मालूम हो कि प्रदेश की 3 करोड़ जनसंख्या में 34 प्रतिशत मुसलमान हैं। इनमें से सिर्फ 4 प्रतिशत ही असमिया मुसलमान बताए जाते हैं जबकि बाकी बांग्लाभाषी मुसलमान हैं। नागरिकता संशोधन कानून को लेकर प्रदेश में उग्र विरोध प्रदर्शन के बीच राज्य सरकार ने इस महत्वपूर्ण योजना पर काम शुरू करने का निर्णय किया है। इस संबंध में असमिया मुसलमान समुदाय गोरिया, मोरिया, देशी, जोलाह के प्रतिनिधियों के साथ बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते हुए दत्त ने बताया कि योजना के मुताबिक, घर-घर जाकर सामाजिक-आर्थिक जनगणना की जाएगी जिसे गृह, राजस्व और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय द्वारा संचालित किया जाएगा।
मालूम हो कि प्रदेश के वित्त मंत्री डा.हिमंत विश्व शर्मा ने असम विधानसभा में पिछले साल पेश किए बजट में असमिया मुसलमानों के लिए खिलंजीया मुस्लिम विकास परिषद के गठन के लिए 100 करोड़ रुपए की राशि की घोषणा की थी और जनगणना का प्रस्ताव रखा था। इसके मद्देनजर उन्होंने कहा था कि इसकी मदद से असम में समुदाय की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का आकलन किया जा सकेगा। दत्त ने कहा कि यह एक संवेदनशील सर्वेक्षण है क्योंकि बांग्लादेशी मुसलमान भी इसमें अपना नाम जुड़वाने का प्रयास कर सकते हैं। उन्होंने स्पष्ट किया, ‘इसका मकसद मुसलमानों को बांटना नहीं है बल्कि हम हम केवल अपने पिछले बजट में किए गए वादे को पूरा कर रहे हैं।
असम विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष देवब्रत सैकिया ने इसे गैर-जरूरी बताया है। उन्होंने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि सरकार के इस कदम से प्रदेश को कोई लाभ नहीं मिलने वाला है और इसका मकसद मुसलमानों में विभाजन पैदा करना है। उन्होंने कहा कि अगले साल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं और भाजपा इससे चुनावी लाभ लेना चाहती है।