नगालैंड में भी हुई घटना
मिजोरम के बाद नगालैंड के जुनहेबोटो जिले में हाथी का मांस खाने की घटना सामने आई। इस जिले के लिटामी गांव के पास जंगल में गोली मार कर एक हाथी की हत्या की गई। फिर ग्रामीणों ने हाथी के शव को काट कर उसके मांस का सेवन किया। अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि हाथी पालतू था या जंगली था। न ही हत्यारे की शिनाख्त हो पाई है।
सांसद ने जताई चिंता
असम प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष एवं राज्यसभा के सदस्य रिपुन बोरा ने हाथी का मांस खाए जाने की घटनाओं पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि इस तरह की क्रूरता के खिलाफ केंद्र और राज्य सरकारों को सख्त कदम उठाना चाहिए। इस तरह की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए। वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए जो कानून हैं, उनका कड़ाई से पालन होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से वन्यजीवों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए जा चुके हैं। यह तो बर्बरता की चरम सीमा कही जाएगी कि पहले हाथी की हत्या की गई और फिर उसको काट कर सभी लोगों ने उसके मांस को खाया। वहीं, असम के निर्दलीय सांसद नब सरनिया ने कहा कि इस तरह की घटनाओं से पता चलता है कि पूर्वोत्तर के लोगों में जागरूकता की कितनी कमी है। ऐसी कुछ जनजातियां हैं जो वन्यजीवों को मारकर खाती रही हैं। उनको जागरूक करने की जरूरत है और इस तरह की क्रूर घटनाओं पर रोक लगाने की जरूरत है।
जांच का दिया आदेश
मिजोरम वन विभाग के प्रवक्ता ने बताया है कि चीफ फॉरेस्ट वार्डेन ने संबंधित डीएफओ को जांच करने का आदेश दिया है। जांच के दौरान यह पता लगाया जाएगा कि हथिनी की मौत होने के बाद उसे दफनाया क्यों नहीं गया और किसकी गफलत की वजह से ग्रामीणों ने हथिनी के शव को अपने कब्जे में लेकर उसके मांस को काटा। जांच के बाद दोषियों के खिलाफ सख्त कानूनी कारवाई की जाएगी। दूसरी तरफ नगालैंड के वन विभाग ने कहा है कि उसे सोशल मीडिया से ही इस मामले की जानकारी मिली है और वह मामले की पूरी जांच करवाने के बाद ही किसी नतीजे तक पहुंच सकता है। अभी तक वन विभाग को मारे गए हाथी के बारे में कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है। यह भी पता नहीं चल पाया है कि मारा गया हाथी पालतू था या जंगली।
जागरुकता व संसाधनों की कमी
ऐसे मामलों में सबसे बड़ा कारण जागरुकता और संसाधनों की कमी का सामने आता है। जनजातीय इलाकों में लोगों के पास संसाधनों की कमी होती है। ऐसे में वे जो मिल जाए उसे भोजन बना लेते हैं। वहीं जागरुकता का अभाव भी उन्हें ऐसा करने को बाध्य करता है। उन्हें इल्म ही नहीं होता कि वे जो कर रहे हैं वह और पर्यावरण के लिहाज से अनुचित है।