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असम में एनआरसी के अंतिम प्रकाशित प्रारुप में 40 लाख नाम नहीं हुए शामिल,राज्य में फिर भी बहाल रही शांति

locationगुवाहाटीPublished: Jul 30, 2018 09:08:03 pm

इस पूरे मामले को असम पब्लिक वर्क्स(एपीडब्ल्यू) सुप्रीम कोर्ट में ले गया था…

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(पत्रिका ब्यूरो,गुवाहाटी): असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजी(एनआरसी)के अंतिम प्रारुप का प्रकाशन सोमवार को हुआ। इसमें कुल आवेदनकर्ताओं से 40 लाख सात हजार सात सौ लोगों के नाम शामिल नहीं हुए हैं। गड़बड़ी की आशंका पर राज्य के सात जिलों में धारा 144 लागू की गई थी पर इस दौरान राज्य में शांति स्थापित रही।

 

जिनके नाम नहीं शामिल उनके लिए यह विकल्प

एनआरसी के मुख्य कार्यालय में रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया(आरजीआई) शैलेश ने संवाददाता सम्मेलन में एलान किया कि 3,29,91,384 लोगों ने आवेदन किया था। इसमें से 2,89,83,877 लोगों के नाम एनआरसी के अंतिम प्रारुप में शामिल किया गया है। शैलेश ने कहा कि जिनके नाम नहीं हैं, उन्हें भी चिंतित होने की जरुरत नहीं है। इन्हें भी दावों और शिकायतों के लिए पर्याप्त समय दिया जाएगा। 30 अगस्त से 28 सितबंर तक वे अपने कागजातों के साथ एनआरसी सेवा केंद्रों में आवेदन कर सकेंगे। इसके लिए सात अगस्त से एनआरसी सेवा केंद्रों में आवेदन पत्र मिलेंगे।पूरी प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में हुई है। इस प्रक्रिया के लिए 2015 में आवेदन लिए गए थे। 31 दिसबंर 2017 को पहला प्रारुप आया था। वैसे पूरी प्रक्रिया को 2013 से शुरु किया गया था। इस कार्य में राज्य के पचास हजार कर्मचारी लगे हुए थे।यह अंतिम प्रारुप नहीं है। जिनके नाम नहीं है उन्हें पर्याप्त मौका अपनी नागरिकता साबित करने के लिए मिलेगा।

 

संवाददाता सम्मेलन में मौजूद गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव(पूर्वोत्तर) सत्येंद्र गर्ग ने कहा कि जिनके नाम नहीं हैं उनका मामला न तो विदेशी न्यायाधिकरण में जाएगा और न ही उन्हें डिटेंशन कैंप में रखा जाएगा।गृह मंत्रालय राज्य की कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए हरसंभव कदम उठा रहा है। गड़बड़ करनेवा ले लोगों को बख्शा नहीं जाएगा।एनआरसी के राज्य समन्वयक प्रतीक हाजेला ने कहा कि पूरी प्रक्रिया में अब तक 1220 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं।


क्या एनआरसी में नाम नहीं रहने वाले व्यक्तियों का नाम मतदाता सूची में होगा,इस सवाल पर शैलेश ने कहा कि चुनाव आयोग ही इस पर कुछ कह सकता है,हम नहीं। असम में लाखों बांग्लादेशी है,इन्हे वापस भेजने की मांग विभिन्न संगठनों द्वारा की जाती रही है।विदेशियों को खदेड़ने के लिए राज्य में छह साल का आंदोलन भी हुआ था। उसी के चलते 1951 की एनआरसी के अद्यतन का फैसला किया गया। लेकिन असम समझौते के अनुसार 24 मार्च 1971 तक असम आए सभी को भारतीय मान लिया गया यानि इस समय से पहले के नामित कागजात दिखाने पर एनआरसी में नाम शामिल होगा। इसी क्रम में अब तक लगभग चालीस लाख लोगों के कागजातों से उनके भारतीय होने की पुष्टि नहीं हुई है। पर आगे ये कागजात दिखाते हैं तो नाम शामिल हो जाएगा।

 

विधायकों के नाम नहीं

मोरिगांव के भाजपा विधायक रमाकांत देउरी और अभयापुरी दक्षिण के एआईयूडीएफ के विधायक अनंत मालो का नाम भी अंतिम प्रारुप में नहीं है।प्रतिबंधित संगठन उल्फा (स्वाधीन) के सेना प्रमुख परेश बरुवा का नाम इसमें है।लेकिन उनकी पत्नी और दोनों बेटे का नाम नहीं है।ये सभी देश से बाहर हैं।सेना में तीस साल कार्य करनेवाले सेना के कर्नल आजमल हक का नाम भी अंतिम प्रारुप मतदाता सूची में नहीं है। विदेशी न्यायाधिकरण ने हक को नोटिस थमाया हुआ है।

 

न्यायालय के आदेश का पालन-सोनोवाल

राज्य के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने कहा कि असम की भूमि में किसी को अशांति पैदा करने नहीं देंगे।40 लाख लोगों के शामिल नहीं होने के सवाल पर उन्होंने कहा कि हमने सिर्फ न्यायालय के आदेश का पालन किया है।पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बयान पर उन्होंने कहा कि यह उकसावे वाला प्रयास है।किसी के उकसावे से असम में भाईचारा विघिन्त नहीं हो सकता।

एपीडब्ल्यू का संघर्ष

इस पूरे मामले को असम पब्लिक वर्क्स(एपीडब्ल्यू) सुप्रीम कोर्ट में ले गया था। एपीडब्ल्यू के कर्ताधर्ता अभिजीत शर्मा ने इसके लिए असम के चार लोगों को पूरा समर्थन देने के लिए धन्यवाद दिया। इसमें सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश असम
संतान रंजन गोगोई भी शामिल हैं।

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