महंत के वकील राजीव बरुवा ने कहा कि उच्च न्यायालय में न्यायाधीश उज्जवल भुइयां की एकल खंडपीठ ने इस याचिका का निपटान किया। बरुवा ने कहा कि सैकिया आयोग का गठन अवैध था क्योंकि जब जेएन शर्मा आयोग वैध था। किसी आयोग को आगे जारी न रखने के लिए सरकार को विधानसभा में प्रस्ताव पारित करना था जो कि नहीं किया गया, न ही कोई गजट अधिसूचना इस बारे में जारी की गई।
जांच के लिए शर्मा आयोग का गठन
सत्ता में आने के कुछ महीनों बाद ही तत्कालीन तरुण गोगोई के नेतृत्ववाली सरकार ने गौहाटी उच्च न्यायालय की सेवानिवृत न्यायाधीश मीरा शर्मा को लेकर एक जांच आयोग गठित किया था। न्यायाधीश मीरा शर्मा को गुप्त हत्या के छह मामले सौंपे गए थे। इन छह मामलों मे 11 लोग मारे गए थे। वर्ष 2003 में न्यायाधीश मीरा शर्मा ने निजी कारणों से जांच से अलग होने का एलान किया। तब न्यायाधीश जे एन शर्मा के नेतृत्व में एक नया आयोग गुप्त हत्याओं की जांच के लिए गठित किया गया।
2005 में सैकिया अयोग का गठन
न्यायाधीश शर्मा की रिपोर्ट से गोगोई सरकार खुश नहीं हुई तो 2005 में न्यायाधीश के एन सैकिया आयोग गठित किया गया। सैकिया आयोग ने अपने हिसाब से गुप्त हत्याओँ के मामले जांच के लिए चुने। महंत के वकील ने कहा कि कानूनन सरकार को मामलों के बारे में आयोग को बताना था,आयोग अपने से मामलों का चयन नहीं कर सकता था। सैकिया आयोग की रिपोर्ट नवबंर 2007 में राज्य विधानसभा के पटल पर रखी गई थी। सैकिया आयोग ने टिप्पणी की थी कि तत्कालीन गृह मंत्री यानि महंत के पास गृह विभाग था,को इन हत्याओं के लिए जिम्मेवार बताया गया था। वहीं सरकार ने न्यायाधीश जे एन शर्मा की प्रारंभिक रिपोर्ट भी पेश की जिसमें उन्होंने कहा था कि वे हत्यारों की पहचान नहीं कर पाए हैं।