार या तो छोड़कर जा चुके हैं और जो रह रहे हैं उनका मन अस्थिर है वे कभी भी पलायन कर सकते हैं।

शिकोहपुर निवासी धर्मवीर यादव ने आईएमटी मानेसर के साथ लगते गांव खोह में कई प्लॉट में 100 से ज्यादा कमरे बना रखे हैं। वह कहते हैं दो महीने श्रमिकों का किराया माफ किया। किसी को खानपान की दिक्कत न हो इसलिए अपने घर से पैसा लगाकर इन्हें तीनों समय का भोजन और इस्तेमाल की जरूरी वस्तुएं उपलब्ध करवाई। मानेसर के संदीप यादव, ब्रह्म यादव, पूर्व सरपंच ओमप्रकाश यादव का कहना है कि आईएमटी के साथ लगते खोह, मानेसर, कासन नाहरपुर, बांस कांकरोला, भांगरौला, नखडौला व रामपुरा में करीब दो लाख से ज्यादा श्रमिक रहते थे। मगर अब इनकी संख्या गांवों में 30 प्रतिशत ही रह गई है।

वहीं खो गांव के नरेन्द्र यादव का कहना है स्थितियां ऐसी हैं कि आने वाले दिनों में हालात सुधरने की कोई आस भी नहीं है। जिससे सिर्फ किराये की आय पर आधारित परिवारों को राहत मिल सके। इन सभी ग्रामीणों का कहना है कि किराए की आय पर आधारित काफी लोगों ने बैंकों से लोन ले रखे हैं। इन्हें ईएमआई का भुगतान बिजली के बिल प्रोपर्टी टैक्स समेत दूसरे अनेक प्रकार के खर्चों की अदायगी कैसे करेंगे। यही स्थिति नए गुरुग्राम के गांव नाथूपुर सिकंदरपुर चकरपुर घाटा व वजीराबाद की भी हो गई है।


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