दूरियां हुई कम
मालूम हो कि असम शांति समझौता 1985 के अन्तर्गत बोगीबील सेतु को बनाने की सहमति बनी थी। इसकी नींव 22 जनवरी 1997 में पूर्व प्रधानमंत्री श्री एच डी देवगौडा ने रखी थी। लेकिन इसका आधिकारिक निर्माण कार्य 21 अप्रैल 2002 में शुरू हुआ। 2007 में यूपीए सरकार ने इस सेतु को राष्ट्रीय महत्व का घोषित किया। 16 साल में यह सेतु बनकर तैयार हुआ है। शुरूआती समय में सेतु की लागत 3,290 करोड़ आंकी गई थी जिसमें 16 साल में 85 फिसदी की बढ़ोतरी हुई। इस तरह पुल निमार्ण कार्य 5,960 करोड़ में पूरा हुआ। पुल निमार्ण के बाद धेमाजी व डिब्रुगढ़ के बीच सड़क मार्ग की 150 किलोमीटर और रेलवे मार्ग की 705 किलोमीटर दूरी कम हो जाएगी। धेमाजी व डिब्रुगढ़ के बीच की दूरी सड़क मार्ग से 3 घंटे में और रेलवे मार्ग से 10 घंटे में पूरी की जा सकेगी, इसके अलावा अरूणाचल के कई जिलों की भौगोलिक संपर्क भी ईटानगर से और आसान हो जायेगा।
यह है पुल की खासियत
बोगीबील सेतु सुरक्षा की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण व उपयोगी रहेगा। सेतु को सुरक्षा व आमजन के हितों में व सुविधाओं के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा। सेतु से देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र में खासकर चीन से लगी अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पर रक्षात्मक साजों-सामान व हथियारों को पहुंचाने में मदद मिलेगी। सेतु पर कुल 45 सड़क-रेलवे ठहराव स्थान बनाए गए हैं। हालांकि इन 18 सालों में इस सेतु की लम्बाई में 600 मीटर का इजाफा भी हुआ। इसके नाम को लेकर कई दावों प्रतिदावों से जुडे विवादों को विराम देते हुये स्थानीय पहचान बोगीबील का नाम दिया गया। इस सेतु को नॉर्वे व स्वीडन को जोडऩे वाले सेतु की तर्ज पर बनाया गया हैं। सेतु से डबल-डेकर रेलगाडी को चलाने के अलावा युद्ध लडाकू विमान भी इस पर उतारे जा सकते हैं। यह सेतु आसाम व अरूणाचल के लिए एक भावनात्मक-संपर्क के प्रतीक के तौर पर देखा जा रहा हैं। दोनों राज्यों के बीच अब इस सेतु से आर्थिक व विकास की गतिविधियों में इजाफा होगा।