केंद्र का मानना है कि लाखों लोगों के निर्वासन में काफी समय लगेगा। निर्वासन की वर्तमान प्रक्रिया के अनुसार विदेशी न्यायाधिकरण द्वारा बांग्लादेशी करार दिए गए व्यक्ति का बांग्लादेश स्थित सही ठिकाना बांग्लादेश सरकार काे मुहैया कराना पड़ता है। वहां इसका सत्यापन होने के बाद ही बांग्लादेश किसी को स्वीकार और अस्वीकार करने की बात बताता है। यह एक लंबी प्रक्रिया है। पिछले महीने ही एक साथ 52 बांग्लादेशियों को बांग्लादेश निर्वासित किया गया था। गृह मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार केंद्रीय गृह मंत्री ने अपने हाल के दौरे के दौरान बांग्लादेश सरकार के समक्ष यह मुद्दा उठाया था।
सूत्रों के अनुसार एक संप्रभु राष्ट्र को विदेशी न्यायाधिकरण के फैसले को स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। वैसे फिलहाल की बांग्लादेश सरकार के साथ भारत सरकार के संबंध बेहतर हैं। लेकिन वह लाखों बांग्लादेशियों को स्वीकार कर लेगा, ऐसा लगता नहीं। असम में एनआरसी का जो अंतिम प्रारुप आया है उसमें 40 लाख लोगों के नाम नहीं हैं। ये लोग अपने नामों को शामिल करवाने के लिए दावे और शिकायत पेश कर सकेंगे। इसके बाद भी उनके नाम नहीं आए तो ऐसे व्यक्ति विदेशी न्यायाधिकरण के अलावा ऊपरी अदालत का दरवाजा भी खटखटा पाएंगे। इसमें भी काफी लंबा समय लगेगा क्योंकि विदेशी न्यायाधिकरणों में पहले से काफी मामले लंबित हैं।
पूरी प्रक्रिया खत्म होने के बाद सरकार के पास विदेशियों की असली संख्या आएगी। तुरंत इन्हें निर्वासित करना संभव नहीं होगा। बडी संख्या देखते हुए इन्हें डिटेंशन कैंप में भी नहीं रखा जा सकेगा। डिटेंशन कैंप में रखने से सरकार के राजस्व से भारी खर्च होगा। ऐसे में इनके लिए बायोमैट्रिक वर्क परमिट लंबे समय तक देना ही गृह मंत्रालय को एकमात्र उपाय नजर आ रहा है। विदेशी करार दिए गए व्यक्ति न तो वोट दे पाएंगे और न ही जायदाद खरीद पाएंगे। बायोमैट्रिक वर्क परमिट देने से इनको आसानी के साथ खोजा जा सकेगा।