माता-पिता ने नहीं खोई हिम्मत
बैंगलोर विश्वविद्यालय से फैशन और परिधान डिजाइनिंग में स्नातक और मणिपुरी फिल्मों और रंगमंच से जुडक़र सबसे ज्यादा कमाई करने वालों में से एक बिशेष हुइरेम के माता-पिता ने उनके किन्नर होने का पता चलने पर धैर्य का परिचय दिया। बिशेष के पिता मैंग्लेम ने बताया कि इस बात को समझने की जरूरत है कि मेरा बेटा एक लडक़ी से कहीं बढक़र है। वह प्रेस से मिलने के लिए तैयार होने में कई घंटे लगाता है। शुरू में मैं उसके व्यक्तित्व के खिलाफ था, लेकिन मैं उसे नई दिशा नहीं दे सका। हाल में सरकारी नौकरी से रिटायर होने वाले मैंग्लेम भी मणिपुरी फिल्मों और रंगमंच में जाना -पहचाना नाम हैं। वहीं बिशेष की मां खोमदोन्बी ने बताया कि शुरुआत में वह अपने बेटे द्वारा लड़कियों के कपड़ों के प्रति आकर्षित होने पर काफी नाराज होती थी, लेकिन बाद में उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया।
बिना मेकअप के भी नेचुरल ब्यूटी
बिना मेकअप के भी हुइरेम का फेस नेचुरली दमकता है। इन्हें पहली बार देखने वाले तो यही समझने लगते हैं कि जरूर ये कोई बॉलीवुड की एक्ट्रेस होगी। जब देखने वालों को असलियत मालूम चलती है तो वे और ज्यादा ताज्जुब करते हैं। यूट्यूब पर वायरल हो रहे एक वीडियो में यह दावा किया गया कि यह दुनिया की सबसे खूबसूरत किन्नर है। सिर्फ इतना ही नहीं वीडियो में यह भी बताया गया है कि इसके सामने बॉलीवुड की अभिनेत्रियों की खूबसूरती एकदम फीकी पड़ जाती है।
लिया सौंदर्य प्रतियोगिता में हिस्सा
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक हुइरेम ने थाईलैंड में अंतरराष्ट्रीय ब्यूटी क्वीन कॉन्टेस्ट में भाग लिया था। यहां उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया। बताया जाता है कि यहा होने वाली ब्यूटी कॉन्टेस्ट की ये प्रतियोगिता केवल किन्नरों के लिए रखी जाती है। इस कॉन्टेस्ट में 28 साल की हुईरेम के अलावा बाकी देशों के 54 और ट्रांसजेंडर आए थे। हुईरेम मणिपुर की शुमंग लीला में हिस्सा लेकर मशहूर हुई हैं। उसमें महिलाओं के रोल पुरुष करते हैं। आज हुईरेम का नाम पॉपुलर हो चुका है कि जब भी मणिपुर की खूबसूरती की बात की जाती है तो हुइरेम का नाम भी लिया जाता है।
ट्रांसजेंडर्स को मिले उनका हक
हुइरेम ट्रांसजेंडर्स के हक में आवाज भी उठाती हैं। एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से देश में यूं तो थर्ड जेंडर को दर्जा मिल चुका है, लेकिन ये हकीकत भी किससे छुपी है सदियों से किन्नर समाज तिरस्कार भरी नजरों से देख जाता रहा है, उन्हें न तो बराबरी का दर्जा मिलता है और न ही किसी प्रकार का विशेषाधिकार। बड़े ताज्जुब की बात है कि हमारे समाज का हिस्सा होते हुए भी इस फैसले से पूर्व उन्हें किसी भी श्रेणी में गिना तक नहीं जाता था। दरअसल, प्रकृति ने उन्हें ऐसा ही बनाया है लेकिन है तो इसी समाज का हिस्सा ही न।