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जिसे 129 साल पहले विलुप्त मान लिया, वह छिपा था असम के जंगलों में

locationगुवाहाटीPublished: Jul 02, 2020 05:14:32 pm

Submitted by:

Yogendra Yogi

(Assam News ) जैव विविधता (Bio diversity ) के लिए विख्यात असम के जंगलों (Extinct snake found ) में एक ऐसे सांप की प्रजाति की खोज की गई है, जिसे 129 साल से विलुप्त (Extinct 129 Years ago ) मान लिया गया था। असम कीलबैक नाम के इस सांप को आखिरी बार वर्ष 1891 में देखा (This snkae last seen in 1891 ) गया था। इसके बाद से इस प्रजाति का कोई अता-पता नहीं चल रहा था।

जिसे 129 साल पहले विलुप्त मान लिया गया, वह छिपा था असम के जंगलों में

जिसे 129 साल पहले विलुप्त मान लिया गया, वह छिपा था असम के जंगलों में

गुवाहाटी(असम): (Assam News ) जैव विविधता (Bio diversity ) के लिए विख्यात असम के जंगलों (Extinct snake found ) में एक ऐसे सांप की प्रजाति की खोज की गई है, जिसे 129 साल से विलुप्त (Extinct 129 Years ago ) मान लिया गया था। असम कीलबैक नाम के इस सांप को आखिरी बार वर्ष 1891 में देखा (This snkae last seen in 1891 ) गया था। इसके बाद से इस प्रजाति का कोई अता-पता नहीं चल रहा था। गौरतलब है कि असम के जंगलों में पूर्व में भी सांपों की नई या विलुप्त प्राय: प्रजातियों की खोज हो चुकी है। कीलबैक नाम के इस सांप की खोज वाइल्ड लाइफ ऑफ इंडिया के वैज्ञानिकों ने लंबे अर्से तक असम के जंगलों की खाक छानने के बाद की है। इस खोज में वैज्ञानिकों की मेहनत और तकलीफों का अंदाजा ही लगाया जा सकता है।

विलुप्त मान लिया गया था
उनमें से एक कोलकाता में जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और दूसरा लंदन के नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम में रखा गया था। उसके बाद सांप को कभी नहीं देखा गया था और कुछ लोग मानते थे कि यह विलुप्त हो चुका है. वहां से 118 किमी दूर एक आरक्षित वन में इसे अचानक से तब पाया गया, जब यह खोज 26 जून को जर्मनी से प्रकाशित एक अंतरराष्ट्रीय पत्रिका, वर्टेब्रेट जूलॉजी में प्रकाशित हुई थी।

इस रास्ते से खोजा गया
देहरादून स्थित वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की एक टीम द्वारा 129 साल बाद खोजा गया यह सांप हेबियस पियाली प्रजाति का है। इसको पहली बार 1891 में देखा गया था, जब एक ब्रिटिश चाय बागान मालिक सैमुअल एडवर्ड पील ने असम के सिबसागर जिले से दो नर नमूनों को पकड़ा था। सितंबर 2018 में असम-अरुणाचल प्रदेश सीमा पर डब्ल्यूआईआई की एक टीम अबोर पहाडिय़ों पर 1911 के एक सैन्य अभियान की यादगार में खोज में गई थी। अबोर अभियान एक सैन्य अभियान होने के साथ ही जानवरों और पौधों की कई प्रजातियों के संग्रह का नतीजा भी बना था, की याद में इस क्षेत्र में एक सदी में हुए परिवर्तनों का पता लगाने का विचार किया।”

लंदन से मिला विवरण
चूंकि असम-अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर असम के डिबू्रगढ़ में पोबा रिजर्व फॉरेस्ट के पास एक जगह से अंग्रेज़ों ने अपना अभियान शुरू किया था, नई खोज का अभियान भी यहीं से शुरु किया गया। यह जंगल के अंदर एक दलदली वेटलैंड में था, जहां इस सांप को देखा, जिसे पिछले 129 वर्षों से नहीं देखा गया था। यह पूरी तरह से अप्रत्याशित था क्योंकि लोगों ने सोचा था कि यह विलुप्त हो चुका था। असम और पूर्वोत्तर भारत के सांपों के विशेषज्ञ दास ने सांप को पकड़ा, जो एक वयस्क मादा है जो ऊपर से गहरे भूरे रंग का और उसका पेट, भूरे रंग का है। प्रजाति की पुष्टि करने के लिए, टीम को लंदन से विवरण प्राप्त करना था क्योंकि रखा नमूना क्षतिग्रस्त हो गया था।

पूर्व में भी मिली नई प्रजातियां
इससे पहले भी असम में सांपों या विलुप्त प्राय: प्रजाति खोजी जा चुकी हैं। असम-भूटान सीमा के समीप चूहे खाने वाली प्रजाति के एक नए सांप की प्रजाति की खोज की गई थी। इस प्रजाति को भी वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के र्वैज्ञानिकों ने खोजा था।

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