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धरती के दोस्त बना रहे दुनिया खास, प्लास्टिक को ‘ना’, नेचर के आसपास

locationगुवाहाटीPublished: Sep 02, 2019 07:06:53 pm

Submitted by:

Nitin Bhal

North East News: आज सारी दुनिया प्लास्टिक के कहर से जूझ रही है। क्या मनुष्य, वन्य जीव और जलीय जंतु भी इसकी मार से दूर नहीं हैं। हालात लगातार बदतर होते जा रहे हैं।

धरती के दोस्त बना रहे दुनिया खास, प्लास्टिक को ना, नेचर के आसपास

धरती के दोस्त बना रहे दुनिया खास, प्लास्टिक को ना, नेचर के आसपास

कोहिमा (सुवालाल जांगु). आज सारी दुनिया प्लास्टिक के कहर से जूझ रही है। क्या मनुष्य, वन्य जीव और जलीय जंतु भी इसकी मार से दूर नहीं हैं। हालात लगातार बदतर होते जा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी कुछ रोज पहले देशवासियों से प्लास्टिक का कम से कम उपयोग करने की अपील की है। इन बदतर हालात में आशा की किरण बन कर सामने आती है इएफजी, यानि अर्थ फ्रेंडली जेनरेशन। नगालैंड में इएफजी एनजीओ केला, वेक्टर और मूसा इंडियाना की पत्तियों से बने उत्पादों से प्लास्टिक प्रयोग को मात दे रहा है। यह एनजीओ दैनिक उपयोग में काम आने वाले उत्पाद जैसे प्लेट, कप और कवर बना रहा हैं। एनजीओ के प्रयासों के परिणामस्वरूप कोहिमा में प्लास्टिक-उत्पादों की जगह पत्तियों से बने उत्पादों के बारे में जागरूकता बढ़ रही है। नागालैंड की राजधानी कोहिमा से 26 किलोमीटर दूर एक छोटे से कस्बे चिएफोबोजो से एक नई हरित क्रांति हो रही है। केदुओल्हौखो डोमिनिक चाडी के नेतृत्व में स्थानीय निवासियों की भागीदारी से यह संभव हो रहा हैं। यहां लोग प्लास्टिक से बनी चीजों को ‘नकार’ रहे हैं और बदले में पत्तियों से बनी चीजों को ‘स्वीकार’ कर रहे हैं। इन सब का श्रेय अर्थ फ्रेंडली जेनरेशन (इएफजी) एनजीओ के पर्यावरण प्रेमी और विचारशील सामाजिक कार्यकर्ताओं के द्वारा किए गए प्रयासों को जाता है।


2015 से जुड़े पर्यावरण संरक्षण में

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15 अक्टूबर 2015 में इएफजी की स्थापना हुई थी। एक साल के भीतर 5 सदस्यों ने इस एनजीओ को पंजीकृत कराया था। जनवरी 2019 से इस एनजीओ ने केला और वेक्टर पत्तियों से प्लेट और कप जैसे उत्पाद बनाना शुरू किया। वर्तमान में इएफजी ‘ए बिलियन अवर’ नाम की परियोजना पर काम कर रही है। इसके अंतर्गत स्थानीय उद्यमता को बढ़ावा देते हुए उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों से बने उत्पादों के उपयोग से प्लास्टिक के उपयोग को न्यूनतम करने का उद्देश्य है। चाडी ने बताया कि नगालैंड सरकार ने भी हमारे प्रयासों को बढ़ावा देते हुए और पर्यावरण नुकसान को ध्यान में रख राज्यभर में 17 जून से सिंगल-यूज प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है। चाडी ने नगा-हब नाम से एक एनजीओ बनाया है। जो जैविक खाद्य उत्पादों के विकास में सक्रिय है। इएफजी और नगा-हब दोनों मिलकर ‘ए बिलियन अवर’ परियोजना पर काम कर रहे हैं।

पत्रकार बनते-बनते बने पर्यावरण संरक्षक

 

