क्या है इस परंपरा की हकीकत
किंवदंती के अनुसार रेन नामक एक व्यक्ति को अप्सरा नदी से प्रेम हो गया। नदी अप्सरा को भी रेन से प्रेम था। एक दिन रेन अपनी प्रेमिका नदी को अपनी मां से मिलाने घर ले आया। रेन के घर को उसकी मां ने अपने होने वाली बहू के स्वागत में अच्छे से साफ-सुथरा और तैयार किया लेकिन भूलने की आदत के चलते मां झाड़ू को मेहमान की नजऱ से छुपाना भूल गई। ख़ासी समुदाय में झाड़ू को गंदगी और कूड़ा-कचरा का प्रतीक माना जाता हैं। जब अप्सरा ने झाड़ू देखा तो अपमानित महसूस कर घर छोडकर चली गई। आज भले यह किंवदंती लोगों को न मालूम हो लेकिन इससे जुड़ी प्रथा हर खासी परिवार की परंपारा बनी है।
घर घर आज भी कायम है परंपरा
सुबह-सुबह घरों को साफ करने के बाद झाड़ू को कहीं पर छुपाकर रख दिया जाता हैं ताकि दिन भर मेहमानों की नजऱ में यह न आए और वे अपमानित महसूस न करें। देखने और सुनने में भले ही यह बात हैरान कर देने वाली है मगर वर्षों से चली आ रही यह परंपरा 21वीं शताब्दी में भी घर घर प्रचलित हैं।