scriptअकेले दम पर उगाया जंगल, सब चेते तो धरती पर होगा मंगल | Man alone grow Jungle in 300 acre in Manipur | Patrika News

अकेले दम पर उगाया जंगल, सब चेते तो धरती पर होगा मंगल

locationगुवाहाटीPublished: Aug 28, 2019 06:09:16 pm

Submitted by:

Nitin Bhal

North East: ब्राजील में अमेजन के जंगलों में लगी आग ने दुनियाभर का ध्यान अपनी ओर खींचा है। दुनियाभर की ऑक्सीजन का करीब 20 प्रतिशत अमेजन के जंगल…

अकेले दम पर उगाया जंगल, सब चेते तो धरती पर होगा मंगल

अकेले दम पर उगाया जंगल, सब चेते तो धरती पर होगा मंगल

इंफाल . ब्राजील में अमेजन के जंगलों में लगी आग ने दुनियाभर का ध्यान अपनी ओर खींचा है। दुनियाभर की ऑक्सीजन का करीब 20 प्रतिशत अमेजन के जंगल उत्पन्न करते हैं। ऐसे में दुनियाभर के लोग इस पर चिंता व्यक्त कर रहे हैं। पेड़ काटने और जंगलों के नष्ट होने की समस्या से दो-चार दुनिया में मोइरांगथेम लोइया जैसे लोग उम्मीद की किरण बन कर सामने आते हैं। मणिपुर के मोइरांगथेम लोइया ( moirangthem loiya ) ने अकेले ही 300 एकड़ का जंगल तैयार कर डाला है। लोइया पिछले 18 सालों से पेड़ लगा कर उन्हें संरक्षित कर रहे हैं। कभी मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव का काम करने वाले लोइया ने पर्यावरण की रक्षा के लिए 17 साल पहले नौकरी छोड़ी और अब सिर्फ वन संरक्षण के काम में लगे हैं।
45 वर्षीय मोइरांगथेम लोइया इंफाल वेस्ट के उरीपोक खैदेम के निवासी हैं। उन्होंने पुनशिलोक नाम के जंगल को फिर से जिंदा कर दिया है। लोइया बचपन में इन जंगलों में जाया करते थे। कॉलेज खत्म करने के बाद वर्ष 2000 में जब वह इस जंगल में गए तो हरे-भरे जंगल की जगह उजड़ा बंजर पाकर हैरान रह गए। जंगल तैयार करने के लिए लोइया ने 2002 में जमीन की तलाश शुरू कर दी। एक स्थानीय व्यक्ति लोइया को मारू लांगोल हिल रेंज ले गया। इस स्थान पर एक भी पेड़ नहीं था। व्यथित हो लोइया ने अपनी नौकरी छोड़ी और पुनशिलोक में ही एक छोटी सी झोपड़ी बनाकर रहने लगे। वह वहां पर छह साल रहे और अकेले ही बांस, टीक, ओक, फिकस, मगोलिया और कई तरह के फलों के पौधे लगाते रहे। शुरुआत में उन्होंने सिर्फ तीन प्रकार के बीज खरीदे। बाद में उन्होंने दोस्तों और वॉलंटियर्स की मदद से सफाई की और पौधे लगा दिए।

जंगल को बनाया हरा-भरा

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अब पुनशिलोक जंगल लगभग 300 एकड़ का हो गया है। इस जंगल में अब सिर्फ बांस की ही लगभग 25 प्रजातियां पाई जाती हैं। यहां जीव और पौधों की बहुत सारी प्रजातियां पाई जाती हैं। 250 अलग-अलग तरह के पौधों में कई आयुर्वेदिक औषधियां भी पाई जाती हैं। जंगल बसा तो वन्यजीवों ने भी यहां डेरा लगाया है। तेंदुआ, सांप, भालू, साही और कई अन्य प्रजातियों के जानवर यहां पाए जाते हैं। हर तरफ पक्षी चहचहाते रहते हैं।

वन विभाग भी आया साथ

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लोइया के इस कार्य में वन विभाग भी उनके साथ आया और जंगल को फिर से हरा-भरा बनाने में मदद की। वन विभाग ने जंगल के आसपास बनाए गए अवैध घरों को हटाया और पौधरोपण के लिण् लोइया के साथ अभियान चलाए। 2003 में लोइया और उनके साथियों ने वाइल्डलाइफ ऐंड हैबिटैट प्रोटेक्शन सोसायटी (डब्ल्यूएएचपीएस) बनाई। इस संस्था के वॉलंटियर्स भी वन लगाने और उसे संरक्षित करने के काम में लग गए।

देश-विदेश से आ रहे लोग

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लोइया बताते हैं कि चर्चा में आने के बाद स्थानीय लोगों के साथ-साथ देश-विदेश से भी लोग यहां आने लगे हैं। सितंबर 2016 में इरोम शर्मिला भी यहां आई थीं। उन्होंने यहां आम का पौधा लगया था। परिवार पालने के लिए लोइया अपने भाई के मेडिकल स्टोर पर काम करते हैं। वह ऑर्गेनिक खेती भी करते हैं। हजारों पेड़ लगा चुके लोइया अभी और पौधे लगाकर जंगल तैयार करना चाहते हैं। वह कहते हैं कि मैं खुद को पेंटर मानता हूं। दूसरे कलाकार कलर, ब्रश और कैनवपस का इस्तेमाल करते हैं। मैंने पहाडिय़ों को अपना कैनवस बनाया और उनपर पौधे लगाए, जिनपर फूल खिलते हैं। यही मेरी कला है।

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