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वेक्टर-पत्तियां, मूसा इंडियाना और मूसा नगालेंडियाना की अच्छी गुणवत्ता की वजह से इनके प्लेट, कप और पैकेजिंग कवर बनाए जाते हैं। मूसा नागालैंडियाना का नाम नगालैंड में इसकी विशेष और दुर्लभ प्रजाति की खोज होने की वजह से पड़ा है। 28 साल के चाडी ने बताया कि नगालैंड में पर्यावरण सरंक्षण के क्षेत्र में बहुत ही कम एनजीओ काम करते हैं। इसलिए हमने सोचा कि इस प्रकार कि शुरुआत करनी चाहिए। चाडी बीए करने के बाद पत्रकारिता की पढ़ाई करना चाहते थे, लेकिन अच्छी जगह दाखि़ला नहीं होने के बाद पर्यावरण सरंक्षण के क्षेत्र में काम करने का निश्चय किया। चाडी ने दिमापुर स्थित एनइआइएसएसआर से सोशल वर्क में एमए करने के बाद इएफजी – एनजीओ की स्थापना की। शुरुआत में इएफजी को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन अब जनता से अच्छा रुझान मिलने से एनजीओ अच्छा काम कर रहा है।

फिलहाल प्रीपेड ऑर्डर पर ही काम

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चाडी ने बताया कि एनजीओ केवल प्रीपेड ऑर्डर ही लेता है। उपभोक्ता भी ताजे उत्पाद ही पसंद करते हैं। वेक्टर और मूसा पत्तियां अच्छी गुणवत्ता में उपलब्ध होने कि वजह से प्लेट, कप, कवर इत्यादि उत्पाद लंबे समय तक संग्रहण करने के लायक टिकाऊ और उपयोगी रहते हैं। एनजीओ में कामगारों कि संख्या सीमित होने कि वजह से चाडी के परिवार के सदस्य भी पत्तियां को एकत्रित करने, प्लेट और कप बनाने के काम में देर रात तक सहयोग देते हैं। उन्होंने बताया कि हम मशीनों से नहीं बल्कि हाथों से काम करते हैं। सर्दियों में पत्तियां सूख जाती हैं, ऐसे में उन्हें एकत्रित करना मुश्किल होता है। इसके अलावा बारिश का मौसम ज्यादा लंबा होने से भी उत्पाद बनाने में समय लगता हैं। उपभोक्ताओं के ऑर्डर को पूरा करना जरूरी होता है। हमारे एक छोटे-से निर्माण प्लांट में काम करने के घंटे निर्धारित नही हैं। पत्तियां एकत्रित करने से लेकर उत्पाद बनाने में 12 घंटे का समय लग जाता है। चांडी ने बताया कि इस एनजीओ में सभी लोग गैर-वैतनिक और स्वयंसेवक के तौर पर काम करते हैं। हम उनको काम और उनके योगदान के बदले सिर्फ सर्टिफिकेट देते हैं। यह एक प्रकार का उद्यमिता कौशल प्रशिक्षण का 6 महीने का कोर्स है। हम बिना किसी प्रकार की सरकारी मदद के यह प्रशिक्षण देते हैं। उपभोक्ताओं से भी हम अपने उत्पादों की कीमत केवल पॉकेट-मनी के बराबर लेते हैं।

कई समस्याएं पर हार नहीं मानी

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चाडी कहते हैं कि वित्तीय विवशता एक दूसरी बाधा है। अक्सर उत्पाद बनाने के दौरान हमें हमारे खुद के पैसे का इस्तेमाल करना पड़ता है। एक एनजीओ होने की वजह से लोग सोचते हैं कि हम जनता से पैसा बना रहे हैं, लेकिन हकीकत यह है कि हमें हमारी पॉकेट-मनी का उपयोग करना पड़ता है। हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती स्वयंसेवक कामगारों की कमी है। ईएफज़ी ने अभी हाल ही में वल्र्ड वाइड फंड फॉर नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) के साथ संगठन का प्रचार करने, जागरुकता लाने और जैविक-खेती के मुद्दों पर समाधान देने के लिए एक समझौता किया है।

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