स्वशासी जिला सीट में विभिन्न जनजाति के लोग रहते हैं। इनमें डिमासा, कुकी, कार्बी, नगा, हमार, बियाटे और रेंगमा शामिल हैं। असम से विभाजित होकर मेघालय बनने के पहले इस सीट का इलाका शिलांग संसदीय क्षेत्र में आता था। 1977 में ही पहली बार स्वशासी जिला सीट पर चुनाव हुआ। स्वशासी संसदीय सीट में पांच विधानसभा सीटें आती हैं। ये हैं, हाफलांग, बोकाजान, हावड़ाघाट, डिफू और बैठालांग्सू।इन पांचों पर भाजपा का कब्जा है। कुल मतदाताओं की संख्या 7,83,711 है। इनमें पुरुष मतदाता 3,99,195 और महिला मतदाता 3,84,509 हैं। कांग्रेस के बीरेन सिंह इंग्ती का भाजपा के हरेन सिंह बे (49) के साथ कड़ा मुकाबला होगा।
बे पूर्व के उग्रवादी संगठन यूनाईटेड पीपुल्स डेमोक्रेटिक सॉलिडरिटी (यूपीडीएस) के महासचिव रह चुके हैं। फिलहाल वे भाजपा शासित कार्बीआंग्लाग स्वशासी परिषद में कार्यकारी सदस्य हैं। वर्ष 2011 में केंद्र सरकार के साथ हुई तितरफा वार्ता के बाद बे मुख्यधारा में लौटे और राजनीति शुरु की। उस साल हुए विधानसभा चुनाव को इन्होंने पापा नामक एक संगठन बनाकर लडा। बाद में परिषद के लिए हुए चुनाव में जीत दर्ज कर विपक्ष में बैठे। वर्ष 2016 में बे अपने अन्य सहयोगियों के साथ भाजपा में शामिल हो गए। परिषद के चुनाव में जीत हासिल कर बे अध्यक्ष बने और तीन महीने पहले ही लोकनिर्माण विभाग के कार्यकारी सदस्य की जिम्मेवारी संभाली।
स्वशासी जिला सीट से चुनाव लड़ने वाले अन्य उम्मीदवारों में एएसडीसी के होलीराम तेरांग, नेशनल पीपुल्स पार्टी के लियेन खोचोन और ऑल पार्टी हिल्स लीडर कांफ्रेस (एपीएचएलसी) के जोंस इंग्ती कथार शामिल हैं। भाजपा के लिए कुछ मुश्किलें भी हैं। भाजपा के स्थानीय प्रभावशाली नेता रतन इंग्ती ने पार्टी से नाता तोड़ कांग्रेस का दामन अपने समर्थकों के साथ थाम लिया है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2014 में पार्टी ने जो वायदे मतदाताओं से किए थे उन्हें पूरा नहीं किया। नागरिकता संशोधन विधेयक पर पार्टी के रवैए से भी इंग्ती नाराज हुए। इंग्ती ने आरोप लगाया कि भाजपा एक भारत, एक भाषा के नाम पर छोटी-छोटी जनजातियों को खत्म कर देने का षड़यंत्र कर रही है। उधर भाकपा(माले), केएनसीए और एचएसडीसी पार्टी ने कांग्रेस उम्मीदवार बीरेन सिंह इंग्ती को समर्थन देने की घोषणा की है। सोलह जनजाति संगठनों ने भी इंग्ती का समर्थन किया है। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस की टक्कर कांटे की हो गई है।